September 17, 2009
देश के ज्यादातर हिस्से में 15 अगस्त तक बारिश होने की वजह से खरीफ फसलों के प्रति उम्मीदें बनी हैं।
खेत में लगी फसलों की पैदावार क्षमता बढ़ने से उम्मीद यही बन रही है कि अगला रबी सीजन भी अच्छा हो सकता है इससे खरीफ फसलों के उत्पादन में आई कमी की क्षतिपूर्ति हो सकती है। इसके अलावा इस बारिश से पानी के भंडार को बढ़ाने में मदद मिली हालांकि फिलहाल जो भंडार है वह पर्याप्त स्तर से अब तक दूर है।
फिलहाल मानसून की थोड़ी कसर बाकी है ऐसे में जब तक यह स्थिति बेहतर नहीं हो जाती तब तक सिंचाई और बिजली उत्पादन के लिए पानी की उपलब्धता बरकरार रहेगी। अगस्त की दूसरी छमाही और सितंबर से पहले की बारिश से खरीफ फसलों के लिए ज्यादा क्षेत्रों पर खेती किए जाने की संभावना बनकर तैयार हुई है।
हालांकि धान और मूंगफली की बुआई पिछले साल के मुकाबले कम है और इसकी कमी को पूरा नहीं किया जा सकता है। धान के क्षेत्र के रकबे का 10 सितंबर तक अनुमान 3.08 करोड़ हेक्टेयर है और यह पिछले साल के रकबे के मुकाबले 62 लाख हेक्टेयर कम है। लेकिन जब मानसून में सुधार दिखा उस लिहाज से यह 13 अगस्त तक 2.47 करोड़ हेक्टेयर बुआई से 61 लाख हेक्टेयर ज्यादा था।
फिलहाल उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल में कमी दिख रही है क्योंकि जून में नमी की बेहद कमी थी। हालांकि सरकार ने पूर्वी राज्यों में रबी सीजन से पहले 'बोरो सीजन' में धान की खेती को बढ़ावा देने के लिए गहन खेती को लॉन्च करने का प्रस्ताव रखा है। रबी सीजन में ऐसा करने का मतलब खरीफ सीजन के चावल के उत्पादन में होने वाले घाटे की भरपाई करना है।
दूसरी बड़ी खरीफ फसलों में मूंगफली को लेकर चिंता है जिसकी बुआई लगभग 43 लाख हेक्टेयर पर हुआ है। इसमें पिछले साल के 51 लाख हेक्टेयर में से 8 लाख हेक्टेयर तक की कमी आई है। इस कमी की वजह आंध्र प्रदेश और गुजरात के मूंगफली उत्पादक राज्यों में कम बारिश का होना है।
इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (आईसीएआर) किसानों को तिलहन की खेती करने की सलाह दे रही है जिसकी बुआई सितंबर के अंत तक होगा। इस तरह मूंगफली के उत्पादन की थोड़ी क्षतिपूर्ति हो जाएगी। सोयाबीन का रकबा पिछले साल के 95 लाख हेक्टेयर के लगभग समान स्तर पर है।
खबर यह है कि महाराष्ट्र को छोड़कर देश के ज्यादातर भाग में फसल की स्थिति बेहतर है जहां कीटों और फसल की बीमारियों की बहुत ज्यादा समस्या होती है। सोयाबीन का कुल उत्पादन सामान्य हो सकता है और यह सोया आधारित उद्योग की मांग को पूरा करने में सक्षम होगा। इस साल दाल का उत्पादन बेहतर हो सकता है क्योंकि इन फसलों को 5 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त रकबे पर उगाया जा रहा है और अब भी बुआई हो रही है।
मध्य प्रदेश में देर से बारिश होने की वजह से उड़द के रकबे में इजाफा हो रहा है। मूंग की बुआई कर्नाटक में जोर-शोर से हुई है। ऐसा कहा जा रहा है कि फसल बेहतर है। हालांकि दाल का अतिरिक्त उत्पादन आयात की जरूरतों को कम करने में सक्षम नहीं होगा क्योंकि ज्यादा कीमतों की वजह से उपभोग में गिरावट के बावजूद मांग आपूर्ति के बीच का अंतर 15 लाख टन तक रह सकता है।
देर से बारिश होने की वजह से ही मोटे अनाजों के रकबे में भी मामूली रूप से बढ़ोतरी हुई है और यह उत्पादन पिछले साल के स्तर से ज्यादा बढ़ सकता है। लेकिन पॉल्ट्री और स्टार्च इंडस्ट्रीज से बढ़ती मांग की वजह से कीमतें ज्यादा रह सकती है। क पास की खेती लगभग 96 लाख हेक्टेयर पर हो रही है जो पिछले साल के 84 लाख हेक्टेयर के मुकाबले 11 लाख हेक्टेयर ज्यादा है।
फिलहाल बुआई का मौसम खत्म हो चुका है। अब इस वक्त ज्यादा बारिश से खड़ी फसलों को नुकसान हो सकता है। देर से बारिश होने की वजह से जलाशय में पानी का प्रवाह ज्यादा बढ़ा है। जल का कुल भंडार 81 जलाशयों में 57.7 अरब क्यूबिक मीटर (बीसीएम) से बढ़कर 77.43 बीसीएम हो गया है।
लेकिन यह स्तर पिछले साल के 99।54 बीसीएम के स्तर से और पिछले 10 साल के औसत 94.53 बीसीएम से काफी कम है। अगर उत्तरी पहाड़ी क्षेत्रों, उत्तर पूर्वी और दक्षिणी पठार में मानसून अब भी सक्रिय होता है तो पानी की कमी में सुधार हो सकता है। वैसे कुछ और दिनों में देश के कई हिस्से में बारिश का पूर्वानुमान लगाया जा रहा है। (बीएस हिन्दी)
18 सितंबर 2009
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