मुंबई September 25, 2009
विदेश में भारतीय खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांगों को देखते हुए भारतीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय ने अगले पांच वर्षों के दौरान प्रसंस्कृत खाद्य वस्तुओं के निर्यात में 150 फीसदी की बढ़ोतरी का लक्ष्य निर्धारित किया है।
इससे वैश्विक खाद्य बाजारों में भारत की हिस्सेदारी में 5 फीसदी की बढ़ोतरी होने की संभावना है। कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य वस्तु निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीईडीए) के तहत आने वाले प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों (ताजे और प्रसंस्कृत फल और सब्जी, पशु उत्पाद, अनाज) के उत्पादन में समय के साथ वित्त वर्ष 2008-09 में रुपये में 24 फीसदी जबकि डॉलर में 10 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
अभी जिस रफ्तार से गुणवत्ता और खाद्य प्रसंस्करण में तेजी देखी जा रही है, इसे देखते 2014-15 तक भारत का निर्यात बढ़कर 60,000 करोड रुपये का हो सकता है। लेकिन ऐसा शायद उतनी आसानी से नहीं होने जा रहा है।
खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय सचिव अशोक सिन्हा कहते हैं कि इनके विकास को बनाए रखने के लिए इस अवधि के दौरान करीब 100,000 करोड़ रुपये के निवेश की जरूरत है, लेकिन निवेशकों ने इस ओर काफी बेरुखी दिखाई है।
सिन्हा ने ठेके पर आधरित खेती (कांट्रैक्ट फार्मिंग) और कृषि में ज्यादा से ज्यादा तकनीक आधारित कार्य में कॉर्पोरेट क्षेत्र की हिस्सेदारी पर ज्यादा जोर दिया जिससे खाद्यान के उत्पादन में बढ़ोतरी होगी और आयात पर से निर्भरता कम करने में काफी मदद मिलेगी।
जनसंख्या में तेजी से बढ़ोतरी होने की वजह से किसानों के पास कृषि योग्य भूमि काफी कम हो गई है, इसलिए उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए अच्छे उर्वरकों, कीटनाशकों और कांट्रैक्ट फार्मिंग के जरिये बीज प्रबंधन की बेहतर संभावनाएं हैं। हालांकि, यह बात भी स्वीकार करते हैं कि ऐसा करना उतना आसान नहीं हैं, लेकिन बहुत ज्यादा मुश्किल भी नहीं है।
यूबीएम इंडिया के परियोजना निदेशक बिपिन सिन्हा कहते हैं 'मौजूदा कानून कांट्रैक्ट फार्मिंग में कॉर्पोरेट जगत की भागीदारी पर खामोश है।' इसी तरह बांबे चैम्बर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष भारत दोशी का कहना है कि 2006-07 को छोड़कर जब कृषि क्षेत्र की विकास दर ने 4 फीसदी के विकास का लक्ष्य हासिल कर लिया था, सरकार उस समय से अब तक इसका आधा भी प्राप्त करने में सफल नहीं हो सकी है।
दोषी कहते हैं 'मौजूदा और भविष्य में मांग की पूर्ति करने के लिए कृषि क्षेत्र में उत्पादन को बढाना निहायत ही जरूरी है। ऐसे समय में जबकि कृषि योग्य भूमि तेजी से कम हो रही है, कृषि में सही तकनीक का इस्तेमाल कर उत्पादन बढाने के साथ घाटे को भी कम किया जा सकता है।' (बीएस हिन्दी)
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