28 सितंबर 2009
गेहूं की बेहतर पैदावार के लिए उन्नत किस्में
खरीफ सीजन में मानसून की बेरुखी से खाद्यान्न उत्पादन में कमी आने की आशंका के बाद रबी सीजन अब बहुत अहम हो गया है किसानों के लिए भी और सरकार के लिए भी। जहां किसानों को सूखे से हुए आर्थिक नुकसान की भरपाई के लिए रबी एक अवसर है, वहीं सरकार के लिए देश में खाद्यान्न सुलभता के लिए रबी एक चुनौती है। ऐसे में सरकार नुकसान की कुछ हद तक भरपाई रबी फसलों की ज्यादा बुवाई करके करना चाहती है। सितंबर महीने में देर तक हुई बारिश गेहूं की अगेती बुवाई के लिए फायदेमंद है। अच्छी पैदावार के लिए किसानों को गेहूं की उन्नत खेती पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। सरकार ने उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र के किसानों को अधिक पैदावार वाली किस्में डीबीडब्ल्यू 17 और पीबीडब्ल्यू 550 और पीबीडब्ल्यू 502 किस्मों की बुवाई करने की सलाह दी है। उत्तर भारत में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान सबसे अधिक गेहूं पैदा करने वाला क्षेत्र है।उन्नत किस्मों की पैदावारडीबीडब्ल्यू 17 किस्म की औसत पैदावार 50.5 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। जबकि पीबीडब्ल्यू 502 किस्म की औसत पैदावार 49.8 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। पीबीडब्ल्यू 550 किस्म से किसान 47.7 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक पैदावार ले सकते हैं। उत्तर पश्चिमी एवं उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्र में किसान नवंबर महीने में गेहूं की इन किस्मों की बुवाई करें। एक हैक्टेयर के खेत के लिए 100 किलो बीज पर्याप्त होगा। इन किस्मों की फसलों के लिए उर्वरकों का अनुपात 150:60:40 किलो क्रमश: नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश प्रति हैक्टेयर पर्याप्त होगा। फसल में एक तिहाई नाइट्रोजन बुवाई के समय और दो तिहाई नाइट्रोजन पहली गांठ बनने पर (बुवाई के 35-40 दिन बाद) खेत में डालना चाहिए।बुवाई के समय उपयुक्त तापमानइन किस्मों की बुवाई के समय दिन का औसत तापमान 23 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड उपयुक्त होगा। अच्छे फुटाव के लिए तापमान 16-20 डिग्री सेंटीग्रेड होना चाहिए। बीज की गहराई लगभग 5 सेंटीमीटर एवं पक्ति से पंक्ति की दूरी 20 सेंटीमीटर होनी चाहिए। जिंक की कमी वाले खेतों में जिंक सल्फेट 25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से साल में एक बार डालनी चाहिए। यदि फसल में जिंक की कमी के लक्षण दिखाई दें तो 0.5 प्रतिशत जिंक का छिड़काव करना चाहिए। इसके लिए 2.5 किलोग्राम जिंक सल्फेट के साथ 1.25 किलो ग्राम बिना बुझे चूने (अनस्लेक्ड लाइम) या 12.5 किलो ग्राम यूरिया को 500 लीटर पानी में घोलकर एक हैक्टेयर में 15 दिन के अंतराल पर 2-3 बार छिड़काव करें।आवश्यक सिंचाईसाधारणतया गेहूं की फसल के लिए 3-6 सिंचाई की आवश्यकता होती है। पानी की उपलब्धता एवं पौधों की आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए। चंदेरी जड़ें निकलना (क्राउन रुट इनिशियेशन) एवं बाली आना ऐसी अवस्थाएं है जब नमी की कमी होने का अधिक बुरा प्रभाव पड़ता है। जीरो टिलेज से बुवाई करने पर पहली सिंचाई पारंपरिक तरीके से की जानी चाहिए। अगर मार्च के शुरूआत में तापमान सामान्य से बढ़ने लगे तो हल्की सिंचाई करनी चाहिए।खरपतवार नियंत्रणउत्तर भारत में पीला रतुआ तथा भूरा रतुआ मुख्य संभावित रोग हैं। पीला रतुआ से ज्यादा नुकसान होता है। डीबीडब्ल्यू 17, पीबीडब्ल्यू 550 रोगरोधी प्रजातियां हैं। उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में लोकप्रिय प्रजाति पीबीडब्ल्यू 343 में भी पीला रतुआ के प्रकोप की आशंका रहती है इसलिए किसान इसकी बुवाई न करें। करनाल बंट उत्तर- पश्चिमी भारत में गेहूं का एक अन्य मुख्य रोग है। गेहूं की पीबीडब्ल्यू 502 प्रजाति करनाल बंट के प्रति काफी हद तक रोधक है।गेहूं में गुल्ली डंडा, गेहूंसा, मंडूसी, गेहूं का मामा, जंगली जई, बथुआ, खरबाथु, मैना, सैंजी, हिरणखुरी, सत्यानाशी, कृष्णनील, कटैली, जंगली पालक एवं गेगला आदि प्रमुख खरपतवार हैं। प्रथम सिंचाई के बाद मिट्टी में उपयुक्त नमी होने पर कसोले द्वारा निराई करना खरपतवार नियंत्रण के लिए लाभप्रद है। साफ-सुथरा बीज प्रयोग करें, जिससे खरपतवार के बीज न हों। जल्दी बुवाई एवं पंक्तियों के बीच दूरी को कम करके भी खरपतवार नियंत्रित किए जा सकते हैं। चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार के नियंत्रण के लिए मैटसल्यूरॉन 4 ग्राम प्रति हैक्टेयर या 24-डी. 500 ग्राम प्रति हैक्टेयर या कारफेन्ट्राजोन 20 ग्राम प्रति हैक्टेयर को 250-300 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के 30-35 दिन बाद छिड़काव करें। - आर.एस. राणा rana@businessbhaskar.net
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