मुंबई September 28, 2009
चालू वित्त वर्ष के पहले छह महीनों में यूरोपीय संघ के देशों को निर्यात होने वाले मूंगफली की खेप में 94 फीसदी की गिरावट आई है।
इस गिरावट की वजह मूंगफली निर्यातकों की ओर से इसकी गुणवत्ता बनाए रखने और इसे वैश्विक स्तर का बनाने के मकसद से उठाए जा रहे कदम हैं। अगस्त तक की पांच महीनों की अवधि के दौरान यूरोपीय संघ के देशों को निर्यात होने वाले शिपमेंट पिछले साल की समान अवधि 12,051 टन के मुकाबले घटकर मात्र 758 टन रह गया है।
भारत प्रति वर्ष करीब 2.5-2.75 लाख टन मूंगफली का निर्यात करता है, जिसमें यूरोपीय संघ को निर्यात होने वाली मूंगफली की हिस्सेदारी 12 फीसदी होती है। गौरतलब है कि भारतीय निर्यातकों पर मूंगफली की गुणवत्ता बेहतर बनाने का दबाव है और इस बात का डर है कि इस दिशा में अगर जल्द कोई कदम नहीं उठाया गया तो विदेश से आने वाले निर्यात के ऑर्डर रद्द हो सकते हैं।
भारत से निर्यात होने वाले मूंगफली में एफ्लाटॉक्सिन के पाए जाने की शिकायतों के बाद कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने इस साल जुलाई में मूंगफली निर्यातकों के लिए इस संबंध में शख्त दिशानिर्देश जारी किए थे।
इस साल की शुरुआत से ही भारतीय तिलहन एवं उत्पाद निर्यात संवर्धन परिषद (आईओपीईपीसी) स्थानीय निर्यातकों से गुणवत्ता बरक रार रखने को कह रहे थे, ताकि यूरोपीय संघ को निर्यात होने वाली मूंगफली में भारत की चार फीसदी हिस्सेदारी कायम रह सके।
खरीदारों की ओर से किसी भी तरह की शिकायत मिलने की स्थिति में मूंगफली की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए एपीडा ने ग्रेपनेट और अनारनेट की तर्ज पर ही गुणवत्ता बरकरार रखने संबंधी शख्त दिशानिर्देश जारी किए हैं। अब तक यूरोपीय संघ को भारत से निर्यात होने वाली वाली मूंगफली में एफ्लाटॉक्सिन की मौजूदगी को लेकर करीब 45 शिकायतें मिल चुकी हैं।
आईओपीईपीसी के अध्यक्ष संजय शाह कहते हैं 'अगर हम 4 फीसदी के लक्ष्य में बढ़ोतरी नहीं कर सके तो कम से कम हमें इस स्तर पर बरकरार रखना चाहिए।' एपीडा द्वारा मूंगफली के निर्यात संबंधी शख्त दिशानिर्देश जारी किए जाने से यूरोपीय संघ को होने वाले निर्यात 30,000 टन के सामान्य स्तर से कम होने की आशंका जताई जा रही है।
मूंगफली की गुणवत्ता में शिकायतें मिलने केबाद भारत सरकार ने सभी सौदों को एपीडा या आईओपीईपीसी में पंजीकृत कराना अनिवार्य कर दिया है। यूरोपीय संघ को होने वाली मूंगफली के निर्यात से जुड़े सभी इकाइयों को अब एपीडा या आईओपीईपीसी से गुणवत्ता संबंधी प्रमाणपत्र लेना अनिवार्य होगा।
शाह ने कहा कि शुरुआत में यूरोपीय संघ को होने वाले मूंगफली के निर्यात में कमी आ सकती है, लेकिन जैसे ही आयातक हमारी तरफ से गुणवत्ता पर उचित ध्यान देने की बातों के बारे में अवगत होंगे, वैसे ही 2-3 सालों में निर्यात में बढ़ोतरी हो जाएगी।
यूरोपीय संघ को निर्यात होने वाले 90 फीसदी मूंगफली का इस्तेमाल मानवीय उपभोग के लिए होता है, जबकि 10 फीसदी का इस्तेमाल चिडियों के भोजन के लिए मिश्रण के तौर पर होता है। भारत में इस साल मूंगफली के उत्पादन में पिछले साल के मुकाबले गिरावट की आशंका है। पिछले साल के मुकाबले मूंगफली के रकबे में इस साल कमी दर्ज की गयी है। (बीएस हिन्दी)
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