मुंबई September 29, 2009
भारत कच्चे और परिष्कृत वनस्पति तेल के आयात पर अगले साल मार्च से सीमा शुल्क लगा सकता है।
लंदन स्थित गोदरेज इंटरनैशनल लिमिटेड के निदेशक दोराब मिस्त्री के अनुसार इस बात की पूरी संभावना है कि खाद्य तेल का दूसरा सबसे बडा आयातक देश भारत इनके आयात पर फिर से सीमा शुल्क लगा सकता है।
उल्लेखनीय है कि महंगाई से पैदा हुई स्थिति के मद्देनजर सरकार ने पिछले साल कच्चे पाम तेल के आयात पर सीमा शुल्क समाप्त कर दिया था, जबकि इस साल मार्च में कच्चे सोयाबीन तेल के आयात पर सीमा शुल्क में 20 फीसदी की कटौती की थी।
परिष्कृत कच्चे तेल के आयात पर अभी भी 7.5 फीसदी का कर लगता है। सीमा शुल्क के एक बार फिर से प्रभावी होने से घरेलू तेल की कीमतों में उबाल आ सकता है, जो सीमा शुल्क की समाप्ति के बाद कुछ कम हो गया था। खाद्य तेल उद्योग ने सरकार से सीमा शुल्क को 7.5 और 37.5 फीसदी के दायरे में रखने की सिफारिश की है, ताकि किसान और क ारोबारियों दोनों का इसका लाभ मिल सके।
मिस्त्री ने भारत में न्यूनतम समर्थन मूल्य की गणना की प्रक्रिया पर आश्चर्य जताते हुए कहा कि यह तरीका तर्कसंगत नहीं है। बकौल मिस्त्री, खाद्य तिलहनों की कीमतों कम हैं और किसानों की इसकी खेती के लिए आकर्षित करने के लिए इनकी कीमतों में बढ़ोतरी आवश्यक है।
मिस्त्री ने कहा कि अगर खाद्य तेलों की कीमतों में कुछ बढ़ोतरी होती है तो हमें इसे स्वीकार करना चाहिए। भारत अपने 150 लाख टन रसोई तेल की जरूरतों को पूरा करने के लिए करीब इसका 45 फीसदी हिस्सा विदेश से आयात करता है। भारत पाम तेल की खरीदारी इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे देशों से करता है, जबकि सोयाबीन तेल का आयात अर्जेंटीना और ब्राजील से होता है।
पिछले कई सालों से तिलहन का उत्पादन आवश्यकता से कम हुआ है, जबकि जनसंख्या में बढ़ोतरी के साथ ही इनकी मांग दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। वैश्विक कीमतों में गिरावट की वजह से पिछले एक साल में प्रति व्यक्ति खाद्य तेल की खपत में 1।2 किलोग्राम की बढ़ोतरी हुई है जिसके इस साल 13 किलोग्राम तक पहुंच जाने की संभावना है। (बीएस हिन्दी)
30 सितंबर 2009
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