नई दिल्ली September 28, 2009
केंद्रीय उर्वरक विभाग नई उर्वरक सब्सिडी योजना की चरणबद्ध शुरुआत करने के पक्ष में है। इसके तहत पहले चरण में कंपनियों के बजाय रिटेलरों को सब्सिडी दी जानी है। जहां तक उर्वरक सब्सिडी सीधे किसानों को देने की बात है तो यह योजना अगले साल से ही लागू हो पाएगी।
दरअसल मौजूदा खरीफ सीजन के लिए उर्वरक की खरीद लगभग पूरी हो चुकी है और रबी का अगला सीजन कुछ ही दिनों में 1 अक्टूबर से शुरू होने वाला है। लिहाजा, उर्वरक विभाग बीच सीजन में मौजूदा योजना में कोई बदलाव न करने के पक्ष में है।
उर्वरक सचिव अतुल चतुर्वेदी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'इस साल उर्वरक सब्सिडी मौजूदा पद्धति के तहत ही दी जाएगी। क्योंकि रबी सीजन एक हफ्ते में शुरू होने वाला है और खरीफ सीजन लगभग पूरा हो चुका है।'
उन्होंने कहा कि सब्सिडी प्रणाली में बदलाव का आदर्श समय जनवरी से मार्च होना चाहिए। गौरतलब है कि वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने अपने बजट भाषण में जुलाई में कहा था कि सरकार मौजूदा उर्वरक सब्सिडी नीति में बदलाव करेगी। उनके मुताबिक, सरकार का इरादा पोषकयुक्त सब्सिडी योजना लागू करने का है। यही नहीं सब्सिडी कंपनियों को देने के बजाय सीधे किसानों को दी जाएगी। वित्त मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि योजना में बदलाव से सरकार पर सब्सिडी का बोझ घटने का अनुमान है। पिछले साल उर्वरक सब्सिडी 1.17 लाख करोड़ हो गई थी। ऐसा लागत में अनुमान से ज्यादा वृद्धि होने से हुआ था। नई प्रणाली में उर्वरक की कीमतें जहां घटेंगी-बढ़ेंगी वहीं किसानों को निश्चित पोषकतत्व आधारित सब्सिडी मिला करेगी। अब तक कीमत स्थिर रहती थी, लेकिन सब्सिडी में उतार-चढ़ाव होता रहता था।
चतुर्वेदी ने कहा नई प्रणाली शुरू करने से पहले परिचालन से संबंधित कुछ मुद्दों को सुलझाना होगा। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के नेतृत्व में मंत्रियों का एक समूह और 9 मंत्रालयों के प्रतिनिधियों को इससे जुड़े मामले सुलझाने का जिम्मा दिया गया है। उर्वरक विभाग मंत्रियों के समूह को पहले चरण के तहत उर्वरक सब्सिडी को रिटेलरों को देने का प्रस्ताव करने वाला है।
किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी की मात्रा किस आधार पर तय हो, इसे सुलझाया जाना था। चतुर्वेदी ने बताया, 'देश में करीब 14 करोड़ किसान हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और कृषि मंत्रालय किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी की मात्रा का फर्ॉम्यूला तय करेंगे।' सब्सिडी पाने के लिए जरूरी होगा कि किसानों का बैंक खाता हो और उनके नाम से जमीन हो।
उर्वरक की उत्पादन लागत का निर्धारण एक अन्य प्रमुख मुद्दा था। चतुर्वेदी के अनुसार, लागत 8 हजार से 20 हजार रुपये प्रति टन के बीच होती है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि उत्पादन के लिए गैस, नेफ्था या फर्नेस ऑयल किसका उपयोग किया जाता है।
हालांकि उर्वरक की कीमत एकसमान ही रहती है। उनके मुताबिक, 'निश्चित सब्सिडी की नीति से ऊंची लागत वाले संयंत्र लाभकारी नहीं रहेंगे। यदि सभी संयंत्रों में गैस पहुंचाई जाए तो भी इसमें 2 साल लग जाएंगे। ऐसे में संक्रमण काल का प्रबंधन करना होगा।' (बीएस हिन्दी)
28 सितंबर 2009
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