मानसून की देरी और त्योहारों का जल्दी आना लोगों के लिए दूध और उसके उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी के साथ उपलब्धता का संकट लेकर आया है। जहां दूध से लेकर मक्खन, घी और खोया की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है वहीं दूध की आपूर्ति बढ़ाने के लिए स्किम्ड मिल्क पाउडर (एसएमपी) के आयात का सहारा भी काम नहीं आ रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में पिछले दो माह में एसएमपी की कीमत में 40 फीसदी से अधिक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इसके अलावा टैरिफ रेट कोटा (टीआरक्यू) के तहत इसे पांच फीसदी सीमा शुल्क की रियायती दर पर आयात करने का विकल्प भी चालू वित्त वर्ष के लिए खत्म हो गया है। ऐसी स्थिति में इस साल त्योहारों का यह सीजन उपभोक्ताओं के लिए महंगा ही साबित होगा।
उद्योग सूत्रों के मुताबिक दूध के महंगा होने के पीछे मानसून की असफलता एक बड़ा कारण रही है। इसके चलते जहां हरे चारे की उपलब्धता काफी कम हो गई थी वहीं पशुचारे के रूप में इस्तेमाल होने वाले दूसरे विकल्पों के दाम 20 फीसदी तक बढ़ गये। दुग्ध सहकारी समितियों और निजी कंपनियों को किसानों को दूध की कीमत 22 रुपये प्रति लीटर तक देनी पड़ रही है। शुरुआती दिनों में तो दूध की आपूर्ति भी प्रभावित हुई।
एक और बड़ी वजह है त्योहारों का जल्दी आना। ईद, नवरात्र, दशहरा और दिवाली जैसे त्योहार इस साल पिछले साल से करीब 15 दिन पहले आ गये हैं। जिसके चलते दूध और दूध उत्पादों की मांग भी पहले ही आ गई। नतीजतन मांग और आपूर्ति का असंतुलन पैदा हो गया। यही वजह है कि पिछले एक माह में जहां देश के कई हिस्सों में मक्खन की उपलब्धता प्रभावित हुई है, वहीं कंपनियों ने इसके दाम में भी 30 रुपये किलो तक का इजाफा कर दिया। घी की कीमत 60 रुपये किलो तक बढ़ा दी गई। इसके अलावा बड़ी दूध कंपनियों ने दूध की खुदरा कीमतें भी बढ़ाईं।
दूध की आपूर्ति बढ़ाने के लिए एक और विकल्प है एसएमपी का आयात करना। लेकिन सूत्रों के मुताबिक इसकी कीमत पिछले दो माह में विश्व बाजार में 1600 से 1700 डॉलर प्रति टन के मुकाबले बढ़कर 2300 से 2400 डॉलर प्रति टन हो गई हैं। देश में इसकी आयात लागत 90 रुपये किलो से बढ़कर 125 रुपये किलो तक पहुंच गई है। कृषि मंत्रालय के एक सूत्र के मुताबिक टैरिफ रेट कोटा के तहत पांच फीसदी सीमा शुल्क की रियायती दर पर 10,000 टन एसएमपी आयात करने का विकल्प भी इस बार नहीं है। इसके लिए सरकारी एजेंसियों- नेफेड, एनडीडीबी, एमएमटीसी और एसटीसी को डीजीएफटी के पास 1 मार्च, 2009 को आवेदन देना था। इसके बाद डीजीएफटी द्वारा आयात की जाने वाली मात्रा का आवंटन 31 मार्च, 2009 तक करना था। लेकिन किसी भी सरकारी एजेंसी ने यह आवेदन नहीं किया। इसके चलते अब एसएमपी का आयात 60 फीसदी के सामान्य आयात शुल्क पर ही हो सकेगा। इस वजह से भी इस दिक्कत से बहुत जल्दी निजात मिलती नहीं दिख रही है। (बिज़नस Bhaskar)
29 सितंबर 2009
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