चंडीगढ़ September 22, 2009
किसानों की धान और गेंहूं की खेती की तरफ बढ़ते रुझान की वजह से प्रदेश की चीनी मिलों पर इसका प्रतिकूल असर पड रहा है।
हरियाणा में कुल 14 चीनी मिलें है जिसमें से 10 सहकारी क्षेत्र और 3 तीन निजी क्षेत्र के तहत आते हैं जबकि 1 हाफेड के साथ है। स्टेट फेडेरेशन ऑफ स्टेट शुगर मिल्स (शुगरफेड) के प्रबंध निदेशक जे पी कौशिक का कहना है कि पिछले तीन सालों के दौरान प्रदेश में गन्ने के रकबे में 65 फीसदी की कमी आई है।
कोऑपेरटिव मिल्स के तहत आने वाला क्षेत्र वित्त वर्ष 2009-10 में घटकर 82516 एकड रह गया है, जबकि वर्ष 2007-08 में यह क्षेत्र 221497 एकड़ था। यह इस बात को स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि किसान बेहतर कीमत मिलने वजह से गन्ने की बजाय धान और गेहूं की खेती पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं।
कौशिक का कहना है कि इसके परिणामस्वरूप वर्ष 2009-10 में 10 सहकारी चीनी मिलों द्वारा गन्ने की कुल पेराई वर्ष 2007-08 के 338 करोड रुपये के मुकाबले घटकर 118 लाख टन रह जाने की आशंका व्यक्त की जा रही है।
चीनों मिलों को गन्ने की कम उपलब्धता की वजह से प्रति दिन पेराई होने वाली चीनी की मात्रा कम हो गई है, जिसके परिणामस्वरूप चीनी मिल अपनी पुरी क्षमतानुसार गन्ने की पेराई नहीं कर पा रहे हैं और इस वजह से उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है।
बकौल कौशिक, इस साल छह सहकारी मिलें घाटे में चल रही थी लेकिन अगले एक को छोड़कर (शाहाबाद को-ऑपरेटिव शुगर्स मिल) सभी चीनी मिलों को नुकसान उठाना पड़ सकता है। सरस्वती नगर शुगर्स मिल्स के मुख्य परिचालन अधिकारी एस के सचदेवा कहते हैं कि किसानों के गेहूं और धान की फसलों को ज्यादा तरजीह देने से कंपनी को काफी मुश्किलों का सामना करना पड रहा है।
दिल्ली से 200 किलोमीटर उत्तर यमुनानगर जिले में स्थित सरस्वती नगर शुगर मिल तीन साल पहले प्रति दिन 13,000 टन गन्ने की पेराई कर सकने में सक्षम थी लेकिन अब स्थिति पहले जैसी नहीं रह गई है।
क्यों कम हो रही है गन्ने की खेती
किसानों को गेहूं और धान और गेहूं से ज्यादा मुनाफा मिलता है जो शायद गन्ने की खेती से संभव नहीं है। इस बाबत कौशिक कहते हैं 'हरियाणा सरकार अपने किसानों को सबसे अधिक राज्य समर्थन मूल्य (एसएपी) दे रही है लेकिन इसके बावजूद किसान गन्ने की खेती से मुंह मोड़ रहे हैं।'
वर्ष 2008-09 में हरियाणा सरकार ने गन्ने के लिए प्रति क्विंटल 185 रुपये के समर्थन मूल्य की घोषणा की थी। यह केंद्र सरका द्वारा दिए जाने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य के अतिरिक्त होती है। हालांकि, यह कीमत धान और गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्य की तुलना में काफी कम होती है।
वर्ष 2008-09 के लिए धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 850 रुपये प्रति क्विंटल जबकि गेहूं के लिए 1080 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित की गई थी। गन्ने की खेती में सबसे अधिक समस्या श्रमिकों को लेकर होती है।
एक ओर जहां धान और गेहूं की खेती वैज्ञानिक पध्दति से की जाती है जिससे श्रमिकों की समस्या का निपटारा असानी से हो जाता है लेकिन वहीं गन्ने की खेती में मजदूरों की कमी की समस्या परेशानी का सबब बनती है।
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के विभिन्न कार्यक्रमों से बेरोजगारी की समस्या कम करने में मदद मिली है। नरेगा के तहत मजदूरों को 100 दिन का रोजगार साल में मिलने लगा है। इसके चलते वंचित तबके के लोगों का रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में पलायन रुका है।
निश्चित रूप से पंजाब और हरियाणा में आने वाले मजदूरों की संख्या में कमी आई है और यहां पर मजदूरों का संकट खड़ा हो गया है। बहरहाल गेहूं और धान की खेती में मशीनों के प्रयोग के चलते मजदूरों की समस्या से कुछ हद तक निजात मिल गई है और किसान गेहूं और धान की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
कौशिक का कहना है कि गेहूं और धान की फसलों में मजदूरों का संकट मशीनीकरण से दूर हो गया है, जबकि गन्ने की खेती कर रहे किसान अभी भी इस समस्या से जूझ रहे हैं। कौशिक का कहना है कि किसानों को सब्सिडी दी जानी चाहिए, जिससे वे गन्ने की खेती से पलायन न करें। साथ ही मजदूरों की समस्या का समाधान भी मशीनीकरण के विकास से किए जाने की जरूरत है। (बीएस हिन्दी)
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