मुंबई September 28, 2009
इस साल खरीफ की फसल की बुआई के दौरान उम्मीद से बहुत कम बारिश हुई। बाद में बारिश हुई भी तो किसानों ने कहा- का वर्षा जब कृषि सुखाने। अब किसानों के साथ सरकार ने भी रबी की फसलों के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं।
उम्मीद की जा रही है कि इस साल रबी की फसल कुछ हद तक खरीफ के नुकसान की भरपाई कर देगी। खरीफ के नुकसान और रबी की फसलों से बढ़ी उम्मीदों का एक जायजा ...
इस साल मॉनसून की दगाबाजी ने फसलों की बुआई पर बुरा असर डाला है। धीरे धीरे मॉनसून में थोड़ा सुधार और फसलों में बदलाव करके कुछ हद तक खरीफ फसलों का उत्पादन कम होने के खतरे पर काबू पाया गया है।
अगस्त महीने में अनुमान लगाया गया था कि इस बार बुआई कम होने के कारण सामान्य से 30 फीसदी कम उत्पादन होने वाला है लेकिन अगस्त के अंत और सितंबर के शुरू में अच्छी बारिश के कारण यह आशंका कम होकर 17 फीसदी रह गई है।
कृषि मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार फसलों की बुआई में काफी हद तक सुधार हुआ है। अगस्त महीने के अंतिम दिनों से सक्रिय हुए मॉनसून की वजह से बुआई क्षेत्रफल बढ़ा है। कृषि मंत्रालय के इन आंकड़ों में दावा किया गया है कि इस वर्ष सामान्य बुआई रकबे की तुलना में 85 फीसदी क्षेत्र में फसलों की बुआई की गई है जो पिछले साल के बुआई रकबे से महज 8 फीसदी कम है।
हालांकि इस सीजन की सबसे प्रमुख फसल धान की रोपाई पिछले साल से भी 17.4 फीसदी कम क्षेत्र में हुई है। धान की रोपाई का सामान्य क्षेत्रफल 391.97 लाख हेक्टेयर है जिसमें से इस बार 302.2 लाख हेक्टेयर में ही रोपाई हो सकी है जबकि पिछले साल 365.8 लाख हेक्टेयर में धान की फसल खड़ी थी।
बारिश और फसलों की बुआई कम ज्यादा होने की खबरों से खाद्य पदार्थों की कीमतों केसाथ इनका बाजार भी प्रभावित होता रहा है। कृषि जिंसों का वायदा बाजार मॉनसून की आंख मिचौनी के बीच हिचकोले खाता रहा है। लेकिन कृषि जिंसों के कारोबार की रफ्तार दर्शाने वाला सूचकांक दिन प्रति दिन मजबूत होता रहा है।
इस साल जनवरी से एमसीएक्स कॉमेक्स करीब 44 फीसदी जबकि कृषि सूचकांक 34 फीसदी ऊपर गया है। मॉनसून सीजन केदौरान कॉमेक्स ने 27.27 फीसदी और कृषि सूचकांक ने 20.22 फीसदी तक की ऊंची उछाल लगाई।
शेयर खान ब्रोकिंग फर्म के कमोडिटी हेड मेहुल अग्रवाल का मानना है कि मॉनसून की गड़बडी और कम बुआई का असर उत्पादन पर भी पड़ने वाला है जो कीमतों को भी प्रभावित करेगा। लेकिन अच्छी बात यह है कि शुरुआती दौर में जो स्थिति विकराल दिखाई दे रही थी, वह काफी हद तक सामान्य हुई है।
पहले अनुमान लगाया जा रहा था कि 20 फीसदी उत्पादन कम होगा। अगस्त महीने में यह आशंका 30 फीसदी तक पहुंच गई लेकिन मेघों के मेहरबान होने से स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ है। अब लगता है कि करीब 17-18 फीसदी कम उत्पादन होगा।
पिछले साल की अपेक्षा इस बार किसानों ने दलहन की फसल को प्रथामिकता दी है जिसकी वजह पिछले कुछ महीनों से दालों की आसमान छूती कीमतें हैं। पिछले साल खरीफ सीजन में दालों का उत्पादन 48 लाख टन था जो इस बार पांच फीसदी ज्यादा हो सकता है।
अग्रवाल कहते हैं कि सरकार द्वारा स्टॉक लिमिट तय करने और जमाखोरों के खिलाफ सख्त दिखाने का भी असर होगा और नवंबर तक दालों की कीमतें कुछ गिरेंगी। हालांकि चावल खरीदना जेब पर भारी ही रहने वाला है।
ऐंजल ब्रोकिंग के कमोडिटी हेड अमर सिंह का कहना है कि फसल कमजोर होने का असर कारोबार पर न के बराबर पड़ने वाला है। कमोडिटी एक्सचेंजों में कारोबार और बढ़ने वाला है क्योंकि लोगों में जागरुकता फैल रही है जिससे छोटे-छोटे शहरों के लोग भी इस कारोबार से जुड़ रहे हैं जिससे यह कारोबार भी बढ़ रहा है।
दो साल पहले तक कमोडिटी वायदा कारोबार करने वाले लोगों की सख्या 25-30 हजार थी जो आज एक लाख से अधिक हो चुकी है और यही वजह है कि जिंस बाजारों में कारोबार भी तेजी से बढ़ रहा है।
दो साल पहले तक भारत में कमोडिटी एक्सचेंजों में हर दिन 15-16 करोड़ रुपये का कारोबार होता था जो आज 30-35 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। और आने वाले दो सालों में यह दोगुना हो सकता है।
सिंह कहते हैं कि एक्सचेंजों से फायदा सभी को हुआ है। कारोबार नहीं करने वाले गांवों के किसानों को भी फायदा पहुंचा है क्योंकि अब उनको बाजार में कीमतें क्या है, पता रहता है। लोगों की उत्सुकता को देखते हुए कहा जा सकता है कि कमोडिटी एक्सचेंजों के कारोबार का भविष्य बहुत अच्छा है लेकिन कृषि कमोडिटी का विकास ज्यादा नहीं होने वाला है क्योंकि इसमें सरकारी हस्तक्षेप बहुत है। (बीएस हिन्दी)
29 सितंबर 2009
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