नई दिल्ली September 21, 2009
मक्के की घरेलू खपत और निर्यात की बढ़ती जरूरतों को देखते हुए मक्का वैज्ञानिक मक्के के एकल संकरित बीज को बढ़ावा दे रहे हैं, जिससे उत्पादन में बढ़ोतरी हो सके।
एकल संकरित मक्के के बीज पहली पीढ़ी के बीज होते हैं, जिन्हें आनुवांशिक रूप से भिन्न दो तरह के मक्के को संकरित कराकर तैयार किया जाता है। मक्के की तमाम ऐसी किस्में हैं, जिन्हें कई तरह की किस्मों को संकरित कराकर तैयार किया जाता है। वहीं एकल संकरित मक्के की किस्म में दो किस्म के बीजों को संकरित कराया जाता है।
देश की विभिन्न जलवायु में बुआई के लिए अनुकूल एकल संकरित मक्के के बीजों का विकास हाल के दिनों में सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा किया गया है। सबसे खास बात यह है कि बीजों के उत्पादन की इस तकनीक को किसानों को आसानी से समझाया जा सकता है, जिससे वे खुद बीज का उत्पादन कर सकते हैं।
2008 में एकल संकरित मक्के की 4 किस्मों का विकास किया गया और उसे खेती के लिए विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों ने अनुसंशित किया। इसके अलावा 2007 में इस तरह की 10 और किस्मों का विकास किया गया, साथ ही इसके पहले के वर्र्षों में भी कुछ किस्मों का विकास किया जा चुका है।
नई दिल्ली स्थित मक्का शोध निदेशालय के मुताबिक एकल संकलित किस्म की उत्पादकता बहुत ज्यादा होती है और उत्पादन लागत भी कम आती है। इनमें बायोटिक और एंटीबायोटिक स्ट्रेस की अच्छी क्षमता होती है, साथ ही सूखे से निपटने, अधिक तापमान, और कीड़ों-मकोड़ों के प्रति भी ये प्रतिरोधी होते हैं।
मक्का निदेशालय के प्रमुख सेन दास ने कहा कि एकल संकरित बीज की बुआई मक्के की बुआई के कुल 80 लाख हेक्टेयर जमीन के 20 प्रतिशत हिस्से में होता है, लेकिन इतने से ही मक्के की उत्पादकता में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। अगर बीज की उपलब्धता सुनिश्चित हो जाए तो कहीं और ज्यादा इलाके में इसकी खेती होगी। एकल संकरित मक्के की किस्मों को बढ़ावा देने में स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र भी जुटे हुए हैं।
इस हाइब्रिड किस्म को बढावा देने और बीज तैयार करने के लिए किसानों के स्वयं सहायता समूह भी बने हैं। निजी-सार्वजनिक हिस्सेदारी (पीपीपी) के तहत भी एकल संकरित मक्के के बीज को बढ़ावा दिया जा रहा है। देश के हर जिले में पहले से ही किसान विकास केंद्र बने हुए हैं।
मक्का शोध निदेशालय ने इस बीज को बढ़ावा देने के लिए दिल्ली में पिछले शुक्रवार को राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया, जिसमें किसान विकास केंद्रों को संकरित मक्का तकनीक के बारे में नई जानकारियां दी गईं। एकल संकरित मक्के के बीज तैयार करना भी फायदे का सौदा है।
इन बीजों को तैयार करने में प्रति किलो खर्च 25 रुपये आता है, वहीं इसकी बिक्री 55 रुपये किलो के हिसाब से होती है। इस हिसाब से किसान प्रति हेक्टेयर 52,500 रुपये मुनाफा कमा सकते हैं। हाल के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 2008-09 में मक्के का कुल क्षेत्रफल रिकॉर्ड 192.9 लाख हेक्टेयर रहा है, जो 2007-08 के 189.6 लाख हेक्टेयर और 2006-07 के 151 लाख हेक्टेयर से बहुत ज्यादा है।
उत्पादन अधिक होने की वजह से किसान इसकी खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं। दास ने कहा कि रबी मौसम में पानी की कमी की वजह से धान की फसल प्रभावित हुई, जिससे किसानों का ध्यान मक्के की ओर आकर्षित हुआ। कर्नाटत और कुछ अन्य राज्यों में कपास और धान के क्षेत्रफल में कमी आई है और वहां किसानों ने मक्के की खेती करनी शुरू कर दी है।
दास ने कहा कि भारत में मक्के के संकरित बीज के निर्यात की अपार क्षमता है। 2008-09 में अनुमानित रूप से करीब 12,000 टन मक्के के बीज का निर्यात हुआ, जिसकी कीमत करीब 2000 करोड़ रुपये है।
देश से खास किस्म के मक्के के बीज- जैसे स्वीट कॉर्न और बेबी कॉर्न का निर्यात हो रहा है। भारत से बेबी कॉर्न के खरीदारों में ब्रिटेन सबसे बड़ा खरीदार बनकर उभरा है। आंकड़ों के मुताबिक बेबी कॉर्न का निर्यात 2008 में करीब 267 टन रहा है, जिसकी कीमत 10 लाख रुपये है। (बीएस हिन्दी)
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