लखनऊ September 28, 2009
इस साल खरीफ की फसल की बुआई के दौरान उम्मीद से बहुत कम बारिश हुई। बाद में बारिश हुई भी तो किसानों ने कहा- का वर्षा जब कृषि सुखाने। अब किसानों के साथ सरकार ने भी रबी की फसलों के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं।
उम्मीद की जा रही है कि इस साल रबी की फसल कुछ हद तक खरीफ के नुकसान की भरपाई कर देगी। खरीफ के नुकसान और रबी की फसलों से बढ़ी उम्मीदों का एक जायजा ...
उत्तर प्रदेश में बुआई के समय बारिश न होने के चलते इस साल खरीफ और खास तौर पर धान की पैदावार आधी रह जाने का आकलन किया गया है। कमजोर खरीफ की फसल के अनुमान के बीच इस बार किसानों के साथ-साथ कृषि विभाग के अधिकारियों की सारी की सारी आशा अब रबी की फसल से है।
राज्य सरकार ने रबी की बुआई के रकबे को बीते साल के मुकाबले बढ़ाकर 125 फीसदी करने की ठानी है। अगस्त और सितंबर में हुई बारिश के चलते खेतों में रहने वाली पर्याप्त नमी से उन्हें उम्मीद की किरणें दिखाई दी हैं। पिछले साल भी सूबे में रिकॉर्ड गेहूं की पैदावार हुई थी और कृषि विभाग के अधिकारियों का इरादा इस साल फसल उत्पादन को और ज्यादा करने का है।
राज्य में पिछले साल रिकॉर्ड 276 लाख टन गेहूं की पैदावार हुई थी। इस बार लक्ष्य 290 लाख टन रखा जा रहा है। राज्य के कृषि मंत्री चौधरी लक्ष्मी नारायण ने अभी से यूरिया और डीएपी की उपलब्धता बनाए रखने के निर्देश दिए हैं। उनका कहना है कि रबी की बुआई के लिए 10 लाख टन यूरिया और 4.5 लाख टन डीएपी खाद की जरूरत होगी, जिसका इंतजाम कर लिया गया है।
कृषि विभाग के एक आकलन के मुताबिक इस बार उत्तर प्रदेश में खरीफ का उत्पादन बीते साल के मुकाबले आधा ही रह जाएगा। बीते साल के 163.49 लाख टन के मुकाबले इस साल खरीफ का उत्पादन 83.02 लाख टन ही होगा।
खरीफ की सभी फसलों- धान, मक्का, ज्वार, बाजरा, उडद, मूंग, अरहर, मूंगफली, तिल और सोयाबीन के उत्पादन में भारी कमी का आकलन कृषि विभाग ने किया है। गौरतलब है कि इस साल बारिश न होने से करीब 20 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की रोपाई और बुआई नहीं की जा सकी है।
सूखे का सबसे ज्यादा असर तो धान की फसल पर होने वाला है जहां फसल क्षेत्र में तो कमी 33 फीसदी के करीब है पर उत्पादन में 50 फीसदी की कमी का आकलन किया गया है। बीते साल 60.12 लाख हेक्टेयर भूमि पर धान बोया गया और उत्पादन 130.51 लाख टन का था जबकि इस साल अब तक 45 लाख हेक्टेयर भूमि पर धान बोए जाने की खबर है और उत्पादन घटकर 56.92 लाख टन रह जाने का आकलन किया गया है।
हालांकि कृषि विभाग का कहना है कि हो सकता है आने वाले दिनों में उत्पादन में 10 से 15 फीसदी का सुधार हो जाए पर कुल मिलाकर बीते साल के मुकाबले उत्पादन आधा ही रहेगा। साधन कृषि सहकारी समिति तुलसीपुर, देवीपाटन मंडल के विभूति राज सिंह का कहना है कि देर से हुई बारिश ने धान को तनिक भी फायदा नहीं पहुंचाया है।
उनका कहना है कि देर की बारिश के बाद अब सारी आशा गेहूं की फसल पर टिकी है। साथ ही उनका कहना है कि सरसों, मसूर और चने की फसल भी अच्छी होने के आसार हैं। बाराबंकी के गांव पपनामऊ के किसान राजेश कुमार सिंह भी अच्छी रबी की फसल को लेकर आशान्वित हैं। उनका कहना है कि खेत खाली होने के चलते सरसों की फसल लेने के बाद भी इस बार गेहूं की बुआई करने लायक पर्याप्त नमी मिलेगी।
उत्तर प्रदेश में खेती की बदहाली यहीं पर नहीं रुकती है। चीनी उत्पादन में देश में अग्रणी राज्यों में शुमार उत्तर प्रदेश में किसान बीते दो सालों से गन्ने की खेती से मुंह मोड़ रहे थे। इस साल सूखे ने स्थिति कोढ़ में खाज जैसी कर दी है।
बीते साल (2008-09) में गन्ने की बुआई 21.40 लाख हेक्टेयर में की गयी थी जबकि 2009-10 में यह घट कर 17.88 लाख हेक्टेयर रह गयी है। इसके चलते बीते साल के 1107 लाख टन गन्ने के मुकाबले इस साल पैदावार घटकर 900 लाख टन रह जाने का अनुमान है।
इस बार भी पैदावार कम रहने को देखते हुए बाजार में चीनी के दामों में भी रिकॉर्ड तेजी देखी जा रही है। इस समय खुले बाजार में चीनी के दाम 34 रुपये किलो तक जा पहुंचे हैं। (बी स हिन्दी)
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