नई दिल्ली : घाटे में चल रही सार्वजनिक क्षेत्र की उर्वरक इकाइयों के जीर्णोद्धार के एक प्रस्ताव पर वित्त मंत्रालय ने ब्रेक लगा दिया है। सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के पुनर्गठन के लिए बने बोर्ड (बीआरपीएसई) ने सरकार से उर्वरक इकाइयों को फंड उपलब्ध कराने की मांग की थी जिसे मंत्रालय ने ठुकरा दिया है। बीआरपीएसई के प्रस्ताव के मुताबिक, बीमार उर्वरक इकाइयों को फिर से चालू करने में करीब 50,000 करोड़ रुपए की लागत आएगी। इस फंड को सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों में विनिवेश के जरिए जुटाने का प्रस्ताव था। लेकिन इस प्रस्ताव को वित्त मंत्रालय ने खारिज कर दिया। इससे पैदा हुए हालात को देखते हुए अब उर्वरक मंत्रालय को इन इकाइयों के पुनरुद्धार के लिए निजी साझेदारों को साथ जोड़ने पर विचार करना पड़ेगा।
वित्त मंत्रालय के एक आला अधिकारी ने बताया, 'बीआरपीएसई से इकाइयों के पुनर्गठन और उसे आधुनिक तकनीक से लैस करने का प्रस्ताव आया था। कई राज्यों में सार्वजनिक क्षेत्र की सात उर्वरक कंपनियों की इकाइयां फैली हैं। उन्हें फिर से चालू करने में करीब 50,000 करोड़ रुपए की लागत आएगी। इस समय सरकार गंभीर राजकोषीय घाटे के दौर से गुजर रही है और वह फिलहाल इस पर रकम खर्च करने की स्थिति में नहीं है।' इस समय देश का राजकोषीय घाटा 16 साल में सबसे अधिक 6।8 फीसदी के स्तर पर पहुंच गया है। वित्त मंत्रालय के अधिकारी ने बताया कि बीमार इकाइयों को फिर से चालू करने के लिए सरकार की ओर टकटकी लगाने के बजाय उर्वरक मंत्रालय को सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की कंपनियों से नजदीकी बढ़ानी चाहिए। इकाइयों को चालू करने के लिए मंत्रालय को निविदा आमंत्रित करनी चाहिए। उर्वरक की सात इकाइयों हल्दिया, तलचर, रामागुंडम, दुर्गापुर, गोरखपुर, कोरबा और सिंदरी में से प्रत्येक का सालाना यूरिया उत्पादन 10.15 लाख टन का है। ये इकाइयां इस समय बंद हैं। फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया और हिन्दुस्तान फर्टिलाइजर कॉरपोरशन की इकाइयों को चालू करने के लिए उर्वरक मंत्रालय गैस उपलब्ध कराने पर विचार कर रहा है। उर्वरक मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि चालू होने की स्थिति में प्रत्येक इकाई को करीब 20.2 लाख मीट्रिक स्टैंडर्ड क्यूबिक मीटर गैस प्रति दिन लगेगी। इससे पहले योजना आयोग से एक प्रस्ताव आया था कि बीमार उर्वरक इकाइयों को लीज, रिहैबलिटेट, ऑपरेट एडं ट्रांसफर (एलआरओटी) मॉडल के जरिए चलाया जाना चाहिए। इसका मतलब है यह हुआ कि इकाइयों को लीज पर लेने वाली कंपनी पहले उसे दुरुस्त करे, फिर उसे संचालित कर तय शर्तों के मुताबिक इन इकाइयों को मूल कंपनी को हस्तांतरित कर दे। (इत हिन्दी)
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