आम तौर पर सुरक्षित ठिकाना बताया जाने वाला सोना इन दिनों भावी खरीदारों और बिकवालों की रातों की नींद उड़ाए हुए है। यह समस्या वैल्यूएशन से जुड़ी है। खरीदार को इस बात की जानकारी नहीं है कि कौन सी कीमत खरीदारी के लिए सही है और बिकवाल इस बात को लेकर परेशान हैं कि उन्हें किस दाम पर यह कीमती धातु बेचनी चाहिए। सोने की कीमतें फिलहाल 16,000 रुपए प्रति 10 ग्राम के चारों ओर घूम रही हैं, जो पिछले साल की तुलना में 30 फीसदी ज्यादा है। तेल और इक्विटी के साथ सोने का ऐतिहासिक रिश्ता छोटी अवधि में तनाव दिखा रहा है, इसलिए इस कमोडिटी में बुलबुला बनने का डर पैदा हो गया है। औद्योगिक संस्थान एसोचैम का अनुमान है कि त्योहारों के दौरान सोने के दाम 18,000 प्रति दस ग्राम तक पहुंच जाएंगे, जिसका श्रेय मजबूत मांग और कम अंतरराष्ट्रीय उत्पादन को दिया जा रहा है। भविष्य में सोने की कीमतें किस दिशा में जाएंगी, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन वैकल्पिक एसेट क्लास के तौर पर हमारा नजरिया पेश है। उम्मीद है कि इससे ग्राहकों और बिक्री करने वालों को यह फैसला करना आसान होगा कि मौजूदा हालात में सोना खरीदा-बेचा जाए या नहीं।
सबसे पहले सोने के दामों का फैसला किसी भी दूसरी कमोडिटी की तरह मांग-आपूर्ति के पैमाने से होता है। मांग जहां गहनों (फैब्रिकेशन) से मिलती है, वहीं बिक्री खनन और कबाड़ बेचने से आती है। भारत सोने का आयात करता है, इसलिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सोने के दामों को मौजूदा विदेशी विनिमय दर से बदलकर भारतीय रुपए में तय किया जाता है और उसके बाद कस्टम, ऑक्ट्राय, सेल्स टैक्स जैसे जरूरी शुल्क और कर जोड़े जाते हैं। लंदन बुलियन मार्केट एसोसिएशन दिन में दो बार सोने के दाम जारी करती है। शाम चार बजे और रात साढ़े आठ बजे। इसे आम तौर पर रेफरेंस रेट के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। खुदरा कीमत तक पहुंचने के लिए रीटेलर इसमें रीटेल प्रीमियम जोड़ते हैं। यही वजह है कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में सोने की अमेरिकी डॉलर में कीमत और भारतीय रुपए का मौजूदा कन्वर्जन रेट भारत में रीटेल कीमतों पर काफी गहरा असर डालता है। हाजिर बाजार के अलावा सोने की ट्रेडिंग वायदा, ऑप्शन और एक्सचेंज टेडेड फंड के जरिए भी होती है। भारत में मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज ऑफ इंडिया (एमसीएक्स) और नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव (एनसीडीईएक्स) सोना वायदा और ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट मुहैया कराते हैं। भारत ज्वैलरी के रूप में सोने का उपभोग करने वाला सबसे बड़ा देश है। पोर्टफोलियो इंश्योरेंस हालांकि, सोने के भविष्य को लेकर कुछ भी नहीं कहा जा सकता, लेकिन पर्सनल फाइनेंस विशेषज्ञों का कहना है कि सोना इसके बावजूद निवेशक के पोर्टफोलियो का हिस्सा हो सकता है, क्योंकि डायवर्सिफिकेशन करने की इसकी ताकत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। एक स्वतंत्र निवेश विशेषज्ञ और क्वांटम एएमसी के पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी देवेंद नेव्गी ने कहा, 'इससे पोर्टफोलियो का जोखिम कम होता है। साल 2008 में जब सेंसेक्स 50 फीसदी से ज्यादा गिरावट झेल चुका था, सोने के दाम करीब 30 फीसदी बढ़े थे।' रिकॉर्ड बजट घाटे की वजह से अमेरिकी डॉलर में कमजोरी की वजह से आगामी महीनों में सोना नई ऊंचाइयां छू सकता है। इसके अलावा फेडरल रिजर्व के धड़ाधड़ नोट छापने और मुद्रास्फीति से जुड़े अनुमान बढ़ने के कारण भी सोने की चमक में इजाफा हो सकता है। मुद्रास्फीति के सामने पारंपरिक ढाल की भूमिका अदा करने वाला सोना, अमेरिकी डॉलर से उलट रिश्ता रखता है। नेव्गी ने कहा, 'अगर अमेरिकी या चीनी हाउसहोल्ड एसेट का 1 फीसदी अंश भी सोने की ओर जाता है, तो सुनहरी धातु के दामों में गजब की बढ़ोतरी देखने को मिलेगी।' दूसरे विश्लेषक भी इस राय से इत्तफाक रखते हैं। उनका कहना है कि प्रमुख मुदाओं में कम ब्याज दरें, सोने को वैकल्पिक निवेश उत्पाद के तौर पर काफी मदद दे रही हैं। कोटक कमोडिटी सविर्सेज में तकनीकी एनालिस्ट धमेर्श भाटिया ने कहा, 'सोने के दामों में उछाल बाजार में बनने वाले बुलबुले का हिस्सा है। हालांकि, अगर बाजार में तरलता ऊंचे मुकाम पर बनी रह सकती है, तो यह बुलबुला आगे भी बढ़ सकता है।' एनालिस्ट अनुमान जता रहे हैं कि सोने की कीमत मध्य से लंबी अवधि में 18,000 रुपए प्रति दस ग्राम का स्तर छू सकती है। ज्यादा उत्साह ठीक नहीं सोना भले ही निवेश के लिहाज से माकूल उत्पाद मालूम दे, लेकिन विश्लेषकों का एक धड़ा ऐसा भी है, जिसका मानना है कि मौजूदा स्थिति में इस धातु के ज्यादा करीब जाने पर अंगुलियां जल सकती हैं। अगर अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारतीय रुपए में काफी मजबूती आती है, तो इससे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अमेरिकी डॉलर में कीमत में इजाफा होने का फायदा खत्म हो जाएगा। इसके अलावा वास्तविक ज्वैलरी की मांग नहीं बढ़ती और स्क्रैप बिक्री में ज्यादा बढ़ोतरी होती है, तो ऐसा होने पर कीमतों में भारी गिरावट देखने को मिल सकती है। संयोग से दुनिया भर के केंदीय बैंक अब सोने की कीमतों की गर्मी उतारने के लिए अपने हिस्से का काम कर रहे हैं। नेव्गी ने कहा, 'यह पेपर करेंसी से प्रतिस्पर्धा करने वाली प्रॉक्सी करेंसी है, इसलिए ऐतिहासिक रूप से इन बैंकों ने सोने में ज्यादा उछाल का लुत्फ नहीं लिया है और दखल देकर इसकी रफ्तार कम करने की कोशिश भी की है।' उनका मानना है कि सोना तथाकथित बुलबुलों की ओर नहीं बढ़ेगा। तर्क यह है कि एसेट बुलबुले में काफी ज्यादा सट्टेबाजी की वजह से भारी रिटर्न मिलता है, जो फिलहाल सोने के मामले में देखने को नहीं मिल रहा। नेव्गी ने कहा, '1975 से अमेरिकी डॉलर में सोने ने 5 फीसदी से कम रिटर्न दिया है, जबकि अमेरिकी शेयर बाजारों ने साल 2008 तक सोने की तुलना में दोगुना मुनाफा दिया।' ऐतिहासिक रिश्तेदारी छोटी अवधि में टूट जाती है, खास तौर से ऐसे हालात में जब अतिरिक्त तरलता स्थिति को असामान्य बना दे। आगामी दिनों में भले सोने चमके या चुप होकर बैठ जाए, लेकिन सुरक्षित ठिकाने के तौर पर उसकी विश्वसनीयता को लंबी अवधि में कोई चुनौती नहीं दी जा सकती। कम से कम फिलहाल के लिए तो ऐसा कहा ही जा सकता है। (इत हिन्दी)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें