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06 अगस्त 2009

कच्चा पाम तेल : जारी रहेगी अस्थिरता

मुंबई August 05, 2009
चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में कच्चे पाम तेल (सीपीओ) की कीमतों को 2000 रिंगेट पर समर्थन मिल सकता है। इंडोनेशिया और मलेशिया से इसकी अतिरिक्त आपूर्ति की संभावना दूसरी छमाही में है।
गोदरेज इंटरनैशनल के निदेशक दोराब मिस्त्री ने मलेशिया-तुर्की पाम आयल ट्रेड फेयर में इस्तांबुल में कहा कि अनुमान है कि कच्चे पाम तेल के दो उत्पादक देशों इंडोनेशिया और मलेशिया में 38.6 लाख टन अतिरिक्त पाम ऑयल का उत्पादन होगा। इसका सीधा मतलब यह हुआ कि जुलाई से दिसंबर तक पूरी दुनिया में करीब 640,000 टन पाम आयल की प्रति माह अतिरिक्त खपत होगी।
बहरहाल, पहली छमाही के दौरान इन दो देशों ने कुल 174.4 लाख टन कच्चे पाम तेल का उत्पादन किया है, वहीं दूसरी छमाही में कुल उत्पादन 212.8 लाख टन रहने का अनुमान है। मिस्त्री का मानना है कि वर्तमान 14 लाख टन की छमता अगस्त के मध्य तक बरकरार रहेगी, इसके चलते कीमतें 3000 रिंगेट तक पहुंच सकती हैं।
मलेशियाई पाम ऑयल की कीमतें वायदा कारोबार में 5 सप्ताह के उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी हैं। अक्टूबर महीने का ब्रूसा मलेशिया डेरिवेटिव्स एक्सचेंज इस सत्र के अधिकतम स्तर 2,345 रिंगेट पर पहुंच गया। यह स्तर 26 जून के बाद कभी नहीं पहुंचा था, लेकिन 2,304 रिंगेट पर स्थिरता देखी गई।
मिस्त्री का अनुमान है कि सीपीओ को मजबूत वैश्विक धारणा से समर्थन मिल सकता है। अर्जेंटीना में सूखे की वजह से सोयाबीन की फसल खराब हो गई और यह 470 लाख टन से कम होकर 320 लाख टन रहने का अनुमान है। इसके साथ ही अमेरिका में भी इसके क्षेत्रफल में कमी होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
सबसे महत्वपूर्ण यह है कि खाद्य तेलों का भारतीय आयात और खपत तेजी से बढ़ा है। इसकी प्रमुख वजह शुल्क मुक्त आयात और कम कीमतें हैं। अब ऐसा माना जा रहा है कि भारत में प्रति व्यक्ति खपत 1.4 किलोग्राम प्रति व्यक्ति हो जाएगी। इस साल भारत में केवल 35 से 40 लाख टन वनस्पति तेल होने का अनुमान है।
सोयाबीन और मूंगफली को मिलाकर संयुक्त रूप से वनस्पति तेल का उत्पादन 20 लाख टन से भी औसतन कम है। अगर यह फसलें बुरी तरह से प्रभावित होती हैं और उत्पादन में 20 प्रतिशत की गिरावट आती है तो गिरावट 4 लाख टन की होगी।
कुल मिलाकर यह बड़ी बात नहीं होगी। अगर खाद्यान्न, सब्जियों और अन्य खाद्य जिंसों की कीमतें बढ़ती हैं तो भारत में प्रसिध्द कीमतों के प्रति संवेदनशील मांग इस कमी को संभाल लेगा और भारत को बहुत ज्यादा आयात बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। (BS Hindi)

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