August 04, 2009
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने इस साल विश्व की अर्थव्यवस्था में 1.4 फीसदी की गिरावट आने की बात क ही है।
अगर यह अनुमान सही साबित हुआ तो 1945 के बाद पहली बार ऐसा होगा जब वैश्विक अर्थव्यवस्था में गिरावट आएगी। कारोबार के लिहाज से कठिन माहौल में तांबे की कीमतों में इस साल जनवरी के बाद से 80 फीसदी की तेजी आ सकती है।
साथ ही किसी खास समय में इसकी कीमत साल के सबसे उच्चतम स्तर यानी 5,645 डॉलर प्रति टन के स्तर पर पहुंचने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। यूबीएस ब्लूमबर्ग कमोडिटी सूचकांक में तांबे का प्रदर्शन सबसे बेहतर रहा है। लेकिन इसके बाद भी पिछले साल के स्तर पर लौटने के लिए तांबे के कारोबार में और ज्यादा तेजी आने की आवश्यकता है।
जुलाई 2008 में तांबे की कीमत आश्चर्यजनक रूप से काफी ऊपर चली गई थी, इतना ही नहीं अन्य आधार धातुएं और इस्पात की कीमतों में भी उछाल देखने को मिला था। एल्युमीनियम की कीमतों में भी काफी सुधार आया है और यह पिछली कीमत यानी 1,800 डॉलर प्रति टन के स्तर को पार करने में कामयाब रहा है।
अगर इसकी कीमत 1,900 डॉलर प्रति टन पार कर जाती है तो कारोबारियों को इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। इतना ही नहीं निकट भविष्य में कीमतें 2,000 डॉलर प्रति टन के स्तर को भी पार कर सकती है।
तांबे की कीमत में आई उछाल के लिए एक बार फिर चीन को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। चीन के स्टेट रिजर्व ब्यूरो ने इस साल के शुरू से आयात के जरिये तांबे की खरीदारी कर रही है। तांबे की कम कीमतों का फायदा उठाकर चीन अपने तांबे भंडार में रणनीतिक तौर पर बढ़ोतरी करने में जुटा है।
इस साल की पहली छमाही में चीन ने चीन ने 17.8 लाख टन तांबे का आयात कर चुका है जबकि, जून में यह आंकड़ा अपने रिकॉर्ड स्तर यानी 378,943 टन के स्तर को पार कर गया है। चीन और साथ में भारत अन्य देशों के मुकाबले वैश्विक आर्थिक संक ट का डटकर सामना किया है।
साथ ही 585 अरब डॉलर के राहत पैकेज की वजह से चीन में औद्योगिक क्रियाकलापों में काफी तेजी आई है, नतीजतन इस साल चीन में तांबे की मांग 8 फीसदी की तेजी के साथ 400,000 टन हो जाने की संभावना है।
लेकिन कारोबारियों को इन कयासों का सामना करना पड रहा है कि चीन में तांबे के आयात में पहली छमाही में 180 फीसदी की तेजी आ सकती है। इसमे कोई संदेह नहीं कि रणनीतिक भंडारण और अपनी घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद चीन केपास काफी मात्रा में तांबा का भंडार शेष रह जाएगा जिसका इस्तेमाल यह मुनाफा कमाने के लिए कर सकता है।
आयात में बढ़ोतरी होने की स्थिति में, जैसे कि चीन में हुआ है, इस बात का खतरा होगा कि बाकी बचे तांब को मुनाफा कमाने के लिए बाजार में फिर से बेचा जा सकता है, साथ ही भविष्य में खपत को लेकर बाजर में कारोबारियों के विश्वास पर भी असर पड़ सकता है।
पहले भी ऐसा पाया गया है चीन ने तांबे के भंडारण कर तुरंत इसकी बिकवाली करने से भी गुरेज नहीं किया है। अब सवाल उठता है की चीन में अतिरिक्त तांबे के बचने की स्थिति में इस बात की क्या गारंटी है कि चीन दोबारा ऐसा नहीं करेगा? इसलिए अपने पास तांबे का पर्याप्त भंडार जुटा लेने के बाद अगर चीन आयात में कमी करता है तो तांबे की कीमतों में कमी आ सकती है।
इंटरनैशनल कॉपर स्टडी समूह द्वारा खानों की सालाना औसत क्षमता के अगले पांच सालों के अनुमान को पूर्व के 5 फीसदी से घटाकर 3.8 फीसदी किए जाने से धातुओं की कीमतों पर इसका कुछ असर पड़ सकता है। जेसा कि मालूम है, फंडों की कमी के कारण कई विकास परियोजनाओं को रोक देना या रद्द कर देना पडा।
अमेरिका में नए और मौजूदा घरों की बिक्री से तांबे को कुछ मदद मिल सकती है। पिछले तीन सालों से मंद रहने के बाद जून में अमेरिका में नए घरों की बिक्री में जून में अचानक 11 फीसदी की तेजी दर्ज की गई है।
चीन द्वारा बड़े पैमाने पर तांबे के निर्यात पर स्टरलाइट और हिंडाल्को सावधानी पूर्वक नजर रख रही है। इस साल चीन में तांबे की मांग में 50 फीसदी से ज्यादा तेजी आने की संभावना है। (BS Hindi)
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