नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। केंद्र सरकार अब स्वीकार करने लगी है कि सूखे की मार ऐसी है, जैसा उसने सोचा भी नहीं था। यही कारण है कि ज्यादा प्रभावित इलाकों में युद्ध स्तर पर राहत कार्यक्रम चलाने का फैसला किया गया है। इसके अलावा खाने-पीने के समान की कालाबाजारी या जमाखोरी करने वालों के खिलाफ देशव्यापी अभियान चलाने की भी तैयारी है। केंद्र और राज्य मिल कर जन वितरण प्रणाली का दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ भी सख्ती बरतने का रास्ता निकाल रहे हैं, ताकि गरीब लोगों तक आसानी से अनाज पहुंचाया जा सके।
सोमवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में उनके कैबिनेट के सहयोगियों और राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ हुई बैठक में उक्त सहमति बनी है।
बैठक में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी, गृह मंत्री पी. चिदंबरम, योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया भी शामिल थे। बैठक को प्रधानमंत्री ने भी संबोधित किया। अपने बेहद संक्षिप्त संबोधन में उन्होंने राज्यों को आश्वस्त किया कि हालात खराब होने के बावजूद सभी मिल-जुल कर इससे आसानी से निपट सकते हैं। केंद्र सरकार सूखे से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार है।
कृषि मंत्री शरद पवार ने सूखे से निपटने के लिए संप्रग सरकार की तरफ से कोई नया एजेंडा तो पेश नहीं किया, लेकिन सभी राज्यों को सतर्क जरूर किया। उन्होंने कहा कि राज्य सरकारें खाने-पीने की चीजों की जमाखोरी और सटोरिया गतिविधियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करने के लिए तैयार रहें। उन्होंने साफ कर दिया कि हालात को काबू में लाने के लिए राज्यों को काफी अहम भूमिका निभानी होगी।
सूखे के गंभीर हालात का चित्रण करते हुए पवार ने बताया कि धान की खेती इस बार 57 लाख हेक्टेयर कम जमीन में की गई है। इसके अलावा तिलहन व गन्ने की खेती पर भी काफी असर पड़ा है। इससे देश में खाद्यान्न उपलब्धता पर नकारात्मक असर पड़ना तय है। उन्होंने कहा कि अब हमारा ध्यान रबी फसल पर होना चाहिए, ताकि खरीफ के नुकसान की भरपाई हो सके।
पवार ने बताया कि दाल के उत्पादन में गिरावट के बावजूद घरेलू बाजार में उपलब्ध दालों की मात्रा में कोई खास कमी नहीं हुई है। राशन की दुकानों के जरिये सस्ती कीमत पर दाल बेचने की नीति आगे भी जारी रखने पर विचार किया जा रहा है। उन्होंने सूखे से निपटने के लिए राज्यों को सात सूत्री रणनीति बनाने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि सबसे पहले राज्यों को उत्पादन बढ़ाते हुए खाद्य सुरक्षा पर जोर देना चाहिए। इसके बाद बची हुई फसलों को बचाने और वैकल्पिक फसलें उगाने के लिए किसानों को मदद देने की व्यवस्था होनी चाहिए। इसके लिए किसानों को समय पर बीज, उर्वरक और ऋण उपलब्ध कराने की जरूरत है। साथ ही गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों के बीच खाद्यान्न वितरण पर पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए।
कृषि मंत्री ने राज्यों को बताया कि उन्हें बाजार में सटोरिया गतिविधियों को पूरी तरह से रोकने के लिए कदम उठाने चाहिए। उन्होंने केंद्र व राज्य स्तर के सभी कार्यक्रमों का भरपूर उपयोग करने का भी सुझाव दिया। साथ ही, यह भी कहा कि जहां भी खाद्यान्न संकट जैसी स्थिति उत्पन्न हो, वहां युद्ध स्तर पर राहत कार्य चलाया जाना चाहिए। उन्होंने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से आग्रह किया कि वे व्यक्तिगत स्तर पर सूखा राहत कार्यक्रम की निगरानी करें। (Jagaran)
18 अगस्त 2009
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