01 अगस्त 2009
मानसून की बेरुखी फेरेगी चावल उत्पादन पर पानी
चालू मानसून सीजन में देश के पश्चिमोत्तर और पूर्वी हिस्से में बारिश की कमी से चावल उत्पादन में दो से ढाई करोड़़ टन की गिरावट आना लगभग तय है। इसके चलते चावल उत्पादन पिछले साल के 9.9 करोड़ टन के मुकाबले इस साल घटकर 7.5 करोड़ टन तक आ सकता है। इस गिरावट के पीछे प्रमुख वजह धान के बुवाई क्षेत्रफल में आई कमी है, जो पिछले साल के मुकाबले अभी 65 लाख हैक्टेयर कम है। कृषि मंत्रालय द्वारा शुक्रवार को जारी ताजा बुवाई आंकड़ों के मुताबिक अभी तक धान का क्षेत्रफल केवल 191.30 लाख हैक्टेयर तक पहुंचा है जो पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले 65.48 लाख हैक्टेयर कम है। देश में धान के सामान्य बुवाई क्षेत्रफल का यह मात्र 48.90 फीसदी है। बारिश में कमी का सबसे ज्यादा असर उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, झारखंड, जम्मू एवं कश्मीर और बिहार में पड़ा है। देश के सबसे बड़े चावल उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में धान का बुवाई क्षेत्रफल पिछले साल के मुकाबले 48.45 फीसदी कम है और यह मात्र 29.86 लाख हैक्टेयर पर ही पहुंचा है। बिहार में यह गिरावट 57.93 फीसदी, झारखंड में 63.79 फीसदी, पश्चिमी बंगाल में 47.13 फीसदी और जम्मू् एवं कश्मीर में 29.79 फीसदी है। .छत्तीसगढ़ में धान का क्षेत्रफल पिछले साल के मुकाबले 9.08 फीसदी कम बना हुआ है। आंध्र प्रदेश और गुजरात को छोड़ दें तो देश के लगभग सभी राज्यों में धान का क्षेत्रफल पिछले साल से है। कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक जुलाई बीत जाने के बाद अब धान के क्षेत्रफल का सामान्य स्तर तक आना लगभग असंभव है। यह सामान्य से 50 लाख हैक्टेयर तक कम रह सकता है। चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय के कुरुक्षेत्र के कोल स्थित चावल शोध केंद्र के प्रमुख डॉ. रतन सिंह का कहना है कि जिन क्षेत्रों में धान की रोपाई हो गई है उनमें भी कम बारिश के चलते चावल उत्पादन में करीब 15 फीसदी गिरावट आने की आशंका है। कृषि मंत्रालय के एक अन्य अधिकारी का कहना है कि क्षेत्रफल में कमी और कम बारिश के चलते उत्पादकता पर पड़ने वाले प्रतिकूल असर से इस साल चावल उत्पादन में 200 से 250 लाख टन तक की गिरावट आ सकती है।वर्ष 2003 के बाद पहली बार मानसून की सबसे कमजोर स्थिति से गुजर रहे देश के पूर्वी और उत्तर पश्चिमी हिस्से में बारिश में भारी कमी आई है। सिंचाई के दूसरे स्रोतों से इस नुकसान की पूरी भरपाई संभव नहीं है। उत्तर प्रदेश 47 जिलों को सूखाग्रस्त घोषित कर चुका है जबकि बिहार सरकार किसानों को डीजल पर सब्सिडी दे रही है। इसी तरह का दबाव पंजाब और हरियाणा की सरकारों पर पड़ रहा है। इससे आने वाले दिनों में चावल की कीमतों में तेजी आना लगभग तय है। हालांकि पिछले साल चावल की रिकार्ड खरीदारी से केंद्रीय पूल में जमा चावल के भंडार का उपयोग कर सरकार उपभोक्ताओं को राहत दे सकती है। जहां तक अन्य फसलों का सवाल है तो मोटे अनाज और दलहनों का क्षेत्रफल मामूली रूप से अधिक है। इसलिए दालों के मामले में कीमतों की मार झेल रहे उपभोक्ताओं को आने वाले दिनों में कुछ राहत मिल सकती है। दलहन की बुवाई अभी तक पिछले साल से 6.46 लाख हैक्टेयर और मोटे अनाज की 6.31 लाख हैक्टेयर अधिक है। लेकिन खरीफ तिलहन का क्षेत्रफल 2.87 लाख हैक्टेयर कम है।धान उत्पादकों को डीजल पर सब्सिडी नई दिल्ली। कम बारिश के चलते सिंचाई के लिए डीजल पंप चलाने पर विवश किसानों को ताजा सरकारी निर्णय से निश्चित तौर पर काफी सुकून मिलेगा। केंद्र सरकार ने वर्तमान खरीफ सीजन के दौरान सिंचाई के लिए धान किसानों को डीजल पर 1,000 करोड़ रुपये की सब्सिडी देने का फैसला किया है। यह जानकारी कृषि मंत्री शरद पवार ने शुक्रवार को यहां आयोजित एक सेमिनार के दौरान दी। पवार ने कहा कि इस निर्णय से कम बारिश के चलते परेशान धान उत्पादकों को बड़ी राहत मिलेगी। उन्होंने कहा कि गुरुवार को संपन्न कैबिनेट बैठक में डीजल पंपों का इस्तेमाल कर रहे धान किसानों की मदद के लिए 1000 करोड़ रुपये का बजटीय प्रावधान करने का महत्वपूर्ण फैसला किया गया। (Business Bhaskar....R S Rana)
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