कोच्चि December 16, 2009
क्वॉयर बोर्ड की संस्था, केंद्रीय नारियल रेशा शोध संस्थान (सीसीआरआई) ने एक ऐसी मोबाइल मशीनरी विकसित की है, जिससे हरे नारियल से नारियल रेशा निकाला जा सकता है।
उम्मीद की जा रही है कि यह तकनीक केरल में बहुत सुविधापूर्ण होगी, जिससे न केवल क्वॉयर निकालने की लागत में कमी आएगी, बल्कि क्वॉयर का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित हो सकेगा। इससे क्वॉयर आधारित निर्यात इकाइयों के कारोबार में भी बढ़ोतरी की उम्मीद की जा रही है। इस समय निर्यात इकाइयां उच्च गुणवत्ता वाले क्वॉयर की कमी का सामना कर रही हैं।
अलपुझा जिले कलावोर स्थित संस्थान के परिसर में इस मशीन का सफल प्रयोग बुधवार को किया गया। क्वॉयर बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इसे बाजार में उतारने के पहले इसका व्यावसायिक परीक्षण किया जाएगा।
सीसीआरआई के निदेशक यूएस शर्मा ने कहा कि नई डीफाइबरिंग यूनिट से फाइबर की लागत घटकर 9 रुपये प्रति किलो हो जाएगी, जबकि इस समय इसकी औसत कीमतें 15 रुपये प्रति किलो है। इस मशीन में ट्रॉली लगी होने की वजह से ग्रामीण इलाकों के लिए यह बहुत सुविधाजनक है।
इस मशीन के प्रचलित होने से वर्तमान इकाइयों की जगह ये मशीनें ले लेंगी। पुरानी मशीनों में बहुत ज्यादा जगह, श्रम और तमाम लाइसेंस की जरूरत होती है, जिसमें प्रदूषण बोर्ड का लाइसेंस शामिल है। फाइबर निकालने का परंपरागत तरीका बहुत जटिल है और इसमें काम करने वाले कामगारों की सेहत पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। (बीएस हिन्दी)
17 दिसंबर 2009
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