नई दिल्ली/मुंबई December 16, 2009
औद्योगिक और आर्थिक विकास में तेजी के चलते कागज उद्योग के दिन बहुरते नजर आ रहे हैं।
कागज उद्योग इन दिनों अतिरिक्त उत्पादन क्षमता, गिरती मांग और सस्ते आयात से प्रतिस्पर्धा की समस्या से जूझ रहा है। उद्योग जगत के विश्लेषकों का मानना है कि धीरे-धीरे स्थिति में सुधार आ रहा है।
लेखन और छपाई वाले कागज के उत्पादन में हाल के बीते दिनों में क्षमता विस्तार नहीं हुआ है और हाल-फिलहाल में क्षमता विस्तार की उम्मीद नहीं है। साथ ही मांग बढ़ने से उद्योग को मुनाफे की उम्मीद बढ़ी है।
जेके पेपर के मुख्य वित्त अधिकारी वी कुमारस्वामी ने कहा, 'आर्थिक विकास की गति धीमी रहने की वजह से इस साल की शुरुआत में मात्रात्मक बढ़ोतरी कम रही। लेकिन विकास में तेजी के साथ कागज की मांग गति पकड़ सकती है। उत्पादों की कीमतों में कटौती करने के बावजूद हम कमोबेश मुनाफे में सुधार कर सकते हैं, यह कच्चे माल की लागत में आई कमी से कम होगा।'
कागज उद्योग का मानना है कि आने वाले दिन बेहतर होंगे। क्रेडिट एनॉलिसिस ऐंड रिसर्च लिमिटेड (सीएआरई) के वरिष्ठ प्रबंधक सौरव चटर्जी ने कहा, 'कागज उद्योग के बुरे दिन पीछे छूट चुके हैं। जोरदार आर्थिक विकास और कार्पोरेट क्षेत्र के बेहतर प्रदर्शन से घरेलू मांग में तेजी आएगी।'
उन्होंने कहा कि देश की जीडीपी की वृध्दि दर और कोटेड तथा क्राफ्ट पेपर की मांग में सीधा संबंध है। इसकी हिस्सेदारी कागज उद्योग में 50 प्रतिशत है। लेखन और छपाई वाले कागज की हिस्सेदारी 30 प्रतिशत है और शेष हिस्सेदारी अखबारी कागज की है- इन क्षेत्रों में भी सुधार हो रहा है।
भारत की कागज कंपनियों पर चीन और कोरिया से आने वाले सस्ते क्राफ्ट और कोटेड पेपर का भी बुरा प्रभाव पड़ा। आयातित कागज की कीमतें, घरेलू कीमतों से कम थीं। सरकार द्वारा क्राफ्ट पेपर के आयात पर शुल्क बढाए जाने के बाद से इस सेगमेंट में स्थिरता आई है, लेकिन कोटेड पेपर के मामले में अभी भी संकट बना हुआ है।
उद्योग जगत के सूत्रों का कहना है कि सरकार इस पर भी शुल्क लगाने के बारे में विचार कर रही है, जिससे घरेलू कारोबार सुरक्षित रह सके। बहरहाल आयातित कागज 10 प्रतिशत सस्ता है और इससे कंपनियों को घरेलू कागज बेचने के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है।
एक बड़े कागज उत्पादक के मुंबई स्थित स्टॉकिस्ट का कहना है कि स्टॉक को खत्म करने के लिए हमें घाटे में कागज बेचना पड़ रहा है, क्योंकि कंपनियां स्टॉकिस्टों के लिए निर्धारित कोटा भेज रही हैं। आने वाले कुछ महीनों में लेखन और छपाई वाले कागज की स्थिति में भी सुधार की उम्मीद की जा रही है।
आंध्र प्रदेश पेपर मिल्स के निदेशक श्रीयश बांगड़ ने कहा, 'अतिरिक्त कागज होने के चलते बाजार में कठिनाई है। खासकर लेखन और छपाई के कागज की यह स्थिति है। हम उम्मीद करते हैं कि नई क्षमता की खपत आने वाली एक या दो तिमाही में होने लगेगी।'
देश की सबसे बड़ी कागज उत्पादक कंपनी बल्लारपुर इंडस्ट्रीज के निदेशक (वित्त) बी हरिहरन ने कहा, 'कुछ कंपनियों ने क्षमता विस्तार किया है और नई इकाइयां स्थापित की हैं। लेकिन लेखन और छपाई के कागज की मांग में कमी है और अतिरिक्त क्षमता की हालत पैदा हो गई है। बहरहाल, उम्मीद है कि अगली दो तिमाहियों में स्थिति नियंत्रण में आ जाएगी और मांग में बढ़ोतरी होगी।'
बिल्ट ने इस साल अक्टूबर में 340,000 टन कागज उत्पादन क्षमता का विस्तार किया है, जिससे उसकी कुल क्षमता 8,00,000 टन हो गई है। अगले कुछ महीनों में टीएनपीएल और वेस्ट कोस्ट पेपर मिल भी क्षमता विस्तार करने वाली हैं। दोनों मिलकर 3,00,000 टन अतिरिक्त कागज का उत्पादन करेंगी।
औद्योगिक रफ्तार का असर
कागज उद्योग इस समय अतिरिक्त उत्पादन, गिरती मांग और सस्ते आयात की प्रतिस्पर्धा से जूझ रहा हैविकास में गति के साथ ही बढ़ रही है मांगविश्लेषकों का मानना है कि कागज उद्योग के बुरे दिन खत्म हो चुके हैं और घरेलू मांग में तेजी है (बीएस हिन्दी)
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