कोच्चि December 15, 2009
इलायची उत्पादकों के लिए यह बहुत बेहतर मौसम साबित हो रहा है। इस समय औसत कीमतें पिछले साल की तुलना में करीब दोगुनी होकर 855 रुपये प्रति किलो पर पहुंच चुकी हैं।
दिसंबर 2008 में औसत कीमतें 440 रुपये प्रति किलो थीं। केसीपीएमसी कुमिली में हुई नीलामी में सोमवार को बेहतर गुणवत्ता वाली 8 मिलीमीटर की इलायची की अधिकतम कीमत 980 रुपये प्रति किलो पर पहुंच गई, जो हाल के दिनों में सर्वाधिक है।
घरेलू बाजार इस समय उफान पर है। 2009-10 के पूरे सीडन में औसत कीमतें 750 रुपये प्रति किलो के पार रहीं, जबकि पिछले साल 540 रुपये किलो का औसत रहा था। वर्तमान मांग और आपूर्ति को देखें तो जनवरी-फरवरी 2010 में औसत कीमतें 1000 रुपये किलो पर पहुंच सकती हैं।
इस महीने के आखिर तक या अगले महीने तक केरल के इडुक्की जैसे बड़े केंद्रों पर इलायची की फसलों की कटाई बंद हो जाएगी। कीमतों में बढ़ोतरी की मुख्य वजह यह है कि पिछले 6-7 महीनों के दौरान पूरी दुनिया में इलायची के लिए भारत एक बड़े स्त्रोत के रूप में उभरा है।
दुनिया के सबसे बड़े इलायची उत्पादक देश ग्वाटेमाला में उत्पादन में कमी के चलते बड़े आयातक भारतीय बाजार पर निर्भर हो गए। इसके चलते विदेशी मांग में बढ़ोतरी हुई। घरेलू मांग, खासकर उत्तर भारत में मांग में बढ़ोतरी की वजह से कीमतों में तेज बढ़ोतरी दर्ज की गई।
चालू वित्त वर्ष के अप्रैल अक्टूबर अवधि के दौरान इलायची का निर्यात दोगुना होकर 620 टन पर पहुंच गया, जबकि पिछले साल की समान अवधि के दौरान कुल 310 टन इलायची का निर्यात हुआ था। ऐसी स्थिति एक बार 2002-03 में भी आई थी, जब कीमतें बढ़कर 800-850 रुपये प्रति किलो पर पहुंच गई थीं।
इलायची उत्पादक संघ के अध्यक्ष केएम मिशेल विदेश से मांग बढ़ने के चलते इस सीजन में कीमतों में तेजी आई। निर्यात के लिए कारोबारियों ने बड़े पैमाने पर खरीदारी की। सर्दी के मौसम में पूरी दुनिया में मांग में तेजी बनी रही। इस साल उत्पादन के अनुमान बेहतर नहीं आ रहे हैं।
उम्मीद की जा रही है कि उत्पादन में 20 प्रतिशत की गिरावट आएगी। उत्पादकों का एक बड़ा तबका मानता है कि इस सीजन में उत्पादन 10,000 टन रहेगा, जबकि पिछले साल 13,000 टन उत्पादन हुआ था। अगर प्रमुख नीलामी केंद्रों पर आवक देखें तो इसमें कमी आई है।
सीजन खत्म होने के बाद उत्पादकों के पास ज्यादा स्टॉक नहीं बचेगा। इसलिए उम्मीद की जा रही है कि अगले सीजन में भी कीमतों में तेजी जारी रहेगी। उत्पादकों ने यह भी कहा कि उत्पादन लागत में बढ़ोतरी हुई है। खासकर मजदूरों का संकट बढ़ा है। इस सत्र में प्रति एकड़ औसत खर्च 100,00 रुपये है। कीमतें ज्यादा होने की वजह से इसकी भरपाई हो जा रही है।
हालांकि इस सत्र में फसल की उत्पादकता घटकर 100-120 किलो प्रति एकड़ है, जिससे उत्पादकों को झटका लगा है, क्योंकि लागत में इस साल 30-40 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। इसलिए कीमतों में बढ़ोतरी की वजह से देश में इलायची की खेती को बचाने में मदद मिली है। (बीएस हिन्दी)
16 दिसंबर 2009
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