December 18, 2009
ऑस्ट्रेलिया और ब्राजील के बाद लौह अयस्क के निर्यात में भारत का तीसरा स्थान है, जो करीब 10 करोड़ टन से ज्यादा निर्यात करता है।
निश्चित रूप से भारत उत्सुकता पूर्वक देख रहा होगा कि हाल ही में किस तरह से बीएचपी बिलिटन और रियो टिंटो ने संयुक्त उद्यम के लिए हस्ताक्षर किए हैं। इन्होंने यूरोपियन यूनियन प्रतिस्पर्धा आयोग और चीन के प्रतिस्पर्धा नियामक की बाधाएं पार करते हुए पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के पिलबारा क्षेत्र में खनन गतिविधियां शुरू करने के लिए समझौते किए।
बहरहाल अब बेहतरीन संयुक्त उपक्रम बन चुका है, जिससे बाजार में दबदबा कायम हो गया है। लौह अयस्क के खरीदार इस बात को लेकर भयभीत हैं और वे उत्पादन की मात्रा और मांग को लेकर जानकारी हासिल करने में जुटे हैं।
हमारे कुल लौह अयस्क निर्यात में 9 करोड़ टन से भी ज्यादा की खरीदारी चीन करता है। उसे 116 बिलियन डॉलर के संयुक्त उपक्रम से चिंता जरूर होगी, जो विश्व की दूसरी और तीसरी बड़ी खनन कंपनियों ने किया था।
फेडरेशन ऑफ इंडियन मिनरल इंडस्ट्रीज के महासचिव आरके शर्मा सामान्यतया संबंधित विषयों पर प्रतिक्रिया जरूर देते हैं, लेकिन उन्होंने इस संयुक्त उपक्रम के काम शुरू करने से पड़ने वाले प्रभाव पर कुछ भी नहीं कहा। इससे निश्चित रूप से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि- अयस्क के बेहतर दाम होने की संभावना है, उन्होंने यह भांप लिया है।
शायद यह कहने के लिए उचित कारण है कि बीचपी और रियो टिंटो के पिलबारा के लिए संयुक्त उपक्रम बनाने के चलते एशिया और यूरोप के स्टील निर्माता चिंतित हैं, जो पूरी तरह से लौह अयस्क के आयात पर निर्भर हैं। विश्व की दूसरी बड़ी लौह अयस्क परिसंपत्ति पिलबारा पर इन दो खनन कंपनियों की नजर करीब एक दशक से थी।
सही कहें तो यही कारण है कि बोली लगाने के पहले बीएचपी ने संयुक्त उपक्रम बनाया, जो एल्युमीनियम और बॉक्साइट के क्षेत्र में अनुभव रखती है। संयोग से पिलबारा में रियो की हिस्सेदारी अयस्क के मामले में बीएचपपी से ज्यादा है। उसने कहा कि 5.8 बिलियन डॉलर का भुगतान संयुक्त उपक्रम के सहयोगी के रूप में होगा और इसका पैसा कर्ज के भुगतान में भी लगेगा।
मुआवजे को भी संयुक्त उपक्रम में बराबर बराबर दिए जाने का प्रावधान है। संयुक्त उपक्रम के बारे में हुई बातचीत में 15 प्रतिशत से ज्यादा अयस्क की मार्केटिंग संयुक्त रूप से किए जाने की है। लेकिन संयुक्त उपक्रम के रूप में मार्केटिंग के विचार से लौह अयस्क के आयातकों में खलबली मच गई और इससे यूरोपियन यूनियन और चीन के नियमों का उल्लंघन होता था।
इसके चलते उन्होंने अक्टूबर में यह विचार त्याग दिया। इन सब कदमों से दोनों कंपनियों को संयुक्त उपक्रम की रूपरेखा तैयार करने में सहूलियत मिली। संयुक्त उपक्रम के हिस्सेदारों को इससे और ज्यादा राहत मिली कि यूरोपियन यूनियन प्रतिस्पर्धा आयोग इस मामले को अति संवेदनशील मसले के रूप में नहीं देख रहा है।
संयुक्त उद्यम के प्रस्ताव पर आयोग अब सामान्य धारा 101 के तहत देखा जाएगा। संयुक्त मार्केटिंग के नियम को हटाए जाने से बहरहाल बड़े आयातकों को बीएचपी-रियो की पिलबारा परियोजना से खरीद में राहत मिलेगी।
यूरोपियन यूनियन के प्रमुख स्टील निर्माताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले यूरोफर, जिसमें आर्सेलर मित्तल और कोरस संयुक्त उद्यम को लाल झंडी दिखाने से नहीं चूके और उन्होंने कहा कि बीएचपी और रियो अपनी अलग कारोबारी पहचान रख सकते हैं। संयुक्त उपक्रम के लिए बाध्यकारी समझौते पर हस्ताक्षर के बाद यूरोफर ने आयोग से कहा कि यह समझौता बैठक में क्यों पारित नहीं हुआ।
बीएचपी और रियो के लिए अशुभ यह है कि यूरोफर, चाइना आयरन ऐंड स्टील एसोसिएशन से इन दो बड़े कारोबारियों के एक साथ होने के मसले पर बातचीत कर रहा है, जिनकी संयुक्त उत्पादन क्षमता 35 करोड़ टन होगी। यूरोफर चीन के प्रतिस्पर्धा प्राधिकरण के पास भी गया है, जहां संयुक्त उपक्रम पर विचार चल रहा है।
चीन और एंग्लो ऑस्ट्रेलियन लौह अयस्क उत्पादकों के बीच इस तरह का मनमुटाव नहीं हुआ था, जैसा कि इस साल की शुरुआत में हुआ, जब लौह अयस्क की कीमतों पर मोलतोल हो रहा था। बीजिंग में रियो के कुछ अधिकारियों को गिरफ्तार भी कर लिया गया। उन पर औद्योगिक जासूसी का आरोप लगाया गया।
सीआईएसए (कीमतों के मामले में मोलभाव करने के लिए बनाई गई संस्था) को दरकिनार कर विदेशी खननकर्ता व्यक्तिगत रूप से चीनी स्टील निर्माताओं से समझौते कर रहे हैं। इससे भी चीन को नाराजगी है। चीन ने रियो के प्रति अपनी नाराजगी तब दिखानी शुरू की जब उसने चाइनाल्को के साथ हुए 19.5 डॉलर के सौदे को रद्द कर दिया।
संयुक्त उपक्रम के साझेदारों को लेकर चीन की फिजां में संदेह का माहौल है और इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस सौदे को प्रतिस्पर्धा को खत्म करने के एक कदम के रूप में देखा जा रहा है। इन दो कंपनियों के बीच समझौते का असर चीन पर पड़ना स्वाभाविक लगता है, क्योंकि चीन को बड़ी मात्रा में आयात पर निर्भर रहना पड़ता है।
देश में पिछले साल कुल 44।4 करोड़ टन अयस्क का आयात हुआ था, जो समुद्र के रास्ते होने वाले इस वैश्विक जिंस कारोबार का आधा है। इस साल के अंत तक चीन में आयात बढ़कर 60 करोड़ टन होने का अनुमान है। इस संयुक्त उपक्रम से चीन की मोल-तोल की क्षमता में आने वाले दिनों में कमी आएगी, जो लौह अयस्क की कीमतों को लेकर होता था। (बीएस हिन्दी)
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