मुंबई December 18, 2009
देश में तिलहन के रूप में व्यापक रूप से काम आने वाली मूंगफली की खपत के तरीके में व्यापक बदलाव आया है।
मूंगफली का सीधे प्रयोग करने वालों की संख्या बढ़ गई है। तीन साल पहले जहां सीधे मूंगफली का इस्तेमाल कुल उत्पादन का 30 प्रतिशत था, अब यह दोगुना बढ़कर कुल उत्पादन का 60 प्रतिशत हो गया है।
जानकारों का कहना है कि इसके 2 प्रमुख कारण हैं। पहला- सूखे मेवे की कीमतों में बढ़ोतरी और दूसरा- मूंगफली तेल के उत्पादन के क्षेत्र में मांग की कमी। ऐसे समय में देश में मूंगफली की पेराई में कमी आ रही है, जब देश में खाद्य तेलों का आयात बढ़ता जा रहा है।
मूंगफली का तेल, प्रीमियम तेल के रूप में जाना जाता है, जिसकी कीमतें अपने निकटतम प्रतिस्पर्धी कपास बीज के तेल से 20 प्रतिशत ज्यादा होती हैं। दोनों तेलों की गुणवत्ता एकसमान होती है, इसलिए कपास बीज के तेल ने मूंगफली तेल के प्रीमियम ब्रांड होने का स्थान छीन लिया है। इसके साथ ही पेराई इकाइयों में मांग में भी नाटकीय कमी आई है।
इंडियन ऑयलसीड प्रोडयूस एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (आईओपीईपीसी) के चेयरमैन नीलेश वीरा ने कहा कि मूंगफली के दानों का सीधे प्रयोग बढ़ा है। इसे सूखे, नमक मिलाकर और भुने हुए पैकिंग में उत्पादों के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा है। ऐसा उत्पादक और गैर उत्पादक- दोनों राज्यों में हो रहा है।
उद्योग जगत के दिग्गज संजय शाह के मुताबिक देश में कुल 35 लाख टन मूंगफली के उत्पादन का अनुमान है, जिसमें से बमुश्किल 20 लाख टन मूंगफली के दाने निकलेंगे। मूंगफली के दानों की 60 प्रतिशत खपत सीधे होगी, जबकि इसमें से 15 प्रतिशत बीज के रूप में और निर्यात के लिए इस्तेमाल होगा।
इस तरह से मुश्किल से 5 लाख टन बीज पेराई के लिए बचेगा, जिससे 1 से 1.5 लाख टन तेल मिल पाएगा। रबी में कुल 20-22 लाख टन उत्पादन का अनुमान है, जिसमें से उपरोक्त अनुपात में ही पेराई के लिए दाने मिल पाएंगे। इस तरह से देखा जाए तो देश का कुल मूंगफली तेल उत्पादन अधिकतम 3 लाख टन रहने का अनुमान है। यह देश के कुल खाद्य तेलों की खपत का केवल 6-7 प्रतिशत है।
भारत में खाद्य तेल की खपत इस समय 150 लाख टन है, जिसमें पाम ऑयल और सोया ऑयल की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत है। शाह ने मांग की है कि प्रीमियम ऑयल सेगमेंट में निर्यात को अनुमति मिलनी चाहिए, जिससे मूंगफली की खेती करने वाले किसानों को नैतिक प्रोत्साहन मिलेगा और वे ज्यादा मूंगफली उगाएंगे।
जब तक उत्पादन में बढ़ोतरी नहीं होती, जब तक वैश्विक बाजार में पैठ नहीं बनाई जा सकती है। 1970 के दशक में भारत मूंगफली और इसके उप उत्पादों का बड़ा निर्यातक था। उसके बाद प्रतिस्पर्धा बढ़ने और उच्च कीमतों की वजह से भारत अपना स्थान खोता गया। (बीएस हिन्दी)
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