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16 दिसंबर 2009

निर्यात सुस्त रहने से तिल में भारी गिरावट

निर्यात मांग सुस्त रहने से तिल में महीने भर के दौरान 1,000 रुपये प्रति क्विंटल तक की गिरावट आई है। जानकारों का कहना है कि सूडान, इथोपिया और चीन से निर्यात बढ़ने से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय तिल की मांग कमजोर पड़ी है। इसके अलावा सर्दी के जोर न पकड़ने के कारण घरलू मांग भी सामान्य बनी हुई है। अगले कुछ दिनों में निर्यात मांग कमजोर रहने से 500 रुपये प्रति क्विंटल तक की और गिरावट आने के आसार हैं।भारत में तिल के प्रमुख तौर पर पैदावार वाले राज्यों में गुजरात, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, बिहार आदि राज्य शामिल हैं। सामान्य परिस्थितियां रहने पर देशभर में तिल की पैदावार 3 लाख टन के आसपास रहती हैं। जिसमें मध्यप्रदेश का भागीदारी 30-40 प्रतिशत तक रहती है। उत्पादन की दृष्टि से गुजरात के बाद मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश का नंबर आता है। मध्यप्रदेश में तिल का उत्पादन भिंड, श्योपुर कलां, मुरैना, छतरपुर, मंडला, डिंडौरी, उमरिया आदि जगहों पर ज्यादा होता है।ग्वालियर में तिल के एक्सपोर्टर सतीश गुप्ता बताते हैं कि करीब एक-डेढ़ महीने के दौरान तिल के भाव 1,000 रुपये प्रति क्विंटल की मंदी आई है। वे कहते हैं कि सूडान, इथोपिया एवं चीन में तिल की पैदावार अच्छी रहने से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय तिल की मांग कमजोर हुई है। उन्होंने कहा कि हमार तिल की डिमांड मुख्यत: अरब देशों में ज्यादा रहती है। लेकिन सूडान और इथोपिया के तिल की क्वालिटी भारतीय तिल से बेहतर रहने के कारण वहां से एक्सपोर्ट बढ़ा है। गुप्ता बताते हैं कि अक्टूबर में शुरुआती आवक के दौरान नई फसल के भाव 4,700-4,800 रुपये प्रति क्विंटल थे। लेकिन बाद में आवक कमजोर पड़ने और निर्यात मांग निकलने से नवंबर में तिल के भाव 7,000 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गए। जिसके बाद निर्यात मांग सुस्त होने महीने भर में 1,000 रुपये की गिरावट के साथ भाव 6,000 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गए हैं। वे कहते हैं निर्यात मांग निकलने पर ही भाव में सुधार आ सकता है। अन्यथा भाव में और भी गिरावट देखने को मिल सकती है। वहीं ग्वालियर के ही अन्य कारोबारी ओमप्रकाश गुप्ता बताते हैं कि निर्यात और घरलू दोनों ही तरह की मांग कमजोर रहने के कारण तिल में महीनेभर में 1,000 रुपये प्रति क्विंटल तक की मंदी आई है। वे कहते हैं कि बिहार, केरल, पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर सहित अन्य राज्यों में मप्र के तिल की डिमांड रहती है। गुप्ता कहते हैं कि जनवरी तक घरलू मांग निकलती है, लेकिन उसके बाद तिल का कारोबार निर्यात मांग पर निर्भर हो जाता है। वे बताते हैं कि इस बार सर्दी के जोर न पकड़ने के कारण घरलू मांग भी सामान्य बढ़ी हुई है। अगर घरलू मांग जोर पकड़ती है तो तिल में तेजी को सहारा मिल सकता है। इसी तरह ग्वालियर के महेश पंजवानी बताते हैं कि इस बार अन्य उत्पादक राज्यों में फसल की गुणवत्ता कमजोर रहने के कारण भी मध्यप्रदेश के तिल की अच्छी मांग है। लेकिन पिछले कुछ दिनों से निर्यात मांग कमजोर पड़ने के कारण तिल में नरमी का माहौल बना है। उन्होंने कहा कि फिलहाल आवक कमजोर रहने के बावजूद भी तिल में मंदी बनी हुई है। महेश कहते हैं कि आगे निर्यात सुधरने की स्थिति में प्रदेश के कारोबारियों को तिल के बेहतर दाम मिल सकते है। साथ ही अन्य राच्यों से निकलने वाली घरलु मांग भी तिल में सुधार ला सकती है। वे बताते हैं कि मध्यप्रदेश के अलावा राजस्थान एवं गुजरात तिल के बड़े उत्पादक राज्य हैं। जिसमें से राजस्थान में बारिश कम होने से फसल कमजोर बताई जा रही है, वहीं गुजरात में तिल उत्पादक जिलों में ज्यादा बारिश से तिल की फसल को नुकसान पहुंचा था। इस कारण मध्यप्रदेश के बाजार में घरलू मांग अच्छी रहने की उम्मीद है। (बिज़नस भास्कर)

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