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14 दिसंबर 2009

ढीले रुख से गेहूं महंगा

मुंबई December 13, 2009
गेहूं की कीमतों पर लगाम लगाने के सरकारी बयान के बावजूद इसके दाम नीचे आने का नाम ही नहीं ले रहे।
वायदा और हाजिर दोनों बाजारों में गेहूं क्रमश: 1426 और 1390 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गया है। उछाल की वजह खुले बाजार में सरकारी गेहूं आने में हो रही देरी को माना जा रहा है। सरकार तय नहीं कर पा रही है कि मौजूदा बिक्री मूल्य को कितना कम किया जाए।
सरकारी लेटलतीफी को भांपते हुए सटोरियों ने शुक्रवार को गेहूं का दाम नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया। उस दिन वायदा बाजार में गेहूं 1426 रुपये प्रति क्विंटल के पार चला गया। हाजिर बाजार में यह 1390 रुपये प्रति क्विंटल पर बिका।
वैसे जानकारों का मानना है कि यह तेजी ज्यादा दिन नहीं रहने वाली। खाद्य और कृषि राज्य मंत्री के. वी. थॉमस भी पिछले हफ्ते कह चुके हैं कि दाम कम करने के लिए सरकार खुले बाजार में अतिरिक्त कोटा जल्द ही जारी करेगी। इस बयान का बाजार पर तुरंत असर भी दिखा।
एनसीडीईएक्स में सितंबर अनुबंध 3 फीसदी गिरकर 1390 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया। हाजिर बाजार में इसकी कीमत 1350 रुपये तक चली गई। सरकार विक्रय मूल्य में 150-200 रुपये प्रति क्विंटल की कमी कर सकती है। एफसीआई ने गेहूं का विक्रय मूल्य 1390 से 1790 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। लेकिन आटा चक्की इस दर पर गेहूं खरीदने को तैयार नहीं हैं। इस चलते सरकारी गेहूं बिक ही नहीं पा रहा।
शेयरखान कमोडिटी के रिसर्च हेड मेहुल अग्रवाल कहते हैं कि सरकार को कीमतें घटानी ही होगी। यह सरकार और आम आदमी सबके लिए फायदेमंद होगा। दो महीने बाद जब नई फसल आएगी तो सरकार को इसी दर पर नई फसल खरीदनी होगी। सरकार के न खरीदने पर निजी कारोबारी किसानों का माल खरीदेंगे।
आटा चक्की संचालकों का कहना है कि कीमतों में वृद्धि सरकार की लेटलतीफी के चलते हो रही है। 8 दिसंबर को सरकार ने बयान तो दिया, लेकिन कीमतें कब कम होगी किसी को पता नहीं। 18 अगस्त को शरद पावर ने भी अश्वासन दिया था कि देश में खाद्यान की कमी नहीं है। गेहूं की कमी को देखते हुए सरकारी गोदामों से 30 लाख टन गेहूं खुले बाजार में बेचा जाएगा। (बीएस हिन्दी)

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