December 01, 2009
दो दशकों से ज्यादा समय से पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री के रूप में कार्यरत और राज्यों के वित्त मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समिति के अध्यक्ष असीम दासगुप्ता ने एक पखवाड़े पहले वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) पर पहला चर्चा पत्र पेश किया है। इस मसले सहित विभिन्न मुद्दों पर असीम दासगुप्ता ने नम्रता आचार्य और ईशिता आयान दत्त से बातचीत की। पेश हैं बातचीत के खास अंश...
जीएसटी किस तरह से अंतिम उपभोक्ता के लिए फायदेमंद होगा, जबकि इससे सरकार को अपनी कर संग्रह व्यवस्था सुधारने में भी मदद मिलेगी?
पहली बार ऐसा होगा कि भुगतान किए जा रहे तमाम करों से राहत मिलेगी, चाहे पर इनपुट पर हो या प्राथमिक स्तर पर वितरण कारोबार पर लगा कर हो। यह उत्पादकों या सेवा प्रदाताओं से शुरू होता है और चलकर खुदरा कारोबारियों तक जाता है। कई महत्वपूर्ण केंद्रीय और राज्यों के करों को जीएसटी में शामिल कर लिया गया है।
एक राज्य से दूसरे राज्य में माल ले जाने पर लगने वाला केंद्रीय बिक्री कर पहले ही 4 प्रतिशत से 2 प्रतिशत कर दिया गया है, जिसे चरणबध्द तरीके से समाप्त कर दिया जाएगा। सेवा कर को बेहतर ढंग से एकीकृ त कर दिया जाएगा। इन सभी कारणों से कुल मिलाकर जिंसों पर लगने वाले कर में कमी आएगी। इससे उत्पादकों, कारोबारियों और अंत में उपभोक्ताओं को फायदा होगा।
जीएसटी को भारत में सबसे बड़ा कर सुधार क्यों माना जा रहा है?
यह वास्तव में बहुत बड़ा कर सुधार है। राज्य स्तर पर वैट केंद्रीय स्तर पर सेनवैट के अलावा सेवा कर पर सुधार संबंधित तमाम बड़े कदम उठाए गए। वर्तमान कर व्यवस्था के पहले बिक्री कर का समय था। करों में बहुत भिन्नता थी। वैट से तमाम परेशानियां दूर हुईं, लेकिन वैट व्यवस्था में भी तमाम खामियां रह गईं। सेनवैट का लोड भी बना रहा और राज्यों के तमाम कर बने रहे।
अंतर राज्यीय बिक्रीकर या सीएसटी पूरी तरह से लागू नहीं हो सका। यह सब राज्य जीएसटी में शामिल होगा। अगर अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था में वैट सबसे बड़ा सुधार था तो जीएसटी अगली तार्किक व्यवस्था होगी और देश के कर सुधार के इतिहास में मील का पत्थर साबित होगी। जीएसटी का सकल घरेलू उत्पाद पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और राज्य घरेलू उत्पाद भी बढ़ेगा।
क्या यह दीर्घावधि व्यवस्था है?
यह एक मध्यावधि व्यवस्था है, जो नैशनल काउंसिल फार एप्लायड इकोनॉमिक्स रिसर्च (एनसीएईआर) द्वारा किया गया है।
राज्य सरकारों के बीच सहमति बनाना कितना कठिन था? क्या मतभेदों का कमोबेश समाधान कर लिया गया है?
सही कहें तो यह संयुक्त प्रयास है। सभी राज्यों के वित्त मंत्रियों ने इसमें भूमिका निभाई है। केंद्र सरकार का भी बढ़िया समर्थन मिला है। पहले कदम के रूप में आम चर्चा पत्र पर सहमति बनी। निश्चित रूप से कुछ विषयों पर मतभेद है, जैसे किन सामानों और सेवाओं को इसमें शामिल किया जाए या बाहर रखा जाए।
हम इस मामले में उद्योग जगत, कारोबारियों, खेतिहर लोगों और मीडिया से भी राय ले रहे हैं। हमने इस तरह का सम्मेलन हर राज्य में कराने का फैसला किया है, जिसमें चैंबर और उद्योगों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। दूसरे कदम के रूप में संवैधानिक संशोधन की जरूरत होगी, जिसमें राज्यों को सेवा कर लगाने का अधिकार होगा। आयात पर जीएसटी के लिए संवैधानिक संशोधन की जरूरत होगी।
क्या अप्रैल 2010 तक जीएसटी लागू किया जा सकेगा?
हमारे पास बर्बाद करने के लिए एक दिन भी नहीं है। पिछले एक महीने से गतिविधियों में तेजी आई है। सही कहें तो परीक्षा की तिथि के एक रात पहले ही तैयारी पूरी हो पाती है। यह जरूरत पर आधारित सीख है। हम हर राज्य से उनकी समस्याओं को समझने की कोशिश कर रहे हैं।
राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता का क्या होगा?
राज्य सरकारों को दरों के चयन की छूट होगी। जीएसटी में दरें समान होंगी, इस तरह से हम एक बेहतरीन ढांचा पाएंगे। अगर कोई जिंस स्थानीय महत्व का है और उसका प्रभाव अन्य राज्य पर नहीं पड़े तो उसे छूट वाले सामान की श्रेणी में रखा जाना राज्यों के अधिकार में होगा। केंद्र के तय ढांचे में तमाम समस्याएं आती हैं। हम संवैधानिक संशोधन में इसका ध्यान रखेंगे।
आईटी और मानव संसाधन को लेकर क्या तैयारी है?
एक समग्र आई ढांचा बनाए जाने की जरूरत है। राज्यों का अपना आईटी ढांचा है, लेकिन जब आप अंतर राज्यीय लेनदेन करते हैं, तो उसके लिए सुधारवादी कदम उठाने की जरूरत होगी। इस तरह की संरचना के लिए हमने केंद्र सरकार से अनुरोध किया है।
वे हमारे साथ इस मसले में सहयोग कर रहे हैं। आईजीएसटी आईटी संरचना के लिए एक जानकार समिति लगी हुई है। यह जनवरी के मध्य तक हो पाएगा। दिसंबर के अंत तक हम तिथि को मूर्त रूप दे सकेंगे।
एक प्रस्ताव सभी अप्रत्यक्ष करों को प्रस्तावित सेवा एवं सामान कर में शामिल करने का था, क्या इसमें ढेर सारी छूट दी गई है?
यह बड़ा सुधार है। इसमें राज्यों को कुछ हासिल होगा, तो कुछ उन्हें गंवाना भी पड़ेगा। (बीएस हिन्दी)
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