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07 दिसंबर 2009

कमोडिटी कारोबार को भी लगेगा दुबई का झटका

नई दिल्ली : दुबई के कर्ज संकट का केंद्र भले ही रियल एस्टेट रहा हो, लेकिन भारत में कमोडिटी कारोबार में इसके झटके आने वाले कुछ महीनों तक महसूस किए जाते रहेंगे। भारतीय कंपनियों के लिए दो वजहों से दुबई महत्वपूर्ण हो गया है। पहली बात यह है कि दुबई मोती, सोना और हीरे से लेकर चाय, कपास, बासमती और चीनी जैसी अधिकांश कमोडिटी का कारोबारी केंद्र है। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह पश्चिमी एशिया के कारोबार में कदम रखने का प्रवेश द्वार है। इस क्षेत्र के सभी बड़े खिलाड़ियों, खासकर खाड़ी सहयोग देशों (जीसीसी) की दुबई में मौजूदगी है और वे एक-दूसरे और बाहरी दुनिया से संपर्क बनाने के लिए दुबई को एक सुविधाजनक एवं निवेश करने लायक कारोबारी केंद्र के रूप में इस्तेमाल करते हैं। इसलिए भारतीय कंपनियों के लिए भी दुबई समूचे पश्चिमी एशियाई कारोबार का केंद्र बन गया है।
दूसरा प्रमुख बिंदु यह है कि बहुत कम नियमन तथा आसानी से कर्ज मिलने की वजह से दुबई एक आकर्षक स्थान बन गया है। अधिकांश कारोबारी इस शहर को माल को एक जगह से लाकर दूसरी जगह भेजने के लिए इस्तेमाल करते हैं और वहां के स्थानीय बैंकों को आमतौर पर छह महीने के शॉर्ट टर्म कारोबार के लिए महाजन की तरह इस्तेमाल किया जाता है। पश्चिम एशियाई कंपनियों को कभी भी इस बात के लिए प्रोत्साहित नहीं किया गया कि वे अपने बहीखाते को ऑडिट कराएं या उपयुक्त बाहरी व्यक्ति को उसे दिखाएं। लेकिन अभी तक इससे कोई बड़ी बाधा नहीं आई है क्योंकि इस क्षेत्र में भरोसा, संबंध और खानदान जैसे परंपरागत मूल्यों के आधार पर कारोबार चलता रहा है। अब जब बहीखाता उपलब्ध ही नहीं है, इसलिए किसी भारतीय बैंक या कंपनी के लिए यह जानना संभव नहीं है कि उसने दुबई की जिस कंपनी में निवेश किया है, उसका संकटग्रस्त फर्मों में कितना निवेश है। इसलिए हर किसी को तब तक अपराधी माना जाएगा, जब तक वह निर्दोष साबित नहीं हो जाता। इस प्रकार अब भरोसे की जगह गहरा शक ले लेगा। इस बदलाव से भारतीय कंपनियों पर भारी असर पड़ेगा। भारतीय निवेशक अब ऐसे मामलों में खुले खाते की बिक्री घटा देंगे, जिसमें माल की डिलीवरी भुगतान से पहले होती है क्योंकि इसमें काफी जोखिम है। कड़ी प्रतिस्पर्धा होने की वजह से भारतीय कंपनियां पहले इस तरह की बिक्री करती हैं। इसी प्रकार घबराए भारतीय बैंक अब ज्यादा दस्तावेजों और लेटर ऑफ क्रेडिट की मांग शुरू करेंगे क्योंकि इसकी वजह से आयातकों और निर्यातकों, दोनों का जोखिम काफी कम हो जाएगा। यही नहीं, अब दस्तावेजों की जांच काफी सख्ती से की जाएगी और कर्ज की मांग निरस्त करने वाले मामलों की संख्या बढ़ती जाएगी। इसके अलावा कर्ज साधनों पर बैंक ब्याज दर भी बढ़ा देंगे क्योंकि उन्हें जोखिम बढ़ने का डर होगा। (ई टी हिन्दी)

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