कुल पेज दृश्य

03 दिसंबर 2009

उप्र और महाराष्ट्र में 91 लाख टन चीनी उत्पादन के अनुमान

नई दिल्ली December 01, 2009
महाराष्ट्र एवं उत्तर प्रदेश में वर्ष 2009-10 के लिए लगभग 91 लाख टन चीनी उत्पादन की संभावना है। महाराष्ट्र में पिछले साल की तरह इस साल भी 46 लाख टन चीनी उत्पादन का अनुमान है।
वहीं उत्तर प्रदेश में पिछले साल के मुकाबले 4 फीसदी की कमी के साथ लगभग 45 लाख टन चीनी उत्पादन की उम्मीद की जा रही है। महाराष्ट्र एवं उत्तर प्रदेश देश के सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्यों में से हैं। दोनों ही राज्यों में गन्ना किसानों को 200-210 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत दी जा रही है।
दूसरी तरफ कच्ची चीनी को परिष्कृत (रिफाइंड) करने को लेकर उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों में संशय की स्थिति है। उत्तर प्रदेश सरकार ने मिल वालों के लिए पेराई सीजन तक कच्ची चीनी के आयात पर प्रतिबंध लगा रखा है।
उधर कच्ची चीनी की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में 487 डॉलर प्रति टन तक पहुंच चुकी है। गत जून-जुलाई में यह कीमत 400 डॉलर प्रति टन थी। ऐसे में उसे इस्तेमाल के लायक तक बनाने में उसकी लागत देसी चीनी से थोड़ी अधिक बैठती है।
फरवरी के अंत में समाप्त होगी पेराई
महाराष्ट्र स्टेट कोपरेटिव शुगर फैक्टरीज फेडरेशन के पदाधिकारियों के मुताबिक महाराष्ट्र में इस साल भी पिछले साल की तरह 400 लाख टन गन्ने का उत्पादन हुआ है। हालांकि इस साल (2009-10) महाराष्ट्र में पेराई सत्र लगभग 110 दिनों तक चलने की संभावना है। पिछले साल महाराष्ट्र की चीनी मिलों में औसतन 95 दिनों का पेराई सत्र था।
फेडरेशन के पदाधिकारियों के मुताबिक नवंबर में बेमौसम की बरसात के कारण पेराई सत्र पिछले साल के मुकाबले थोड़ा लंबा हो जाएगा। उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों के मुताबिक इस साल अधिकतम 90 दिनों तक पेराई का काम चल पाएगा। फिलहाल प्रदेश की लगभग सभी मिलों में पेराई का काम शुरू हो गया है।
और यहां गन्ना किसानों को 200-205 रुपये प्रति क्विंटल के भाव मिल रहे हैं। सहारनपुर स्थित दया शुगर के सलाहकार डीके शर्मा बताते हैं, 'राज्य की लगभग सभी मिलें चल चुकी हैं। और अब किसानों की तरफ से भी गन्ने की आपूर्ति में कोई बाधा नहीं है।'
कच्ची चीनी महंगी
चीनी मिलर्स के मुताबिक कच्ची चीनी को रिफाइंड करने में उनके सामने सबसे बड़ी समस्या बगास की आएगी। इस साल पेराई सत्र छोटा होने के कारण बगास की कमी रहेगी। ऐसे में उन्हें रिफाइंड करने के लिए कोयले का सहारा लेना पड़ेगा। जो कि महंगा होगा।
मिलर्स कहते हैं, 'भारत में 60 लाख टन चीनी की मांग को देखते हुए कच्ची चीनी के भाव अंतरराष्ट्रीय बाजार में लगातार बढ़ रहे हैं। जिन लोगों ने गत जुलाई तक कच्ची चीनी का आयात कर लिया है, वे फायदे में रहेंगे।' गत तीन महीनों में ही कच्ची चीनी के भाव में प्रति टन लगभग 90 डॉलर का अंतर आ चुका है।
ब्राजील का ऐथनॉल की तरफ झुकाव बढ़ने से वहां चीनी के उत्पादन में कमी की आशंका अभी से जाहिर की जा रही है। उत्तर प्रदेश के मिलर्स के मुताबिक प्रतिबंध के कारण वे फरवरी से पहले कच्ची चीनी का आयात नहीं कर सकते हैं।
उस समय यह कीमत 500 डॉलर प्रति टन भी रही तो उसे रिफाइंड कर बाजार में भेजने तक उसकी कीमत 35 रुपये प्रति किलोग्राम तक हो जाएगी। फिलहाल महाराष्ट्र एवं उत्तर प्रदेश की मिलों के भीतर (एक्स मिल) चीनी की कीमत 32.50-32.70 रुपये प्रति किलोग्राम है।
लेवी भाव तय न होने से दुविधा
महाराष्ट्र एवं उत्तर प्रदेश के चीनी मिलर्स लेवी चीनी की कीमत अब तक तय नहीं होने से भी परेशान हैं। चीनी मिलें नए सत्र से 20 फीसदी लेवी की चीनी सरकार को दे रही हैं। लेकिन लेवी चीनी की नई दर तय नहीं होने से वे फिलहाल पुरानी कीमतों (13-14 रुपये प्रति किलोग्राम) पर ही लेवी की चीनी देने के लिए बाध्य है। मिलर्स की मांग है कि सरकार लेवी की चीनी बाजार भाव पर खरीदे। (बीएस हिन्दी)

कोई टिप्पणी नहीं: