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05 दिसंबर 2009

नियंत्रण मुक्त होने पर 3 साल में उर्वरक क्षेत्र में होगा 35,000 करोड़ रु. का निवेश

हैदराबाद December 04, 2009
भारतीय उर्वरक संगठन (द फर्टिलाइजर एसोसिएशन ऑफ इंडिया; एफएआई) ने उर्वरक क्षेत्र के पूरी तरह नियंत्रणमुक्त होने के अगले 3 साल में करीब 35 हजार करोड़ रुपये के निवेश की उम्मीद जताई है।
एफएआई को उम्मीद है कि केंद्र सरकार अगले साल भर में इस क्षेत्र को पूरी तरह नियंत्रणमुक्त कर देगी। एफएआई के अध्यक्ष के. एस. राजू ने बताया, 'हम चाहते हैं कि उर्वरक उद्योग को नियंत्रणमुक्त किया जाए। सरकार भी इस क्षेत्र को नियंत्रणमुक्त करने पर विचार कर रही है। उम्मीद है कि अगले साल इस समय यह क्षेत्र नियंत्रणमुक्त हो जाएगा।'
राजू ने कहा कि सुधार ने समूचे उर्वरक सेक्टर को बदल दिया है। उदारीकरण से ज्यादा उद्योगों को लाभ हुआ। जहां तक इस सेक्टर की बात है तो पिछले दशक में इसने अपनी क्षमता में कोई अतिरिक्त बढ़ोतरी नहीं की। पिछले कुछ सालों से उर्वरक उद्योग सरकार से अपील करता रहा कि सब्सिडी भुगतान को इस उद्योग से अलग कर दिया जाए और यह सीधा किसानों को दिया जाए।
उन्होंने बताया, 'अच्छी बात यह है कि अब सरकार भी ऐसा करने पर विचार कर रही है।' इस संदर्भ में वह जुलाई 2009 में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के बजट भाषण का उल्लेख करते हैं, जिसमें उर्वकर सेक्टर को मुक्त करने की बात कही गई। सरकार ने इसके लिए पोषक तत्त्व आधारित सब्सिडी प्रणाली लागू करने का खाका पेश किया। इसके तहत सब्सिडी सीधा किसानों को दिया जाएगा।
एफएआई के सहअध्यक्ष ए. वेल्लायन ने बताया कि फिलहाल देश में 1.2 करोड़ टन उर्वरक की कमी है। इस सेक्टर को नियंत्रणमुक्त करने पर पूरी संभावना है कि उर्वरक उद्योग की क्षमता में वृद्धि होगी। उन्होंने कहा, 'बहुत संभव है कि देश अगले 2-3 साल में उर्वरक के मामले में आत्मनिर्भर हो जाए।'
एफएआई महानिदेशक सतीश चंद्र ने कहा कि सरकार द्वारा उद्योग को सब्सिडी भुगतान करने में देर हो रही थी। पिछले साल के 1.2 लाख करोड़ रुपये की सब्सिडी में से सरकार ने अब तक महज 95 हजार करोड़ रुपये का ही भुगतान किया है। इनमें से 75 फीसदी नगद, जबकि 25 फीसदी बॉन्ड के जरिए भुगतान किया गया।
उद्योग की मांग है कि इन बॉन्डों को बिक्री और भुगतान लायक बनाया जाए। मानसून की विफलता के चलते खरीफ सीजन में यूरिया, मिश्रित उर्वरक और पोटाश का उठाव क्रमश: 1.23 करोड़ टन, 36 लाख टन और 19 लाख टन रहा।
इस तरह इनका उठाव 2008 की तुलना में क्रमश: 4, 4।1 और 14.3 फीसदी घट गया। हालांकि, बाद में मानसून का प्रदर्शन सुधरने से मौजूदा रबी सीजन में उर्वरक की खपत बढ़ने का अनुमान है। (बीएस हिन्दी)

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