नई दिल्ली : देश में जून से सितंबर तक रहने वाला मानसून अपने अंत की ओर बढ़ रहा है। सामान्य से 24 फीसदी कम बारिश के चलते खरीफ फसलों के उत्पादन में गिरावट की बात सरकार भी मान चुकी है और अब सबका ध्यान सर्दियों की फसलों (रबी) पर मुड़ गया है। रबी सीजन की फसलों के उत्पादन में गिरावट न हो इसके लिए केंद्र ने अभी से कमर कसनी शुरू कर दी है। कृषि अनुसंधान निदेशालय, करनाल के परियोजना निदेशक एस एस सिंह के मुताबिक, 'हम पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर के कृषि निदेशकों के साथ बैठक कर चुके हैं। साथ ही अगले कुछ दिनों में पूर्वी राज्यों और मध्य भारत के राज्यों और फिर दक्षिण भारत के राज्यों के कृषि निदेशकों के साथ बैठक होनी है।
उत्तरी राज्यों के कृषि निदेशकों के साथ बैठक में हमने बीजों की उपलब्धता सुनिश्चित करने, बीजों की सही वैरायटी इस्तेमाल करने, उर्वरकों और सिंचाई वगैरह की सुविधाएं मुहैया कराने के अलावा किसानों को फसलों की बुआई वगैरह की सूचनाएं मुहैया कराने के बारे में बात की है।' सिंह बताते हैं कि दक्षिण भारत के राज्यों में करीब 60 लाख हेक्टेयर जमीन पर गेहूं की खेती होती है। अगली सीजन में फसलों के उत्पादन के लिए सिंह ने कहा, 'अगर अगले 15 दिन अच्छी बारिश रहती है तो इससे गेहूं की फसल को काफी सपोर्ट मिलेगा।' रबी की फसलों के लिए जरूरी मिट्टी में नमी की मात्रा इस वक्त काफी कम है और सितंबर की बारिश इसमें बढ़ोतरी के लिए काफी अहम होगी। देश के जलाशयों में भी पानी की मात्रा का कम होना चिंता की वजह है। रबी की फसलें सिंचाई आधारित होती हैं और इसके लिए जलाशयों और नहरों में पानी का मौजूद होना उत्पादन के लिए बेहद जरूरी होता है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 27 अगस्त तक देश के जलाशयों में जलस्तर इनकी कुल क्षमता का केवल 42 फीसदी ही है, जो कि 10 साल के 57 फीसदी के औसत से काफी कम है। साल 2002 में देश में 19 फीसदी कम बारिश हुई थी और इस वजह से तब खरीफ फसलों का उत्पादन 22 फीसदी घट गया था। साथ ही इस वजह से रबी फसलों की उपज में भी 13 फीसदी की गिरावट आई थी। गौरतलब है कि रबी फसलों के कुल रकबे के 60 फीसदी में गेहूं की खेती होती है और साल 2002 में गेहूं उत्पादन में 10 फीसदी की गिरावट आई थी। कम नमी और जलाशयों में पानी की कमी से फसलों की यील्ड पर भी असर पड़ने का खतरा है। एंजेल कमोडिटीज के सीनियर रिसर्च एनालिस्ट बदरुद्दीन के मुताबिक, 'खरीफ फसलों की बुआई बारिश में देरी होने की वजह से कुछ बाद में हुई है। इस वजह से इनकी कटाई भी सामान्य से कुछ वक्त बाद होगी। इस वजह से गेहूं की यील्ड पर असर पड़ने की आशंका है क्योंकि रबी फसलों की बुआई देरी से होगी और कटाई के वक्त ज्यादा गर्मी होने से फसल पर असर पड़ सकता है।' राजधानी फ्लोर मिल्स के प्रबंध निदेशक एस के जैन के मुताबिक, 'मौजूदा स्थिति को देखते हुए गेहूं के उत्पादन को लेकर आशंका पैदा हो रही है। हालांकि सितंबर में अगर अच्छी बारिश हो जाए तो स्थिति काफी सुधर सकती है।' यील्ड की बात की जाए तो पंजाब में प्रति हेक्टेयर 4।3 टन गेहूं का उत्पादन होता है। इसी तरह से हरियाणा में यील्ड चार टन प्रति हेक्टेयर की है। जबकि उत्तर प्रदेश में गेहूं की यील्ड 2.7 टन प्रति हेक्टेयर है। इसी तरह से मध्य भारत में गेहूं की यील्ड 1.8 टन प्रति हेक्टेयर है। (इत हिन्दी)
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