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17 सितंबर 2009

'चीनी की कीमतें मौजूदा स्तर से और ऊपर जा सकती हैं'

September 16, 2009
चीनी की बढ़ती कीमतें सरकार के लिए परेशानी का सबब बन रही हैं। तीन सालों की तुलना में इस वक्त घरेलू उत्पादन सबसे कम हो रहा है।
पिछले साल के घाटे की तुलना में कंपनियां ज्यादा मुनाफा बना रही हैं और ऐसा लगता है कि ज्यादा कीमतें बरकरार रहेंगी। देश में सबसे ज्यादा चीनी उत्पादक कंपनी बजाज हिंदुस्तान के संयुक्त प्रबंध निदेशक कुशाग्र बजाज ने इस सेक्टर के बारे में अजय मोदी से बात की।
प्र : अक्टूबर से शुरू होने वाले नए सीजन में घरेलू चीनी उत्पादन के बारे में कुछ बताएंगे? किस तरह के घाटे की संभावना है? क्या यह घाटा आयात के जरिये पूरा होने की संभावना है?
उ : अगले सीजन में घरेलू उत्पादन 1.3-1.4 करोड़ टन के दायरे में रहने की उम्मीद है। अगर शुरुआती स्टॉक 20 लाख टन भी होता है और अगर 1.4 लाख टन उत्पादन भी होता है तो इसके बावजूद 65 लाख टन घाटा बरकरार रहेगा। संभावना यही है कि इस घाटे को आयात के जरिये हम पूरा कर सकते हैं। आयात के लिए कुछ अनुबंध कर लिया गया है और हम आगे भी आयात की उम्मीद कर सकते हैं।
प्र : देश में चीनी उद्योग हमेशा से ही एक चक्र में चलता रहा है। पिछली दो तिमाहियों में और कंपनियां जिसमें आपकी कंपनी भी शामिल है उसके मुनाफे में काफी तेजी आई है। यह दौर कब तक चलता रहेगा? कीमतों को लेकर आपकी क्या राय है?
उ : बेहतर प्रदर्शन का दौर अगले 6-8 तिमाहियों के लिए भी बरकरार रखना चाहिए। मौजूदा एक्स मिल कीमत की वसूली 30 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से हो रही है। चीनी की कीमतें मौजूदा स्तर से और ऊपर जा सकती हैं इसकी ज्यादा संभावना है।
प्र : पहले जब भी इस सेक्टर में बढ़त का रुझान दिखा उस वक्त उद्योग में विस्तार हुआ है लेकिन इस वक्त विस्तार की कोई योजनाएं नहीं दिख रही हैं। ऐसे में आपकी जैसी कंपनियां जिनकी ज्यादा कमाई होती है वह क्या करेंगी?
उ : आगे विस्तार के लिए गन्ने की उपलब्धता का कोई विकल्प नहीं है। हमारी योजना उस रकम से कर्ज का भुगतान किया जाए। हमने पहले से ही 900-1,000 करोड़ रुपये का पुर्नभुगतान किया है। बैलेंस शीट में 3,000 करोड़ रुपये का कर्ज है।
प्र : अगर हम 30 रुपये की प्राप्तियों पर विचार करते हैं तो यूपी की चीनी मिलें किस कीमत पर किसान को भुगतान कर सकती है?
उ : मौजूदा कीमतों की प्राप्तियों के आधार पर 180-200 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से किसानों को भुगतान किया जा सकता है।
प्र : ज्यादा उत्पादन की वजह से चीनी की कीमतों पर अगर दबाव बढ़ता है तो क्या यह कीमतें एक साल में बरकरार रहेंगी?
उ : चीनी की लेवी कीमतों में बढ़ोतरी होने की पूरी संभावना है। साथ ही इसे राज्य के गन्ने की कीमतों से जोड़ा जाएगा और हर साल इसकी समीक्षा की जाएगी। आमतौर पर खुले बाजार की कीमतें लेवी कीमत से नीचे नहीं जाती है और अगर लेवी 21-22 रुपये प्रति किलोग्राम बढाया जाता है तो हमें इससे सतर्क रहना होगा।
प्र : चीनी मिलों के लिए सबसे बड़ी चिंता गुड़ और खांडसारी इकाइयों की ओर गन्ना उत्पादकों का बढ़ता रुझान। चीनी के उत्पादन को बढाने के लिए इस पर कैसे रोक लगाई जा सकती है?
उ : हमने पहले भी यह देखा है कि जब गन्ने की फसल कम होती थी तब गन्ने का झुकाव गुड़ और खांडसारी इकाइयों में ज्यादा होता था। इसका कोई व्यावहारिक हल नहीं है क्योंकि कोई भी किसानों को गुड़ और खांडसारी इकाइयों को बेचने से नहीं रोक सकता। इसके लिए मिलों को ही किसानों को तुरंत भुगतान करने की पहल करनी होगी।
प्र : चीनी का आयात इस सीजन में रिकॉर्ड स्तर को छू गया। अगले और कितने सालों तक भारत चीनी का शुद्ध आयातक बना रहेगा?
उ : अगले दो सीजन (2009-10 और 2010-11) के लिए हम निश्चित तौर पर शुद्ध आयातक बने रहेंगे। हालांकि घरेलू उपलब्धता 2011-12 के सीजन में सुधरने की उम्मीद है।
प्र : सरकार चीनी की कीमतों पर नियंत्रण करना चाहती है। इसने जो उपाए किए उससे कारोबारी धारण पर भी असर हुआ। इसके अलावा मौजूदा लेवी कोटा 10 फीसदी से बढाने के संकेत भी हैं? उद्योग पर इसका क्या असर पड़ेगा?
उ : सरकार लेवी कोटा को बढ़ाकर गैर सुविधाभोगी वर्ग तक भी चीनी की उपलब्धता को बढाना चाहती है। चीनी एक बेहद जरूरी जिंस है ऐसे में सरकार की चिंता वाजिब है। (बीएस हिन्दी)

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