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02 सितंबर 2009

मेटल स्क्रैप के आयात से प्रतिबंध हटा

मुंबई September 01, 2009
एक महत्वपूर्ण फैसले के तहत सरकार ने धातु अवशेष (मेटल स्क्रैप) के आयात पर एक महीने पहले लगाए गए प्रतिबंध को समाप्त कर दिया है।
सरकार के इस फैसले से देश में द्वितीयक गैर-लौह धातुओं की आपूर्ति में बढ़ोतरी की संभावना है। प्रतिबंध समाप्त करने का यह नया फैसला जुलाई 2009 से प्रभावी होगा जिससे बंदरगाहों पर खड़े करीब 1,000 कंटेनरों का निपटारा बिना सीमा शुल्क अधिकारियों के हस्तक्षेप के हो सकेगा।
देश भर के खासकर गुजरात और मुंबई के करीब 5,000 से ज्यादा कारोबारी प्रतिनिधियों के साथ बैठक के बाद पर्यावरण और वन राज्य मंत्री जयराम रमेश ने प्रतिबंध समाप्त करने की घोषणा की। इस संबध में किसी भी समय अधिसूचना जारी की जा सकती है।
सरकार के इस फैसले को काफी महत्व दिया जा रहा है, क्योंकि अब देश भर के कारोबारी देश में सेकंडरी मेटल (सेकंड) के उत्पादन के लिए विदेश से मेटल स्कैप का आयात कर पाएंगे। भारत में इस्तेमाल किए जाने वाले करीब 40 फीसदी तांबा और एल्युमीनियम का उत्पादन मेटल स्कैप का प्रसंस्करण कर होता है।
स्क्रैप आयात पर प्रतिबंध लगाने से इन उद्योगों को बडा झटका लग सकता है, क्योंकि स्थानीय स्रोतों से स्क्रैप की खरीदारी नहीं के बराबर होती है। छोटे और कुटीर उद्योगों की मांग को पूरा करने के लिए भारत 15 लाख टन मेटल स्क्रैप का आयात करता है। इस समय कच्चे माल की कमी के कारण स्क्रैप मेल्टिंग उद्योग पूरी क्षमता के साथ परिचालन नहीं कर पा रहा है।
मालूम हो कि सीमा शुल्क विभाग ने पर्यावरण संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए 21 जुलाई को सिर्फ वास्तविक उपयोगकर्ताओं को ही मेटल स्क्रैप के आयात की अनुमति दी थी और कारोबारी और इसका इस्तेमाल करने वालों को इसके आयात की छूट नहीं दी थी।
सरकार द्वारा प्रतिबंध की समाप्ति की घोषणा के बाबत बंबई मेटल एक्सचेंज (बीएमई) के निदेशक रोहित शाह ने कहा कि पर्यावरण और वन मंत्री हमारी इस बात से सहमत दिखे कि मेटल स्क्रैप के भंडारण और इसके पिघलाव से पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है।
देश के भीतर मेटल स्क्रैप इकट्ठा किए जाने वाले संसाधनों की अभी भी बहुत कमी है, इसलिए कारोबारियों और इसका प्रसंस्करण करने वालों के पास इसके आयात के आलवा और कोई विकल्प नहीं बचता है। कारोबारियों का कहना है कि मेटल स्क्रैप के मुद्दे पर पर्यावरण मंत्रालय की चिंता आवश्यकता से अधिक थी, क्योंकि इसका इस्तेमाल सेकंडरी मेटल उत्पादन के लिए किया जाता है।
इस बाबत बीएमई के निदेशक रोहित शाह कहते हैं 'जैसे कि पर्यावरण मंत्रालय द्वारा इस बात पर चिंता जताई जा रही थी, पिघलाए हुए मेटल स्क्रैप का पर्यावरण पर कोई असर नहीं पड़ता है।' इस्तेमाल की हुईं धातुएं जैसे तांबा, जिंक, निकल और इनका स्क्रैप के रूप में मिश्रण का आयात परंपरागत तौर पर विभिन्न देशों से किया जाता है।
सरकार के इसके आयात पर प्रतिबंध लगा देने के बाद सीमा शुल्क अधिकारी मेटल स्क्रैप से भरे जहाजों को रोक लिया करते थे जिससे छोटे और कुटीर उद्योगों के सामने गंभीर समस्या खड़ी हो गई थी, क्योंकि नई धातुओं की कीमतें काफी अधिक होती हैं, इसलिए इनका इस्तेमाल करना काफी महंगा साबित हो रहा था।
बीएनएफएमएसएमए के अध्यक्ष रसिक कोठारी ने कहा कि मेटल स्कै्र पर प्रतिबंध लगने के बाद कई छोटे और कुटीर उद्योग बंदी के कगार पर पहुंच गए थे। नई धातुएं मसलन कॉपर कैथोड और जिंक इस्तेमाल किए जाने की स्थिति में उत्पाद की कीमतें प्रति किलो 30-35 किलोग्राम महंगी हो जाएंगी। ऐसा होने से घरेलू उद्योगों के लिए प्रतिस्पध्र्दा में बने रह पाना मुश्किल हो जाता ।
बढ़ेगी गैर लौह धातुओं की आपूर्ति
प्रतिबंध हटाए जाने का फैसला जुलाई से लागू होगाइस सिलसिले में कभी भी जारी हो सकती है अधिसूचनातांबा और एल्युमीनियम उद्योग को होगा फायदा (बीएस हिन्दी)

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