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14 सितंबर 2009

किसान चुकाएंगे बासमती का न्यूनतम निर्यात मूल्य घटाने की कीमत

नई दिल्ली: बासमती निर्यातकों के बढ़ते दबाव को देखते हुए केंद्र सरकार ने पिछले दिनों बासमती चावल का न्यूनतम निर्यात इस साल 3 सितंबर तक धान के पैदावार क्षेत्र में 64 लाख हेक्टेयर तक की गिरावट आ चुकी है, जिससे देश में 140 लाख टन कम चावल की पैदावार होगी। चावल की बढ़ती कीमतों को लेकर एसोचैम द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक, अगस्त 2008 से अगस्त 2009 के बीच चावल की थोक कीमतों में 13।15 फीसदी की बढ़ोतरी हो चुकी है। जानकारों का कहना है कि केरल, महाराष्ट्र, मणिपुर और असम में चावल की कीमतों में सबसे ज्यादा तेजी दर्ज की गई है। एक दूसरी रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2020 तक भारत चावल के शुद्ध आयातक देशों की श्रेणी में आ सकता है। डीजीसीआईएस की एक्सपोर्ट इंटेलिजेंस रिपोर्ट में भी कहा गया था कि बासमती का न्यूनतम निर्यात मूल्य 900 डॉलर प्रति टन किए जाने से प्रीमियम गैर-बासमती चावल का निर्यात पूरी तरह से रुक जाएगा। भारत द्वारा निर्यात की जाने वाली बासमती की किस्मों में शरबती, सोना मसूरी और पूसा 1121 शामिल हैं। निर्यात के बढ़ते दबाव के कारण पूसा 1121 को बासमती का दर्जा दे दिया गया है और बासमती के एक बड़े हिस्से के रूप में इसका निर्यात किया जाता है। इसके अलावा घरेलू बाजार में भी पूसा 1121 का उपयोग बड़े पैमाने पर किया जाता है। बासमती निर्यात के एक बड़े हिस्से के रूप में पूसा 1121 के शामिल होने के कारण घरेलू बाजार में इसकी कीमतों में इजाफा हो रहा है। कृषि अर्थशास्त्री और किसान आयोग के प्रमुख प्रोफेसर एम एस स्वामीनाथन का कहना है कि सरकार को अगले खरीफ सीजन तक या अगली रबी की फसल आने तक बासमती का न्यूनतम मूल्य 1,100 डॉलर प्रति टन रखना चाहिए था, क्योंकि अब रबी सीजन की फसल वर्ष 2010 की गमिर्यों में बाजार में आएगी। उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में केंद्र सरकार के स्टॉक में लोगों के लिए 13 महीने का पर्याप्त भंडार है। स्वामीनाथन ने कहा, 'इस साल खाद्यान्न भंडार पर सबसे ज्यादा दबाव रहेगा। स्थितियां पहले की तुलना में और बदतर हो जाएंगी। स्थिति से निपटने के लिए छोटे और मझोले किसान पहले अपने जानवर और फिर अपनी जमीन बेचने के लिए मजबूर होंगे।' (इत हिन्दी)

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