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03 अगस्त 2009

महंगी चीनी ने बिगाड़ा कन्फेक्शनरी कारोबार का जायका

बंगलुरु - देश में चीनी का उत्पादन घटने से इसके दाम लगभग 50 फीसदी बढ़ गए हैं और इसका बड़ा असर कन्फेक्शनरी बनाने वाली कंपनियों की लागत पर पड़ रहा है। लॉटे इंडिया और परफेटी वैन मेले जैसी कंपनियों को दाम बढ़ाने में भी मुश्किल आ रही है क्योंकि ज्यादातर कैंडी की कीमत एक रुपए या 50 पैसे है और इसमें इजाफा करने पर ग्राहक को खुले पैसे देने की मुश्किल आएगी। मिनट्रॉक्स और बटरकप बनाने वाली पारले एग्रो की ज्वाइंट एमडी नादिया चौहान का कहना है कि उनकी कंपनी ने कीमतें नहीं बढ़ाई हैं। कॉफी बाइट, लैक्टो किंग, कैरामिल्क, एक्लेयर्स और चॉकोपाइ जैसे ब्रांड की मालिक लॉटे इंडिया ने भी अभी तक कीमतों में कोई इजाफा नहीं किया है। लॉटे इंडिया के ग्रुप प्रोडक्ट मैनेजर वेंकटेश पार्थसारथी ने बताया, 'चीनी का दाम एक रुपया बढ़ने पर हमारा मुनाफा लगभग एक करोड़ रुपए घट जाता है।' एलपेनलिबे और मेंटॉस जैसे लोकप्रिय ब्रांड बनाने वाली परफेटी वैन मेले की लागत भी कंपनी के अनुमान से कहीं ज्यादा बढ़ गई है। कंपनी का कहना है कि इससे उनके मुनाफे पर बड़ा असर पड़ा है। कन्फेक्शनरी और च्युइंग गम बाजार में परफेटी वैन मेले की 35 फीसदी हिस्सेदारी है। देश में कन्फेक्शनरी का बाजार (चॉकलेट सहित) लगभग 3,500 करोड़ रुपए का है और इसमें प्रतिवर्ष 8-10 फीसदी का इजाफा हो रहा है। 2-4 ग्राम की एक कैंडी में 40 से 50 फीसदी चीनी होती है। यह कारोबार कम मुनाफे वाला है क्योंकि पिछले एक दशक से 50 पैसे और एक रुपए वाले अधिकतर उत्पादों की कीमतें नहीं बढ़ाई गई हैं। कैंडी की कुल बिक्री में इन दोनों दाम वाले उत्पादों का हिस्सा लगभग 80 फीसदी का है। देश का चीनी उत्पादन 2007-08 में 2.5 करोड़ टन के साथ अपने सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया था लेकिन सिंतबर, 2009 में समाप्त हो रहे चीनी के वर्ष के लिए उत्पादन का अनुमान घटकर लगभग 1.5 करोड़ टन का रह गया है। चीनी की कमी की वजह से इसके थोक और खुदरा दाम पिछले कुछ महीनों में 50 फीसदी तक बढ़ गए हैं। परफेटी वैन मेले के प्रमुख (सप्लाई चेन), जयंत के अम्बस्त ने बताया, 'कच्चे तेल की वैश्विक कीमतें कम होने से पैकेजिंग की लागत भी घटी है। इसके अलावा हमने अपने खर्चे भी कम किए हैं। अगर ये सब पहलु मददगार नहीं होते तो हमारा मुनाफा 50-60 फीसदी घट जाता।' अच्छी मांग और कम लागत के चलते पिछले कुछ सालों में बहुत सी बड़ी एफएमसीजी कंपनियों ने कन्फेक्शनरी ब्रांड लॉन्च किए हैं। उस समय चीनी के अच्छे उत्पादन की वजह से लागत कम थी। लेकिन अब चीनी के दाम बढ़ने से कंपनियों को खर्च कम करने जैसे उपायों पर सोचना पड़ रहा है। शेरखान के एमएफसीजी एनालिस्ट आशीष उपगंलवार का कहना है कि बढ़ी लागत का भार कंपनियां अपने प्रीमियम उत्पादों के ग्राहकों पर डाल सकती हैं। (ET Hindi)

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