कुल पेज दृश्य

20 अगस्त 2009

चीनी के दाम नियंत्रित करने के लिए विकल्प सीमित

August 19, 2009
हमारे खाद्य और कृषि मंत्रालय को अपनी इस बात को नहीं समझ पाने की भूल को अवश्य स्वीकार करना चाहिए कि चीनी की बढ़ती कीमतें और आर्थिक हालात के खराब रहने के बाद भी इसकी मांग में कमी नहीं आने से उनके पास खुले बाजार में चीनी की कीमतों को नियंत्रित करने का काफी सीमित विकल्प बचेगा।
मौजूदा समय में सरकार द्वारा बाजार में आपूर्ति प्रबंधन के नाम पर चीनी की मुक्त बिक्री की बात को समझा जा सकता है। आने वाले कुछ महीनों में भारत में चीनी की मांग में और ज्यादा बढ़ोतरी हो सकती है।
इसकी वहज यह है कि देश में सितंबर से जनवरी तक के लंबे त्योहारी मौसम में चीनी की मांग उफान पर होगी, लेकिन चिंता की बात यह है कि चीनी मिल मध्य नवंबर से ही नए सत्र के चीनी की आपूर्ति बाजार में कर पाने में सक्षम हो पाएंगे।
लेकिन सरकार द्वारा चीनी की बिक्री का यह फैसला आगे चलकर उतना प्रभावी नहीं होगा क्योंकि इस साल देश में चीनी का उत्पादन 150 लाख टन से भी कम रहने और 30 लाख टन चीनी का आयात देश में चीनी की मांग को पूरा नहीं कर पाएगी।
बुआई के साथ ही फसल कटने तक गन्ने को पर्याप्त वर्षा की जरूरत होती है। मानूसन के कमजोर रहने की स्थिति में फसल का उत्पादन और इसकी मिठास दोनों प्रभावित हो सकता है। जून-सितंबर की अवधि में बारिश में अगर 18 फीसदी की कमी आती है तो स्थिति और ज्यादा बिगड़ सकती है, नतीजतन देश वर्ष 2009-10 में पूर्व के 2 करोड़ टन चीनी के उत्पादन का अनुमान को कम कर 160 लाख टन करना पड सकता है।
अल नीनो प्रभाव भी भारत में मॉनसून को खासा प्रभावित कर रहा है और इससे खाद्यान्न और गन्ने की फसल पर प्रतिकूल असर पड रहा है, वहीं दूसरी तरफ ब्राजील में भारी वर्षा से गन्ने की फसल को काफी नुकसान पहुंचा है। विश्व के गन्न के इन दो बड़े उत्पादक देशों में मौसम के ठीक एक दूसरे के उलट होने से पूरे विश्व में गन्ने के उत्पादन को खासा नुकसान पहुंच सकता है।
इसके परिणामस्वरूप न्यू यार्क आईसीई में अक्टूबर 2010 के चीने के सौदे का कारोबार पिछले 28 सालों के सबसे ऊंचे स्तरों पर हो रहा है। अक्टूबर लीफे व्हाइट सुगर का कारोबार भी 567 डॉलर प्रति टन के स्तर पर हो रहा है।
वर्ष 2009 की शुरुआत के साथ ही विश्व में चीनी की को लगातार महसूस किया जा रहा है और अब तक यह कमी बढ़कर 75 फीसदी से ज्यादा हो गई है। इस बाबत बजाज हिंदुस्तान के प्रबंध निदेशक कुशाग्र बजाज का कहना है कि बाजार की हालत ऐसी है कि कच्ची चीनी की कीमतें प्रति पाउंड 25 सेंट्स तक पहुंचने के कगार पर पहुंच सकती हैं।
बकौल बजाज, भारत द्वारा बड़े पैमाने पर चीनी का आयात किए जाने से इसकी कीमतों में और ज्यादा बढ़ोतरी हो सकती है। अगले सत्र में भारत में 45 लाख टन चीनी के आयात की जरूरत पड़ सकती है, लेकिन मॉर्गन स्टैनली का कहना है कि चीनी का आयात 60 लाख टन के स्तर को भी पार कर सकता है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि 2010 के आते ही विश्व के चीनी के बाजार की स्थिति दयनीय हो सकती है। ब्राजील में चीनी का उत्पादन करने वाले क्षेत्रों में दिसंबर तक भारी बारिश से स्थिति और बिगड सकती है। कमोडिटी के जानकारों का मानना है कि कच्ची चीनी का वायदा प्रति पाउंड 30 सेंट्स के स्तर के ऊपर जा सकता है।
औद्योगिक अधिकारी ओम धनुका कहते हैं 'विश्व में चीनी में 12 मिलियन टन की कमी और इसकेभंडार के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंचने से चीनी का आयात करने वाले सभी देश जल्द से जल्द अपनी पोजीशन ले रहे हैं। भारत में चीनी का बड़े पैमान पर आयात होने के अलावा अमेरिका भी बसंत ऋतु के अंत तक 800,000 टन चीनी का आयात करने की योजना बना रहा है।
बलरामपुर चीनी के प्रबंध निदेशक का मानना है कि सरकार देश में चीनी की मौजूद किल्लत से जरूर सचेत होगी और आगे चलकर नीतियों में बदलाव कर इस बात को सुनिश्चित करेगी कि उपभोक्तओं को उचित मूल्य पर चीनी मिल रही है। दूसरी तरफ किसान और चीनी फैक्ट्री को भी गन्ने के उत्पादन का उचित लाभ मिले, इस मुद्दे पर भी गंभीरता से विचार करेगी। (BS Hindi)

कोई टिप्पणी नहीं: