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15 जुलाई 2009

खाद्य तेल का भंडार बढ़ा, किसानों पर संकट

मुंबई July 14, 2009
उपभोग में 20 फीसदी के इजाफे में अनुमान के बावजूद मौजूदा तेल वर्ष (नवंबर-अक्टूबर) के पहले आठ महीने के उपभोग में खाद्य तेल के भंडार में 50 फीसदी तक का इजाफा हुआ।
इसकी वजह मलेशिया, इंडोनेशिया और अर्जेंटीना से सस्ता आयात है। आमतौर पर रिफाइनर्स और स्टॉकिस्टों के पास 6-6.5 लाख टन रहता है लेकिन अब उनके भंडार में अब 9-9.5 लाख टन है। इस स्थिति को उद्योग से जुड़े विशेषज्ञ किसानों के लिए संकट के तौर पर देख रहे हैं।
सामान्य तौर पर उद्योगों के पास आपूर्ति को बरकरार रखने के लिए 6-6.5 लाख टन रहता है। कीमतों में लगातार गिरावट होने से सभी वर्ग के आयातकों ने भविष्य में कीमतों में बढ़ोतरी के मद्देनजर अपना भंडार तैयार करना शुरू कर दिया।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) के कार्यकारी निदेशक बी वी मेहता का कहना है, 'यह स्थिति बेहतर है क्योंकि तिलहन में कम मुनाफा होने से किसान निराश होंगे और दूसरी फसलों की खेती के लिए ही मजबूर हो जाएंगे।' इस वक्त खरीफ का सीजन चल रहा है ऐसे में बड़ी तिलहन फसलों की बुआई चल रही है।
इंदौर के सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन (एसओपीए) के कोऑर्डीनेटर और प्रवक्ता राजेश अग्रवाल का कहना है, 'लगभग 80 फीसदी तक की बुआई हुई है जबकि बाकी बुआई आने वाले दिनों में पूरी हो जाएगी। लेकिन यह सब मानसून पर भी निर्भर करता है।'
एक अनुमान के मुताबिक 10 जुलाई को खत्म हुए हफ्ते के दौरान मानसून सामान्य स्तर से 11 फीसदी ऊपर है। बुआई में लगभग एक महीने तक की देरी हो चुकी है जिससे आगे पैदावार पर भी असर पड़ेगा। लगभग 90-95 दिनों के फसल चक्र के लिए मानसून को 15 अक्टूबर तक चलना चाहिए जो सामान्य तौर पर 15 सितंबर तक होता है। इसी वजह से आगे की बुआई से मनचाही पैदावार नहीं मिल पा रही है।
मेहता कहते हैं कि क्या हम आयात पर इतना ज्यादा निर्भर रह सकते हैं? एसईए के आंकड़ों के मुताबिक नवंबर 2008 से जून 2009 के बीच वनस्पति तेल के आयात में 63.27 फीसदी तक की उछाल आई और यह पिछले साल की समान अवधि के 35.7 लाख टन के मुकाबले 58.2 लाख टन हो गया।
आयात में भी 31 फीसदी तक की उछाल आई और यह 7.8 लाख टन हो गया जो पिछले साल जून में 5.9 लाख टन तक था। इस बीच वनस्पति तेल की कीमतों में नवंबर 2008 के मुकाबले इसमें गिरावट आई। मलेशिया के पामतेल के अत्यधिक उत्पादन, इंडोनेशिया के अनुकूल मौसम और लैटिन अमेरिका में बेहतर रोपण होने की वजह से ऐसा हुआ है। (BS Hindi)

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