नई दिल्ली July 20, 2009
दाल की कीमत कम होने के नाम नहीं ले रही है। अरहर दाल सर्वोत्तम की कीमत सोमवार को भी 80 रुपये प्रति किलोग्राम से ऊपर के स्तर पर बनी रही।
अनाज मंडी के कारोबारियों का कहना है कि सरकार चावल व गेहूं की तरह दाल के उत्पादन की ओर ध्यान नहीं दे रही है। और कीमत में बढ़ोतरी उत्पादन में आयी भारी गिरावट का नतीजा है।
सरकार ने अपनी एजेंसी के जरिये 20,000 टन से अधिक दाल का आयात करने जा रही है, लेकिन घरेलू मांग एवं म्यांमार में दालों के स्टॉक की कमी को देखते हुए कीमत में गिरावट के आसार नहीं हैं।
सरकार ने कहा कि वह राज्यों के जरिए दाल और चीनी के सट्टेबाजी के कारोबार पर लगाम लगाने के लिए प्रशासनिक कदम उठा रही है। वित्त सचिव अशोक चावला ने भाषा को बताया कि इन दो उत्पादों दाल और चीनी की कीमत में बढ़ोतरी हुई है और केंद्र, राज्य सरकाराें के जरिए भंडार नियंत्रण जैसे प्रशासनिक कदम उठा रहा है ताकि सट्टा कारोबार पर नियंत्रण रखा जा सके। ''
आधिकारिक आंकड़े के मुताबिक चीनी की खुदरा कीमत जुलाई में बढ़कर 25-29 रुपये किलो हो गई जो जनवरी में 18-21 रुपये थी। चावला ने कहा '' यह सही है कि दाल की कीमत पिछले दो महीनों से बढ़ रही है। ''
उन्होेंने कहा कि दाल से जुड़े अनुसंधान और प्रौद्योगिकी मिशन के बावजूद देश में दाल का उत्पादन नहीं बढ़ाया जा सका है। अन्य देशों में भी दाल का उत्पादन कम होने के कारण आयात का विकल्प भी सीमित है।
उन्होंने कहा '' आयात (दाल) का विकल्प है लेकिन यह विकल्प सीमित है क्योंकि दालों का अंतरराष्ट्रीय उत्पादन भी बहुत अधिक नहीं है। आप दो-एक देशों से आयात कर सकते हैं। म्यांमार के साथ समझौता है। हम म्यांमार से बात भी कर रहे हैं। ''
आधिकारिक आंकड़े के मुताबिक वित्त वर्ष 2008-09 में दाल का उत्पादन घटकर 1. 41 करोड़ टन हो गया। इसके पिछले साल दाल का उत्पादन 1. 47 करोड़ टन था। उन्होंने कहा कि जहां तक चीनी का सवाल है तो केंद्र ने भंडार सीमित करने जैसे कई सुधारात्मक कदम उठाए गये हैं ताकि चीनी में सट्टा कारोबार से बचा जा सके।
घरेलू आपूर्ति बढ़ाने के लिए कच्ची चीनी का आयात कर रही है। चीनी का उत्पादन 2008-09में घटाकर 1. 45 करोड़ टन होने की उम्मीद है। (BS Hindi)
21 जुलाई 2009
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