कोच्चि July 24, 2009
भारतीय मसालों के निर्यात में अहम भूमिका निभाने वाली काली मिर्च के निर्यात में चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के दौरान भारी गिरावट दर्ज की गई है।
अप्रैल-जून 2009 के दौरान निर्यात में 40 प्रतिशत की गिरावट आई है और यह घटकर 4084 टन रह गया है, जबकि पिछले साल की समान अवधि के दौरान कुल 7550 टन काली मिर्च का निर्यात हुआ था।
निर्यात में गिरावट की प्रमुख वजह वैश्विक बाजारों की तुलना में भारतीय काली मिर्च की कीमतों का बहुत ज्यादा होना माना जा रहा है। पिछले 12-15 महीने से वियतनाम, इंडोनेशिया और ब्राजील की तुलना में भारत में इसकी कीमतें करीब 200-300 डॉलर प्रति टन ज्यादा हैं।
निर्यात के वर्तमान रुझान से पता चलता है कि भारत, मसाला बोर्ड द्वारा निर्यात के लिए तय किए गए लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाएगा। बोर्ड ने इस साल 25,000 टन काली मिर्च के निर्यात का लक्ष्य रखा था, जबकि इसके पहले वर्ष 2008-09 के लिए 35,000 टन का निर्यात लक्ष्य था।
वर्ष 2008-09 में निर्यात के लक्ष्य को पूरा नहीं किया जा सका और कुल निर्यात 25,250 टन रहा, जबकि इसके पहले साल में 35,000 टन निर्यात हुआ था। इसके साथ ही काली मिर्च के आयात में चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के दौरान बढ़ोतरी हुई है।
इस दौरान कुल 5451 टन आयात किया गया, जबकि पिछले साल की समान अवधि में 3971 टन काली मिर्च का आयात किया गया था। आयात के प्रति आकर्षण की प्रमुख वजह है कि इंडोनेशिया और ब्राजील ने सस्ती दरों पर काली मिर्च उपलब्ध कराई है।
केवल जून महीने के दौरान ही 2282 टन काली मिर्च का आयात भारत में किया गया है। भारत के निर्यातक और कारोबारी फसल तैयार होने के पहले कीमतों में संभावित बढ़ोतरी की प्रतीक्षा में हैं। जाड़ा आने की वजह से काली मिर्च की मांग बढ़ जाएगी।
कुछ निर्यातकों का मानना है कि काली मिर्च की वैश्विक मांग में बढ़ोतरी हो सकती है, इसलिए वे यूरोपियन यूनियन और अमेरिका के खरीदारों की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इसके चलते इंडोनेशिया और वियतनाम के बाजारों में भी उत्साह आ सकता है, क्योंकि वहां दाम बहुत ज्यादा गिर गया है।
हालांकि मांग में बढ़ोतरी का ज्यादा असर भारत के कारोबार पर नहीं पड़ेगा क्योंकि यहां कीमतें अभी बहुत ज्यादा हैं। कीमतों में बढ़ोतरी ज्यादा दिनों तक रहने के आसार नहीं हैं क्योंकि ब्राजील में अगस्त के अंत तक नई फसल तैयार हो जाएगी। (BS Hindi)
25 जुलाई 2009
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