देहरादून July 23, 2009
उत्तराखंड सरकार ने आज आधिकारिक तौर पर यह घोषणा की है कि दुनिया भर में बेहद मशहूर देहरादून की खुशबूदार बासमती चावल अब खत्म होने के कगार पर है।
कृषि मंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने राज्य विधानसभा में उनका कहना था कि तेजी से शहरीकरण होने की वजह से माजरा और देहरादून के दूसरे क्षेत्रों में बासमती चावल की खेती अब नहीं हो पा रही है। देहरादून का बासमती चावल अपनी खुशबू और स्वाद के लिए बेहद मशहूर है।
सरकार अब हरिद्वार और विकासनगर के नजदीकी क्षेत्रों में बासमती चावल की कई तरह की जैविक किस्मों को उगाने पर जोर दे रही है। इसकी वजह यह है कि दुनिया भर में बासमती चावल की मांग में इजाफा हो रहा है। उनका कहना है कि बासमती चावल नैनीताल और उधमसिंह नगर जिले में उगाया जाता है।
रावत का कहना है कि वर्ष 2008-09 में उत्तराखंड से बासमती चावल का निर्यात 70680.50 क्विंटल पर पहुंच गया जो वर्ष 2007-08 में 55451 क्विंटल पर था। इस साल कुल 6882 क्विंटल बासमती चावल की खरीद की गई।
इससे पहले केएलए सतनाम ओवरसीज लिमिटेड और के आरबीएल और दूसरे निजी खिलाड़ियों ने उत्तराखंड के बासमती चावल उत्पादकों से खरीद के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए है ताकि वे उनके उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेच सकें। जैविक बासमती धान की जो दर उत्तराखंड के चावल उत्पादक पा रहे हैं वह देश में सबसे ज्यादा हैं।
सूत्रों का कहना है कि इन कंपनियों ने यह आश्वासन दिया है कि वे विदेश भेजे जाने वाले बोरे पर उत्तराखंड का नाम लिखेंगी ताकि यह और भी ज्यादा मशहूर हों। आधिकारिक आंकड़ों की मानें तो राज्य की कुल 500 से 1000 हेक्टेयर जमीन जैविक बासमती चावल की खेती के अंतर्गत है जिसमें से लगभग 800 टन धान की खेती हर साल होती है।
यूरोप में खासतौर पर जर्मनी, स्विटजरलैंड, हॉलैंड, इटली जैसे देशों में बासमती चावल की मांग में इजाफा हो रहा है। अमेरिका और पश्चिम एशिया के लोगों ने खुशबूदार लंबे चावल का स्वाद लेना शुरू कर दिया है। किसान अच्छा मुनाफा कमाने के लिए जैविक बासमती चावल उगाने के लिए प्रोत्साहित हो रहे हैं। (BS Hindi)
24 जुलाई 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें