गुवाहाटी July 22, 2009
असम चाय उद्योग का भविष्य इस साल बेहद धुंधला रहने की उम्मीद है क्योंकि इसमें कई घटक काम कर रहे हैं। मौसम के विपरीत होने और बिजली में लगातार कटौती की वजह से उद्योग की उत्पादकता पर असर पड़ रहा था।
वहीं चाय के छोटे किसान 28 जुलाई से हड़ताल पर जा रहे हैं क्योंकि असम सरकार उनकी मांगों मसलन चाय की हरी पत्तियों पर चुंगी को खत्म करने और भूमि राजस्व को कम करने के इरादे के साथ नहीं दिख रही है।
राज्य सरकार ने वर्ष 2008-09 के बजट में हरी पत्तियों पर 20 पैसा प्रति किलोग्राम के हिसाब से चुंगी लगाई गई थी। यह फै सला फरवरी 2009 से प्रभावित हुआ और तब से राज्य के छोटे चाय किसान असम स्मॉल टी ग्रोवर्स एसोसिएशन (एएसटीजीए) के बैनर तले इसका विरोध कर रही है।
वे भूमि राजस्व में कमी करने की मांग कर रहे हैं जो ब्रह्मपुत्र घाटी में 22 रुपये प्रति बीघा और बराक घाटी में 16 रुपये बीघा है जो असम क्षेत्र के दो मुख्य चाय उत्पादक क्षेत्र हैं। इसी वजह से एएसटीजीए ने 28 जुलाई को हरी पत्तियों की तुड़ाई करने से मना कर दिया है। हाल ही में एएसटीजीए का एक प्रतिनिधिमंडल असम के मुख्यमंत्री तरूण गोगोई से मिला लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।
एएसटीजीए मई महीने के पहले हफ्ते ही गुवाहाटी उच्च न्यायालय की शरण ली थी। राज्य में कुल चाय उत्पादन में लगभग 29 फीसदी हिस्से का योगदान असम के छोटे चाय किसानों की ओर से होता है और देश में कुल चाय उत्पादन में इनका योगदान 14 फीसदी होता है। इन किसानों के किसी भी विरोध से राज्य और देश के कुल चाय उत्पादन पर इसका असर पड़ सकता है।
असम में लगभग 200 चाय की पत्तियों की फैक्टरी हाल के वर्षो में बढ़ी हैं और यह आपूर्ति के लिए पूरी तरह से छोटे चाय किसानों पर निर्भर हैं। एएसटीजीए के अध्यक्ष चेनीराम खोनीकोर का कहना है, 'हमारे पास हड़ताल करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा है। राज्य सरकार हमारी चिंताओं पर ध्यान नहीं दे रही है।'
उनका कहना है, 'अगर हमें भूमि राजस्व के लिए समान रकम का भुगतान करना है और चुंगी ही देना पड़ेगा तब राज्य के छोटे और बड़े चाय उत्पादकों के बीच क्या फर्क रह जाएगा।' चाय के बड़े किसान ब्रह्मपुत्र घाटी में 32 पैसा चुंगी के तौर पर देते हैं वहीं बराक घाटी के लिए 29 पैसा चुंगी देते हैं।
खोनीकोर का कहना है, 'एक तरफ छोटे किसानों को हरी पत्तियों पर चुंगी और भूमि राजस्व का भुगतान करना होता है। दूसरी ओर वह चाय बोर्ड के फायदे से वंचित है क्योंकि उनके पास पट्टा नहीं है।'
एसटीजीए भी असम के छोटे चाय उत्पादकों के लिए जमीन का पट्टा जारी करने की मांग कर रही है। असम के केवल 9 फीसदी चाय उत्पादकों के पास जमीन का पट्टा है। जबकि असम में 65,000 से ज्यादा छोटे चाय उत्पादक हैं और लगभग 9 लाख लोगों को छोटे चाय उत्पादकों के द्वारा रोजगार मिला हुआ है।
खोनीकोर ने बिजनेस स्टैंडर्ड को भूमि राजस्व के मसले पर बताया कि वे भूमि राजस्व का भुगतान करने के विरोध में नहीं हैं लेकिन छोटे किसानों को छूट मिलनी चाहिए। (BS Hindi)
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