हैदराबाद- भारत में चावल का कटोरा कहे जाने वाले आंध्र प्रदेश में सहकारी कृषि को खेती-बाड़ी के विकास के नए मंत्र के रूप में आजमाया जाएगा। पिछले पांच सालों में राज्य में कृषि की वृद्धि दर 6.4 फीसदी रही है जो 4 फीसदी के राष्ट्रीय औसत से काफी ज्यादा है। उत्पादन में बढ़ोतरी के दम पर आंध्र प्रदेश राष्ट्रीय खाद्य भंडार में योगदान करने वाला दूसरा सबसे बड़ा राज्य बन गया। प्रदेश सरकार ने कहा कि अब किसानों को आधुनिकतम प्रौद्योगिकी, बढि़या खाद-बीज, समय पर कर्ज और मड़ाई के बाद की उपयुक्त सुविधाओं के साथ बाजार संबंधी जानकारी मुहैया कराना शीर्ष प्राथमिकता है ताकि उनकी आमदनी बढ़ सके। इसके लिए सहकारी कृषि को जरिया बना जाएगा। प्रदेश के हर जिले के दो गांवों में यह योजना प्रयोगात्मक आधार पर शुरू की जाएगी।
इस योजना की बुनियादी बात यह है कि किसान की जमीन और उस पर उसका मालिकाना हक एक सहकारी समिति के हवाले कर दिए जाएंगे। प्रदेश सरकार ने प्रस्ताव किया है कि किसान अपनी हिस्सेदारी सहकारी समिति के सदस्यों को बेच सकेंगे। अगर वे सदस्य यह हिस्सेदारी खरीदने को इच्छुक न हों तो उसे सरकार बाजार भाव पर खरीद लेगी। देश के अन्य हिस्सों में चल रही डेयरी सहकारी समितियों की तर्ज पर बनाई जा रही इस योजना से अपेक्षाकृत कम जमीन वाले किसानों की मुश्किलों का काफी हद तक निपटारा होने की उम्मीद की जा रही है। कृषि क्षेत्र से आमदनी बढ़ाने के मकसद से सरकार ने सिंचाई योजनाओं के लिए 17,800 करोड़ रुपए और बिजली सब्सिडी की मद में 6,040 करोड़ रुपए तय किए थे। प्रदेश के वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार की महत्वाकांक्षी योजना जलयज्ञम से सिंचाई सुविधाओं में बढ़ोतरी होगी। सरकार ने इन योजनाओं को समय से पूरा करने का वायदा किया है। इसके अलावा सरकार ने कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों में ढील मिलने के बाद महबूबनगर, नलगोंडा, प्रकाशम और कुर्नूल जिलों में अतिरिक्त सुविधाओं के सृजन का प्रस्ताव किया है। प्रदेश 2004-09 के दौरान 8.98 फीसदी की सालाना वृद्धि दर के साथ खाद्यान्न उत्पादन किया जबकि इस अवधि में राष्ट्रीय औसत 1.9 फीसदी रहा। राष्ट्रीय चावल भंडार में राज्य अपने कुल चावल उत्पादन का करीब 60 फीसदी हिस्सा देता है। (ET Hindi)
27 जुलाई 2009
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