नई दिल्ली : सूखे की वजह से उत्तर भारत में धान की फसल के उत्पादन में 40 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है। फसलों के उत्पादन में कमी पर कारोबारी हलकों में भी चिंता है। हालांकि कारोबारियों का मानना है कि चावल का पर्याप्त भंडार होने की वजह से इसकी कीमतों में इजाफा नहीं होगा, लेकिन दूसरे मक्का, बाजरा और दालों की कीमतों में इजाफे की आशंका बनी हुई है। दिल्ली कृषि विपणन बोर्ड (डीएएमबी) के चेयरमैन ब्रह्म यादव के मुताबिक, 'देश में चावल का अच्छा भंडार मौजूद है इसलिए इसकी कीमतों में तेजी आने की कोई संभावना नहीं है। लेकिन दूसरे अनाजों के उत्पादन में कमी आने पर कीमतों में असर दिखाई देगा। हालांकि अभी भी कुछ दिनों तक ठीक बारिश हो जाए तो फसलों में रिकवरी हो सकती है।'
दिल्ली व्यापार महासंघ के अध्यक्ष ओम प्रकाश जैन के मुताबिक, 'फसलों का उत्पादन अगर कम होता है तो इसका सीधा असर कीमतों पर दिखाई देगा। हालांकि अच्छे स्टॉक की वजह से चावल इससे अछूता रहेगा। सबसे ज्यादा चिंता दालों को लेकर है क्योंकि कम उत्पादन की वजह से हमें इनके विदेशों से आयात पर निर्भर होना पड़ेगा। इससे कीमतों में तेजी पैदा होगी।' जानकारों का कहना है अगर आने वाले वक्त में ठीक बारिश नहीं हुई तो सर्दियों में बोई जाने वाली रबी की फसलों का भी हाल बुरा हो सकता है। लेकिन सबसे चिंता की बात यह है कि सरकार के पास इससे निपटने के लिए अभी तक कोई योजना मौजूद नहीं है। कृषि मंत्रालय के डिप्टी डायरेक्टर जनरल मनोज पांडेय के मुताबिक, 'अभी तक उत्पादन में कितनी कमी आएगी इसका सरकार ने कोई आकलन नहीं किया है, लेकिन जल्द ही सरकार इस पूरी परिस्थिति पर एक प्लान का एलान करेगी।' भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के 1 जून से 15 जुलाई के बीच मानसूनी बारिश के जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक पूरे उत्तर भारत के अलग-अलग हिस्सों में 56 फीसदी से लेकर 60 फीसदी की कमी रही है। बारिश न होने की वजह से उत्तर प्रदेश में तो धान की फसल पूरी तरह से खत्म होती दिख रही है। चंद्रशेखर आजाद कृषि और तकनीकी विश्वविद्यालय, कानपुर के फैकल्टी ऑफ एग्रीकल्चर के डीन डॉ के एन द्विवेदी के मुताबिक, 'इस बार ज्यादातर फसलों की यील्ड में गिरावट आने की काफी संभावना है। धान की फसल के उत्पादन में तो 40 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है। कुछ हद तक दालों की बुआई के जरिए किसान अपने नुकसान की भरपाई की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इनके उत्पादन में भी अनिश्चितता मौजूद है।' कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक पूरे देश में अब तक 114.63 लाख हेक्टेयर जमीन पर धान की बुआई हुई है, जबकि पिछले साल खरीफ में 145.21 लाख हेक्टेयर जमीन पर धान की बुआई हुई थी। धान का बुआई रकबा इस तरह से पिछले साल के मुकाबले 30.58 लाख हेक्टेयर कम है। चंद्रशेखर आजाद कृषि और तकनीकी विश्वविद्यालय, कानपुर के एक विभागाध्यक्ष ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया, 'पूरे उत्तर प्रदेश में सूखे के हालात हैं। धान का उत्पादन 38 से 45 फीसदी तक कम रहने की आशंका है। सरकारी दावों के उलट स्थिति बेहद गंभीर है। बुंदेलखंड में अब तक केवल 10 फीसदी बारिश हुई है। यह बारिश भी पिछले दो-तीन दिनों में हुई है। बांदा, हमीरपुर जैसे जिलों में हालात काफी खराब हैं। किसान धान की बुआई कर ही नहीं पा रहे हैं। साथ ही ज्वार, बाजरा की फसलों का उत्पादन भी 25 फीसदी ही रहने की आशंका है।' सरकार देश में सूखे की पैदा होती स्थिति पर एक प्लान लाने की तैयारी कर रही है। उत्तर प्रदेश में खेती की हालत कितनी खराब है इसका अंदाजा वहां के किसानों से बात करके लगता है। उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के एक किसान सुभाष शुक्ला के मुताबिक, 'मक्का, बाजरा और धान की बुआई 10 फीसदी के आसपास हुई है। सबसे ज्यादा असर धान और मक्का पर पड़ा है। मक्के के भुट्टों में से 75 फीसदी में दाने नहीं हैं।' चंबल संभाग में भी स्थिति गंभीर है। मध्य प्रदेश के भिंड के बरही गांव के अशोक बताते हैं, 'अभी तक बाजरे की बुआई नहीं हुई है। पूरे क्षेत्र में यही हालत है।' इटावा जिले के नगला गौर के रविकांत के मुताबिक, 'पारपट्टी के 100 से ज्यादा गांवों में अभी तक कोई भी फसल नहीं बोई जा सकी है। इस इलाके में बाजरा, मूंग, उड़द और अरहर की पैदावार होती है।' (ET Hindi)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें