कोच्चि : छोटे रबर उत्पादकों के बाद अब बड़े रबर एस्टेट के मालिक भी सरकार से राहत पैकेज की मांग कर रहे हैं। सरकार पहले ही रबर के छोटे उत्पादकों को राहत पैकेज दे रही है। इसके तहत जिनके पास पारंपरिक इलाके में पांच हेक्टेयर से कम और गैर पारंपरिक इलाकों में 20 हेक्टेयर तक की जमीन है वे राहत पैकेज के दायरे में हैं। राहत पैकेज की गुहार लगाते हुए हैरिसन मलयालम के एमडी पंकज कपूर ने रबर बोर्ड को एक पत्र लिखा है, जिनमें बड़े एस्टेट और कॉरपोरेट्स को भी सब्सिडी देने की मांग की है। इस मामले में ज्यादा जानकारी के लिए जब रबर बोर्ड के चेयरमैन सजान पीटर से संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा कि एस्टेट की मांग का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने कहा, 'मैं इस मांग का समर्थन नहीं करूंगा।' उनका कहना है कि सब्सिडी केवल उन्हें दी गई है जिनके पास पांच हेक्टेयर तक जमीन है। पीटर ने कहा, 'हम लोगों ने गरीबों की मदद करने के लिए यह योजना बनाई है।'
हालांकि, इस मामले में एस्टेट के प्रवक्ता की दलील है कि बड़े एस्टेट में कम पैदावार वाले पुराने क्लोन और मुख्य इलाके में कम पौधे हैं, ऐसे में इनकी उत्पादकता राष्ट्रीय औसत 1,875 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से 400-500 किलोग्राम तक कम है। दिलचस्प है कि छोटे उत्पादकों की उत्पादकता राष्ट्रीय औसत के आंकड़े से ज्यादा है। पांच साल की अवधि तक एक हेक्टेयर में रबर रीप्लांटिंग करने में बड़े रबर एस्टेटों को करीब 1.90 लाख रुपए खर्च करने पड़ते हैं। यह खर्च इतना ज्यादा इसलिए है क्योंकि वे साल भर मजदूरों को रोजगार, दूसरी सुविधाएं देने के साथ-साथ खेतों के किनारे बाड़ा बनाने, सिंचाई तथा ऑर्गेनिक खाद का इस्तेमाल करते हैं। कपूर का कहना है कि बड़े एस्टेटों को आयकर, मिनिमम ऑल्टरनेट टैक्स, वेल्थ टैक्स, डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स, एग्रीकल्चर इनकम टैक्स और प्लांटेशन टैक्स देना पड़ता है। उनका कहना है, 'इतने तरह का कर देने के बाद भी हमें सब्सिडी नहीं दी जा रही है।' इस मामले में जब दक्षिण भारत के यूनाइटेड प्लांटर्स एसोसिएशन के प्रवक्ता से संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा कि एसोसिएशन इस मुद्दे को रबर बोर्ड की अगली बैठक में उठाएगा। (ET Hindi)
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