नई दिल्ली: मॉनसून की पतली हालत से खेती-बाड़ी की सेहत बिगड़ने की आशंका के बीच सरकार ने सोमवार को स्वीकार किया कि भारत में हर साल 50,000 करोड़ रुपए का खाद्यान्न इस वजह से नष्ट हो जाता है, क्योंकि फसल की मड़ाई के बाद उसे संभाल कर रखने की व्यवस्था बेहद घटिया है। खाद्य प्रसंस्करण मंत्री सुबोध कांत सहाय ने राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा, 'मड़ाई के बाद विभिन्न स्तरों पर बर्बादी के कारण करीब 50,000 करोड़ रुपए का खाद्यान्न नष्ट हो जाता है।' सहाय ने कहा कि खेतों के छोटे आकार, कृषि उत्पाद विपणन (विकास एवं नियमन) कानून के प्रावधानों और कोल्ड चेन, परिवहन, भंडारण और प्रसंस्करण सुविधाओं के अभाव के कारण खाद्यान्न की यह बर्बादी होती है। इस घटनाक्रम पर कमोडिटी विश्लेषकों ने आशंका जताई कि फसल की इतने बड़े पैमाने पर हो रही बर्बादी से खाद्य सुरक्षा कानून लागू करने की सरकार की योजना को पलीता लग सकता है, खासतौर पर ऐसे वक्त जब खराब मॉनसून के कारण कृषि उत्पादन घटने की आशंका प्रबल हो गई है।
कमोडिटी ब्रोकरेज कार्वी कॉमट्रेड में रिसर्च हेड अरबिंदो प्रसाद ने कहा, 'मड़ाई के बाद उपज की इतने बड़े पैमाने पर बर्बादी खाद्य सुरक्षा कानून से जुड़ी योजना में बाधा बन सकती है, क्योंकि मॉनसून की खराब स्थिति के कारण फसलों पर बुरा असर पड़ने की आशंका पहले ही बन चुकी है। सरकार को भंडार गृहों में होने वाले नुकसान सहित विभिन्न क्षेत्रों की खामियां दूर करने के लिए तुरंत उठाना चाहिए।' राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने पिछले महीने कहा था कि केन्द्र राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून बनाएगा जिसके तहत गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले हर परिवार को हर महीने 3 रुपए प्रति किग्रा. की दर से 25 किग्रा. राशन दिया जाएगा। एक अन्य कमोडिटी विश्लेषक ने कहा, 'कृषि उत्पादन मॉनसून पर ही निर्भर करता है। लिहाजा बारिश की खराब हालत के इस दौर में केंद्र को मड़ाई के बाद उपज की बर्बादी रोकने के लिए तुरंत उपाय करने चाहिए।' खाद्य एवं कृषि मंत्री शरद पवार ने पिछले सप्ताह संसद में कहा था कि मॉनसून की लचर हालत के कारण इस खरीफ सीजन में धान का उत्पादन प्रभावित हो सकता है। (ET Hindi)
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