चंडीगढ़ July 16, 2009
देश के उत्तरी भाग में मानसून में देरी होने की वजह से हरियाणा के धान के रकबे पर असर पड़ सकता है।
हालांकि हरियाणा के कृषि विभाग के अधिकारी इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए अपनी बेहतर कोशिश कर रहे हैं। सेंट्रल पूल को हर साल हरियाणा 17-22 टन का योगदान देता है।
हरियाणा कृषि विभाग धान की खेती के लिए इस साल 11.50 लाख हेक्टेयर क्षेत्र का लक्ष्य रख रही है जबकि पिछले साल यह लक्ष्य 12.10 लाख हेक्टेयर था। हरियाणा के कृषि अधिकारियों के मुताबिक मानसून में देरी होने से यहां बारिश में भी कमी आई है इसकी वजह से योजनाएं भी बाधित हो रही हैं।
अधिकारियों का कहना है कि धान कि खेतों में कम बारिश के लिए कृत्रिम बारिश का इंतजाम हल के तौर पर पेश किया जा सकता है। हरियाणा के कुल धान क्षेत्र के लगभग 80 फीसदी में टयूबवेल के जरिए सिंचाई होती है और बारिश की कमी की वजह से कृत्रिम सिंचाई बेहद जरूरी हो जाती है।
कृत्रिम सिंचाई में टयूब वेल के जरिए सिंचाई होती है ताकि कृषि विभाग अपने लक्ष्य को पूरा कर सके। हरियाणा में धान की बुआई 15 जून से शुरू हो रही है और यह 31 जुलाई तक चलेगी। कृषि विभाग के अतिरिक्त निदेशक बी एस दुग्गल के मुताबिक कम बारिश से धान की खेती पर असर पड़ सकता है लेकिन विभाग लक्ष्य को पूरा करने के लिए कोशिश कर रही है।
उनका कहना है कि बारिश की कमी से हरियाणा में बासमती चावल की खेती वाले रकबे में बढ़ोतरी हो रही है। दुग्गल का कहना है, 'इस साल हरियाणा में सामान्य धान का क्षेत्र लगभग 45 फीसदी तक हो सकता है लेकिन बासमती चावल का रकबा पिछले साल के 40-45 फीसदी के मुकाबले 55 फीसदी तक हो सकता है।'
हरियाणा में बासमती चावल के रकबे में बढ़ोतरी की वजह यह है कि कृषि मंत्रालय ने पूसा-1121 किस्म को बासमती चावल के तौर पर नामांकित किया है। दूसरी वजह यह है कि बासमती चावल में कम पानी की जरूरत होती है और इसकी बुआई भी देर से होती है। खासतौर पर बारिश की कमी की वजह से किसानों का आकर्षण बासमती चावल के लिए बढ़ जाता है। (BS Hindi)
17 जुलाई 2009
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