कुल पेज दृश्य

17 जुलाई 2009

गन्ने की बुआई में कमी और कम रिकवरी से चीनी मिलों पर दोहरी मार

July 17, 2009
अक्टूबर-09 में शुरू होने वाले चीनी सत्र के लिए गन्ने के उत्पादन के बारे में अभी कोई अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी। इसकी वजह यह है कि पहले यह देखना होगा कि उत्तर पूर्व मानसून किस तरह का व्यवहार करता है।
आने वाले जुलाई और अगस्त महीनों में गन्ने की फसल को विकास के लिए पानी की जरूरत होगी, क्योंकि पौधे के विकास के लिहाज से यह महीना बहुत मुफीद होता है। मानसून में प्रगति के अलावा भी तमाम तत्व हैं जो गन्ने के उत्पादन को प्रभावित करते हैं।
गन्ने की अगली फसल और पैदावार में यह भी देखने की बात होगी कि कितने किसानों ने गन्ने की खेती छोड़कर गेहूं, चावल, दाल जैसे विकल्पों को चुना है, क्योंकि इन फसलों में मुनाफे में बढ़ोतरी हुई है। 2008-09 के दौरान गन्ने की बुआई का क्षेत्रफल घटकर 44 लाख हेक्टेयर रह गया, जबकि इसके पहले के साल में 50.43 लाख हेक्टेयर था।
लेकिन गन्ने की बुआई के क्षेत्रफल में आई कमी की एक प्रमुख वजह मौसम भी है। देश के सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में गन्ने की बुआई के क्षेत्रफल में 29 प्रतिशत की कमी आई है, जिससे इस बात के संकेत मिलते है।
इसी तरह से चालू सत्र में चीनी का उत्पादन घटकर 146 लाख टन रह गया जो पिछले2007-08 सत्र में 263.3 लाख टन था। इसकी एक प्रमुख वजह यह है कि सूखे मौसम के चलते चीनी की रिकवरी में कमी आई है।
उद्योग के एक अधिकारी ओम धानुका ने कहा, 'चीनी मिलों पर दोहरी मार पड़ी है। एक तरफ तो गन्ने का उत्पादन पिछले साल के 3481.9 लाख टन से घटकर इस साल 2892.3 लाख टन रह गया, वहीं दूसरी तरफ चीनी की रिकवरी भी कम हो गई है। कमोवेश, जैसा कि पिछले दिनों में अक्सर होता रहा है, 2008-09 के दौरान फसलें कम हुईं तो गुड अौर खांडसारी इकाइयों की ओर गन्ना ज्यादा गया, जो सरकारी नियंत्रण से मुक्त हैं।'
इस साल का अनुभव क्या रहा? क्या हमने शुरुआत में यह नहीं कहा था कि चीनी का उत्पादन 200 लाख टन के करीब रहेगा। इससे यह प्रदर्शित होता है कि इस जिंस के बारे में अनुमान लगाना कितना दुश्कर है। किसी भी अनुमान में अब चीनी का उत्पादन कितना होगा, इसके पहले यह देखना होगा कि 2008-09 में गन्ने का उत्पादन कम हुआ था, जिसकी वजह से इस साल गन्ने की पेंड़ी भी बहुत कम होगी।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन के निदेशक एसएल जैन अब बहुत आशान्वित हैं। उम्मीद यह है कि गन्ने का सांविधिक न्यूनतम मूल्य बढ़ाकर अब 107.76 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है, जो इसके पहले 81.18 रुपये प्रति क्विंटल था- अब किसान ज्यादा गन्ना बोने के लिए उत्साहित होंगे। लेकिन आगामी कुछ सत्रों में उत्पादन पर नजर रखनी होगी।
आर्थिक समीक्षा में घोषणा की गई थी कि अंतिम रूप से चीनी को नियंत्रण मुक्त कर दिया जाएगा, उम्मीद है कि इसके चलते उद्योग जगत ने चीनी का स्टॉक बनाया है। अगर ऐसा हुआ तो मिलें राशन की दुकानों के लिए सब्सिडी वाली चीनी नहीं रखेंगी। भारत में किसानों के पास विकल्प होता है कि वे एक फसल से दूसरी फसल की ओर चले जाएं, अगर उन्हें मुनाफा नहीं दिखाई देता है।
एसएमपी कम होने की वजह से गन्ने में मुनाफा तुलनात्मक रूप से कम हो गया, जिसके चलते गेहूं और चावल को जगह बनाने का अवसर मिल गया। 2008-09 तक चार मौसम में अनाजों के दाम में 60 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, जबकि गन्ने में महज 2 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। अब सरकार ने दया करके कीमतों में बढ़ोतरी शुरू कर दी है।
2009-10 के चीनी उत्पादन के अनुमानों के मुताबिक हमें इंटरनैशनल शुगर आर्गेनाइजेशन के अधिकारियों के अनुमानों से सबसे ज्यादा उम्मीद बंधती है। उन्होंने कहा है कि एसएमपी में बढ़ोतरी के बाद उत्पादन 55 लाख टन बढ़ सकता है। हमारे राज्य गन्ना आयुक्तों का भी मानना है कि उत्पादन में बढ़ोतरी होगी, लेकिन वे आत्मविश्वास के साथ ऐसा नहीं कह रहे हैं।
उत्तर भारत में बारिश में कमी के चलते कोऑपरेटिव अधिकारियों को अगले सत्र में चीनी के उत्पादन का अनुमान घटाकर 175 लाख टन करना पड़ा, जो पहले 180 लाख टन था। यह सब ध्यान में रखते हुए और अक्टूबर से नए सत्र के शुरू होने पर पहले के स्टॉक के न होने के चलते मॉर्गन स्टैनली ने कहा है कि भारत का चीनी आयात दोगुना होकर 2009-10 में 60 लाख टन हो जाएगा।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि उत्पादन कम होने के पीछे नीतिगत दोष है और उपभोग पर लंबे समय से नियंत्रण है। यह बहुत ही कष्टप्रद होगा कि भारत चीनी का आयातक बन जाएगा, वह भी ऐसे समय में जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमतें 2006 के बाद से आसमान छू रही हैं। सही कहें तो चीनी की कीमतों में जनवरी 2009 के बाद बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है।
धानुका कहते हैं कि अगर चीनी के उत्पादन में 2009-10 के दौरान कोई सुधार नहीं आता है तो उत्पादन की तुलना में मांग बहुत ज्यादा हो जाएगी। यह अंतर आईएसओ के मुताबिक 110 लाख टन का होगा। यही कारण है कि भारत बड़े पैमाने पर चीनी की खरीद कर रहा है। फंड्स भी चीनी वायदा को समर्थन दे रहे हैं। उन्हें यह लग रहा है कि चीनी की कीमतों में मजबूती बनी रहेगी। (BS Hindi)

कोई टिप्पणी नहीं: