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03 सितंबर 2010

लंबी अवधि के अनुबंध करना चाहती हैं एल्युमीनियम कंपनियां

बेंगलुरु September 02, 2010
भारतीय एल्युमीनियम कंपनियां एल्युमिना की कीमतें निर्धारित करने के लिए हाजिर भाव प्रणाली के प्रस्ताव के पक्ष में नहीं हैं। इसके बजाए वे लंबी अवधि के अनुबंध पर आधारित मूल्य निर्धारण की मौजूदा प्रणाली का समर्थन कर रही हैं।चीन में एल्युमीनियम की घटती हुई मांग और इसके भाव में उतार-चढ़ाव को देखते हुए इस प्रणाली की पेशकश की गई थी। एल्युमिना एल्युमीनियम उत्पादन प्रक्रिया का मध्यवर्ती उत्पाद है, जिसे एल्युमिना रिफाइनरी में बॉक्साइट के रूपांतरण से तैयार किया जाता है।इस धातु को एल्युमीनियम में परिवर्तित किया जा सकता है और इसके अन्य उपयोग भी हैं। मसलन इसका इस्तेमाल प्लास्टिक फिलर के रूप में, औद्योगिक इकाइयों में उत्प्रेरक के रूप में, गैस के शुद्घीकरण प्रक्रिया में और अपघर्षक के रूप में भी किया जाता है।भारतीय एल्युमीनियम कंपनियां अतिरिक्त एल्युमिना का वैश्विक बाजारों में निर्यात करती हैं। इसके लिए सौदे खरीदारों के साथ लंबी अवधि के अनुबंध के आधार पर निपटाए जाते हैं। सामान्य तौर पर एल्युमिना के भाव एल्युमीनियम के भाव से प्रभावित होते हैं। लंदन मेटल एक्सचेंज में एल्युमीनियम के भाव में आने वाले उतार-चढ़ाव से इसका सीधा वास्ता होता है। लेकिन, अल्कोआ और एल्युमिना लिमिटेड जैसी वैश्विक एल्युमीनियम कंपनियों ने हाल ही में एल्युमिना के भाव को एल्युमीनियम के भाव से अलग रखने का प्रस्ताव रखा है।उनके विचार के मुताबिक एल्युमिना के भाव इसके अंतिम उत्पाद एल्युमीनियम के भाव पर आधारित होते हैं। दोनों उत्पादों के बीच इस संबंध को तोड़ा जाना चाहिए ताकि एल्युमिना का बेहतर भाव निर्धारित किया जा सके। इसके बाद लंबी अवधि के लिए अनुबंध के बजाए इसका भाव हाजिर बाजार में रुझान के मुताबिक निर्धारित करने का विचार सामने आया है।नैशनल एल्युमीनियम कंपनी लिमिटेड (नाल्को) के निदेशक (वाणिज्यिक) अंशुमन दास ने कहा, 'हालांकि हाजिर बाजार के माध्यम से भाव निर्धारण के ज्यादा विकल्प हैं, लेकिन लंबी अवधि के अनुबंध पर आधारित भाव ज्यादा स्थिर होते हैं और यह भाव में उतार-चढ़ाव को प्रभावी तरीके से रोक पाने में सक्षम होते हैं।'नाल्को ने वित्त वर्ष 2010 के दौरान 15.9 लाख टन एल्युमिना का उत्पादन किया था। यह कंपनी अतिरिक्त एल्युमिना की बिक्री अंतरराष्ट्रीय बाजार में करती है और इसके भाव बड़े स्तर पर बेंचमार्क कीमत की तरह इस्तेमाल किए जाते हैं।दास ने बताया, 'एल्युमिना के भाव को एल्युमीनियम के भाव से अलग करना व्यावहारिक रूप से कठिन है क्योंकि इसकी मांग एल्युमीनियम की मांग पर निर्भर करती है।'उन्होंने यह भी कहा कि हाजिर बाजार में मांग के स्तर पर उतार-चढ़ाव का हवाला देकर इसके हाजिर मांग का आकलन भरोसेमंद नहीं होगा।फिलहाल चीन, इरान और किरगिस्तान के हाजिर बाजार बहुत प्रभावशाली हैं, जहां एल्युमिना की बिक्री हाजिर मांग के आधार पर होती है। दास ने बताया, 'चीन में मांग बढऩे की वजह से वर्ष 2003 से लेकर वर्ष 2007 के दौरान एल्युमिना के भाव में तेजी रही थी। लेकिन चीन में घरेलू स्तर पर उत्पादन बढऩे के चलते वहां की मांग में पहले से ही गिरावट आ चुकी है।'लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) में फिलहाल एल्युमीनियम के भाव 2,050 डॉलर प्रति टन के स्तर पर है और अंतरराष्टï्रीय बाजार में एल्युमिना के भाव 310-330 डॉलर प्रति टन है। कोच्चि स्थित एक ब्रोकरेज फर्म के एक विश्लेषक ने इस मसले पर कहा, 'एलएमई के भाव पर स्वतंत्र रूप से सौदा कठिन है क्योंकि बेंचमार्क भाव हमेशा खरीदारों के मानस पर निर्भर करता है।'बावजूद इसके उनका कहना है कि एल्युमिना के भाव निर्धारण के नए प्रस्ताव को लागू किया जाना बड़ी एल्युमीनियम कंपनियों के सक्रिय खेमा के रुख पर निर्भर करेगा। (BS Hindi)

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