मुंबई 09 24, 2010
बुनियादी चीजें (फंडामेंटल्स) मजबूत बने रहने की वजह से आगामी महीनों के दौरान वैश्विक स्तर पर खाद्यान्न के भाव ऊंचे बने रहने के आसार हैं, हालांकि इस सीजन में रिकॉर्ड उत्पादन का अनुमान है।ब्राजील और रूस में मौसम आधारित उत्पादन को तगड़ा झटका लगने और दुनिया भर के तमाम देशों में जबरदस्त तरीके से बढ़ती हुई मांग की वजह से खाद्यान्न का वैश्विक बाजार संवेदनशील हो गया है।दरअसल रूस, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया एवं दक्षिण अमेरिका जैसे देशों में प्रतिकूल मॉनसून और भारत, चीन एवं पाकिस्तान में बाढ़ की वजह से फसल की बर्बादी का वास्तविक अंदाजा लगाया जाना फिलहाल बाकी है और इस वजह से अनिश्चितता वाली स्थिति बनी हुई है। यही कारण है कि सट्टा बाजार को बेहतर मौके मिल रहे हैं और वायदा बाजार में खाद्यान्न व्यापारी इसका पूरा फायदा उठा रहे हैं। नतीजतन खाद्यान्न भाव में तेजी शुरू हो गई है। मसलन न्यूयॉर्क में मक्के का भाव 5.2375 डॉलर प्रति बुशल के स्तर पर जाकर 5.0825 डॉलर प्रति बुशल पर बंद हुआ। अन्य कमोडिटी के भाव में भी इसी तरह के रुझान बने हुए हैं। मंगलवार को सीबीओटी सोयाबीन की नवंबर डिलिवरी 5-1/2 सेंट यानी 0.5 फीसदी तेजी के साथ 10.90 डॉलर प्रति बुशल रही। सोयाबीन के भाव में यह तेजी कनाडा में फसल पर पाले का असर, दक्षिणी अमेरिका में सूखे की स्थिति और मक्के के भाव में हालिया वृद्घि की वजह से आई है।उधर राबोबैंक ने इसी महीने की 16 तारीख को जारी अपनी रिपोर्ट में खाद्यान्न के वायदा भाव में आई तेजी के प्रति चिंता जताई है। इसके अलावा अमेरिका में मक्के की अनुमानित उत्पादकता में संशोधन करके 162.5 बुशल प्रति एकड़ कर दिया गया है, जो एक महीना पहले तक 165 बुशल प्रति एकड़ था। इससे भी चिंता बढ़ी है।चीन ने मौजूदा सीजन के दौरान 16.6 करोड़ टन मक्का उत्पादन का अनुमान लगाया है। लेकिन बाढ़ की वजह से वहां के कई हिस्सों में फसल बर्बाद हो चुकी है, इस चलते उत्पादन उम्मीद से कम रहने की आशंका जताई जा रही है।यही नहीं, रूस में भी हालात बहुत अच्छे नहीं हैं। खराब मौसम की वजह से वहां जाड़े में बोई जाने वाली फसलों का रकबा घटने का अंदेशा है। इसके अलावा जिन खेतों में गेहूं नहीं बोई जा सकी थी और उनकी जगह वसंत ऋतु वाली फसलें बोई गई हैं, उनकी उत्पादन दर भी कम रहने की आशंका जताई जा रही है। ये तमाम चीजें आगामी महीनों में गेहूं के बाजार पर जबरदस्त असर डाल सकती हैं।दूसरी ओर ये हालात किसानों के लिए बहुत बुरे नहीं हैं क्योंकि पिछले 12 महीनों के दौरान उन्हें फसलों का बढिय़ा भाव मिला है। अनाज, तिलहन और कपास के भाव फिलहाल काफी ऊंचे स्तर पर हैं। लेकिन बाजार के लिए दूसरी चुनौती है। वर्ष 2011 के दौरान मांग के मुताबिक आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए किसानों को भरोसा दिलाना होगा कि भविष्य में भी उनकी फसलों के लिए उन्हें उम्मीद के मुताबिक भाव मिलेगा, लिहाजा वे फसलों का रकबा अधिक-से-अधिक बढ़ाएं। (BS Hindi)
25 सितंबर 2010
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