नई दिल्ली 09 14, 2010
गरीबों की चीनी अब बाकी लोगों का मुंह कड़वा कर सकती है। दरअसल चीनी को नियंत्रण मुक्त करने के प्रस्ताव के तहत केंद्र सरकार चीनी सब्सिडी की नई प्रक्रिया तय करने पर ध्यान दे रही है। केंद्र ने चीनी नीति के तहत बाजार कीमत पर चीनी खरीदकर उसे गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों को वितरित करने की जिम्मेदारी राज्य को सौंपने का प्रस्ताव दिया है। इस कारण राज्य को होने वाले नुकसान के एवज में केंद्र चीनी की बिक्री पर 100 रुपये प्रति क्विंटल का उपकर लगाएगा। चीनी विनियंत्रण के मामले पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को दी गई प्रस्तुति में कृषि एवं खाद्य मंत्री शरद पवार ने चीनी मिलों को शीरे व खोई की बिक्री से होने वाली कमाई किसानों के साथ बांटने का सुझाव दिया। यह कीमत सरकार द्वारा गन्ने की तय कीमत से ज्यादा होगी। यह प्रस्तुति इस महीने की शुरुआत में की गई थी।मौजूदा लेवी नीति के तहत चीनी मिलों को कुल सालाना उत्पादन की 20 फीसदी चीनी सरकार को 1,800 रुपये प्रति क्विंटल के दाम पर बेचनी पड़ती है। यह लेवी चीनी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों को वितरित की जाती है। चीनी विनियंत्रण से चीनी मिलों को काफी फायदा होगा। फिलहाल लेवी चीनी देने से इन कंपनियों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है। मौजूदा चीनी सत्र की ही बात करें, तो इस दौरान चीनी उद्योग ने करीब 188 लाख टन चीनी का उत्पादन किया। इस दौरान उद्योग ने सरकार को 37.6 लाख टन लेवी चीनी दी। लेवी चीनी और चीनी की बाजार कीमत में 9,000 रुपये प्रति टन का अंतर है। इस हिसाब से मौजूदा सत्र में चीनी उद्योग को करीब 3,384 करोड़ रुपये का नुकसान झेलना पड़ा है। प्रस्तावित प्रक्रिया के तहत सरकार उपकर के तौर पर रकम वसूलेगी और उससे गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों को राज्य द्वारा दी जा रही चीनी सब्सिडी की भरपाई करेगी। अगले साल चीनी का उत्पादन 250 लाख टन रहने की उम्मीद है। इससे सरकार करीब 2,500 करोड़ रुपये जुटाएगी। केंद्र सरकार चीनी विकास फंड को वित्तीय सहायता देने के लिए चीनी मिलों से 24 रुपये प्रति क्विंटल विकास शुल्क वसूलती है। चीनी उद्योग विकास शुल्क के साथ ही उपकर का भार भी ग्राहकों पर डालने की योजना बना रहा है। (BS Hindi)
14 सितंबर 2010
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