बरेली, जागरण संवाददाता : कुछ दिनों पहले तक जहां खेतों में धान की फसल लहलहाकर आने वाली खुशहाली का संदेश दे रही थी, वहां आज चारों तरफ फैला पानी ही पानी तबाही की कहानी कह रहा है। रामगंगा की तबाही, जिसने घर-बार ही नहीं, फसल को भी नष्ट कर किसानों को बर्बादी के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। करीब पांच दिनों से हो रही बारिश ने धान की आधी फसल को नष्ट कर दिया है। खेतों में पानी भरने से गन्ने की फसल भी चौपट हुई है। किसान के पास अपनी बदहाली पर आंसू बहाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है।
बता दें कि मीरगंज, बहेड़ी, नवाबगंज और फरीदपुर की नदियों किनारे के धान और गन्ने की अच्छी पैदावार होती है। वक्त पर मानसून आया तो किसानों के भी चेहरे खिल उठे। कम लागत में अधिक पैदावार किसानों के लिये खुशहाली लाती, लेकिन सब-कुछ चौपट हो गया। यहां धान की फसल लगभग तैयार होने को थी। धान में बाल आ गई थी और अक्टूबर में इसकी कटाई होती लेकिन उससे पहले दैवीय आपदा ने सब तहस नहस कर दिया। रामगंगा और उसकी सहायक नदियां देवरनिया, किला, किच्छा, शंखा, भाखड़ा, पीलाखार, बहगुल आदि नदियों ने ऐसा तांडव मचाया कि कि हजारों एकड़ धान डूब गया है। कटरी के जिन क्षेत्रों में धान की अधिक पैदावार थी, वहां पौधे से एक मीटर ऊपर तक पानी भर गया है। संयुक्त कृषि निदेशक ऋषिराज सिंह ने बताया कि इन इलाकों में करीब तीस हजार हेक्टेयर धान की फसल है। चूंकि बाढ़ ने विकराल रूप धारण कर लिया है इसलिए आसार है कि 40 फीसदी धान की पैदावार को नुकसान हो सकता है। वैसे इसका आंकलन तो राजस्व विभाग करेगा और फिर किसानों को मुआवजा भी देगा। इन्हीं तहसीलों में गन्ने की फसल अच्छी होती है। गन्ने की फसलों में पानी भरने से उसमें बीमारियां लगने लगी हैं। अब गन्ने की बढ़वार कम होगी और उसमें रस कम निकलेगा, इससे किसानों को भारी नुकसान होगा। कटरी में लगी गन्ने की फसल नदी की तेज धारा में उखड़कर बह चुकी होगी। (Dainik Jagarn)
22 सितंबर 2010
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