मुंबई September 13, 2010
राजस्थान, गुजरात, हरियाणा एवं पंजाब जैसे प्रमुख उत्पादक राज्यों में अनुकूल मॉनसून की वजह से इस वर्ष ग्वारसीड का उत्पादन 50 फीसदी बढ़ जाने की उम्मीद जताई जा रही है।एनसीडीईएक्स की सहायक इकाई 'नैशनल कोलेटरल मैनेजमेंट सर्विसेज के एक आकलन के मुताबिक मौजूदा फसल वर्ष के दौरान ग्वारसीड का कुल उत्पादन 6.37 लाख टन रहेगा। पिछले फसल वर्ष के दौरान देश में 4.20 लाख टन ग्वारसीड का उत्पादन हुआ था।चूंकि यह वर्षा आधारित फसल है, इसलिए इसकी उत्पादकता देश के शुष्क इलाकों में मॉनसून के दौरान होने वाली बारिश की मात्रा पर निर्भर करती है। ग्वारसीड की फसल पर बारिश में कमी का प्रतिकूल असर होता है। खास तौर पर राजस्थान और हरियाणा में इस वर्ष जबरदस्त बारिश हुई है। यही वजह है कि इन राज्यों में ग्वारसीड का रकबा बढ़ा है। केवल हरियाणा में ही ग्वारसीड का रकबा 42 फीसदी बढ़कर 2.44 लाख हेक्टेयर हो गया है। पिछले सीजन के दौरान इस राज्य में फसल का रकबा 1.71 लाख हेक्टेयर था। इसी तरह इस फसल के सबसे बड़े उत्पादक राज्य राजस्थान में भी इस फसल का बुवाई क्षेत्र 8.70 फीसदी बढ़कर 17.24 लाख हेक्टेयर से 18.78 लाख हेक्टेयर हो गया। नतीजतन देश में ग्वारसीड का कुल रकबा 13.62 फीसदी बढ़कर 25.28 लाख हेक्टेयर हो गया। पिछले सीजन में इस फसल का रकबा 22.25 लाख हेक्टेयर रहा था।गौरतलब है कि कम भाव की वजह से ग्वारसीड को बाजार में कम ही उतारा गया और इसका जबरदस्त भंडार बना हुआ है। कारोबारी इस भंडार को भाव बढऩे के इंतजार में अगले 3 वर्षों तक बनाए रख सकते हैं। लेकिन इसके भाव में उतार-चढ़ाव वाली स्थिति मौजूदा सीजन की पूरी अवधि तक बरकरार रह सकती है। ग्वारसीड का भाव फिलहाल 2,000 रुपये से गिरकर 1,800 रुपये प्रति क्विंटल रह गया है। लेकिन परिस्थितियों में सुधार की गुंजाइश है। वैश्विक स्तर पर इसकी आपूर्ति में गिरावट आई है और इसके उपभोक्ता उद्योगों की ओर से मांग बढ़ी है। लिहाजा इस वर्ष दिसंबर तक इसके भाव 2,800 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर तक जा सकते हैं। 'ट्रेड ऐंड कमोडिटी इंटेलिजेंस ग्रुप, एनसीएमएसएलÓ के प्रमुख डॉ हनिश कुमार सिन्हा की तो कम-से-कम यही राय है। हालांकि वर्ष 2010-11 के दौरान ग्वारसीड के तगड़े उत्पादन की उम्मीद जताई जा रही है, लेकिन भंडारों से कम उठाव एवं निर्यात के लिए मांग में धीरे-धीरे बढ़ोतरी की वजह से इसके बाजार को मदद मिल सकती है। ग्वारसीड की फसल खराब होने की वजह से फसल वर्ष 2009-10 में ग्वारसीड की कीमतों में करीब 84 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। भारत में 1998-99 के बाद से यह दूसरा साल रहा, जब ग्वारसीड की फसल बहुत खराब रही। बहरहाल ग्वारसीड की कीमतें 1998-99 के उच्चतम स्तर पर नहीं पहुंचीं। इसकी वजह यह रही कि पिछले साल ग्वारसीड की मांग वैश्विक मंदी के असर से खासकर पश्चिमी देशों में कम रहीं। यहां तक कि 2009-10 में हाजिर बाजार में इसकी कम आवक के बावजूद राजस्थान कृषि विभाग द्वारा बेहतर फसल के आंकड़े दिए जाने के बाद से कीमतें कम होनी शुरू हो गईं। करीब 90 प्रतिशत ग्वार की फसल का उपयोग ग्वारगम के उत्पादन में होता है और शेष का प्रयोग खाने और जानवरों के चारे के रूप में होता है। (BS Hindi)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें